मुख्यपृष्ठनए समाचारसंपादकीय : सीमाओं पर गतिविधियां ...चीन के सामने बकरी क्यों?

संपादकीय : सीमाओं पर गतिविधियां …चीन के सामने बकरी क्यों?

मोदी सरकार जहां एक ओर लोकसभा चुनाव के प्रचार में मशगूल थी, वहीं दूसरी ओर इस बात का खुलासा हुआ कि चीन हमारी सीमाओं पर गांव के गांव बसा रहा है। इतना ही नहीं चीन ने सिक्किम से १५० किलोमीटर दूर अपने लड़ाकू विमान भी तैनात कर दिए हैं। कश्मीर सीमा पर भी वह देश पाकिस्तान की मदद के लिए बंकर बना रहा है, पक्की सड़कें बना रहा है। हिंदुस्थान की सीमाओं पर चीन की खुराफातें नई नहीं हैं। सवाल मोदी और उनकी सरकार का है, जो खुद को देश का एकमात्र रक्षक कहते हैं। पिछले चार सालों से चीन सीमा से लगे दुर्गम इलाकों में गांव बसा रहा है। अब तक चीनियों द्वारा थोड़े बहुत नहीं बल्कि अरुणाचल प्रदेश के निकट सीमावर्ती इलाकों में ६०० से अधिक गांव बसाए जा चुके हैं। ये कृत्रिम गांव उसने पर्यटन के लिए नहीं बसाए हैं। जाहिर है कि वह देश इनका इस्तेमाल हिंदुस्थान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के लिए करेगा। क्योंकि उनमें से कई गांवों में सेना के लिए जरूरी सुविधाएं भी तैयार कर ली गई हैं। इन कृत्रिम चीनी गांवों को लेकर पहले भी काफी हंगामा किया जा चुका है। लेकिन पाकिस्तान के मामले में गुर्राने वाली मोदी सरकार इस मामले में चुप रही। इसलिए अब उन गांवों की संख्या जो पहले ३० के करीब थी, अब ६०० से अधिक हो गई है। चीन लद्दाख में भारतीय क्षेत्र में हजारों किलोमीटर भीतर तक घुसपैठ करता है। सोनम वांगचुक जैसे सामाजिक कार्यकर्ता इसका ‘भंडाफोड़’ करते हैं, लेकिन फिर भी मोदी, उनके गृहमंत्री और विदेश मंत्री के कानों पर जूं नहीं रेंगती। अरुणाचल की सीमा पर चीन गांव के गांव बसाता है, उनके नाम चीनी, तिब्बती और रोमन भाषाओं में रखता है और हमारे विदेश मंत्री कहते हैं, ‘चीन ने सिर्फ नाम बदले हैं। अगर मैं तुम्हारे घर का नाम बदल दूं तो क्या वह हमारा हो जाएगा?’ ऐसे तर्क देकर वे विषय छोड़ देते हैं। गलवान घाटी में हमारे वीर जवान चीनी सैनिकों से ‘जान से जान लड़ाते हैं’ और मोदी सीमा के जवानों के साथ ‘दिवाली’ मनाने का नाटक करते हैं। चीन हमारे अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा ठोकता है, इसे दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है और मोदी सरकार केवल विरोध के मौखिक बुलबुले हवा में छोड़ती है। सत्तर साल पहले बातचीत के तहत श्रीलंका को कोई एक द्वीप देने के लिए कांग्रेस का नाम लेकर चीखने-चिल्लाने वाले मोदी अपने कार्यकाल के दौरान चीनी खुराफातों पर मौन साध लेते हैं। मणिपुर हिंसा में चीनी हस्तक्षेप के सबूत सामने आने के बाद भी उनकी ५६ इंच की छाती थोड़ी भी नहीं थरथराती। जो हाल उत्तर-पूर्वी सीमाओं का है, वही हाल कश्मीरी सीमाओं का भी है। मोदी सरकार अनुच्छेद-३७० को खत्म करने की खूब बड़ाई करती है, लेकिन जम्मू-कश्मीर से लगी नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान के सुरक्षा इंतजामात को चीन द्वारा मदद करने पर आंखें मूंद लेती है। पिछले तीन वर्षों से चीन उस इलाके में पाकिस्तान को अलग-अलग तरीके से मदद कर रहा है। नियंत्रण रेखा के नजदीक ही उसने कम्युनिकेशन टॉवर्स स्थापित किए हैं। बंकर्स बनाए हैं। रडार प्रणाली तैयार की है। चीन दावा कर रहा है कि यह सब ‘चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर’ में चीनी निवेश की रक्षा के लिए किया गया था। हालांकि, इसके पीछे छिपा मकसद पाकिस्तान की रक्षा तैयारियों को बढ़ाना है। देश के गृहमंत्री पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को अपने कब्जे में लेने की डींगें हांकते हैं, लेकिन कश्मीर सीमा पर चीनी और पाकिस्तानी गतिविधियों पर आंखें मूंद लेते हैं। यह हकीकत है कि पाकिस्तान को चेतावनी देते वक्त मोदी का ५६ इंच का सीना फूल जाता है, लेकिन जब चीनी ड्रैगन को चेतावनी देने का समय आता है तो वह उतना ही अंदर चला जाता है। अरुणाचल के सीमावर्ती इलाकों में चीन द्वारा बसाए गए गांवों की संख्या ६०० से ज्यादा होने की यही वजह है। मोदी सरकार सो रही थी इसीलिए चीन कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की मदद के लिए बंकर, संचार टावर, रडार सिस्टम बनाने में सफल हुआ। कुंभकर्ण कम से कम छह महीने बाद जाग जाता था। चीन की कार्रवाइयों के नगाड़े जोर-शोर से बजने के बावजूद मोदी जागने को तैयार नहीं हैं। बल्कि वे कन्याकुमारी में ‘ध्यान’ आदि कर रहे हैं। देश की सीमाएं असुरक्षित हो गई हैं और मोदी ‘ध्यान’ मग्न हैं। जनता को ‘ध्यान’ करने वाला नहीं, सीमा पर पड़ोसी देशों की गतिविधियों पर नजर रखने वाला शासक चाहिए। दरअसल, जनता यह सवाल पूछ रही है कि पाकिस्तान के खिलाफ गुर्राने वाले चीन के सामने बकरी क्यों बन जाते हैं? मोदी जी, कम से कम जाते-जाते क्या आप जनता को इस सवाल का जवाब देंगे?

अन्य समाचार