मुख्यपृष्ठनए समाचारअर्थार्थ: पी. जायसवाल मुंबई

अर्थार्थ: पी. जायसवाल मुंबई

प्रकृति प्रदत्त बुनियादी ढांचा हैं धूप, वायु, जल, तरंग

हजारों साल से पृथ्वी और अंतरिक्ष में पड़ी ऊर्जा अब पृथ्वी के लिए दिन-प्रतिदिन मूल्यवान होती जा रही है। पानी का मूल्य तो मनुष्य ने सभ्यता के शुरुआत से जान लिया था। नदियों का जल ही इस धरा पर मानव के बसावट का आधार बना, फिर इसी जल से मानवों ने बिजली को बनाई और इसके इस्तेमाल से खूब तरक्की की। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अब तो पानी भी समुद्र में पाइप के द्वारा दूसरे देश में भेजकर पैसा कमाने की बात चल रही है, जहां पानी की कमी है। धीरे-धीरे समय बीतता गया, मानवों को पता चला कि हजारों साल से पृथ्वी को मिल रही धूप भी कीमती है, फिर उसने सोलर ऊर्जा की खोज की और आज सोलर ऊर्जा पृथ्वी पर ऊर्जा का मुख्य स्रोत बन रहा है। आज धन कमाने का एक प्रमुख जरिया सूर्य की धूप से मिल रही सोलर एनर्जी है। अब सोलर सिर्फ एक देश के अंदर ही नहीं बिक रहा है, इसे कनेक्टेड ग्रिड के द्वारा दूसरे देशों को भी बेचने की चर्चा चल रही है। बहुत से देश सूर्य की धूप का व्यापार टूरिज्म के लिए करने लगे हैं। ठंडे देशों के पर्यटक सिर्फ इसलिए कई देशों के समुद्री बीच पर जाते हैं, ताकि वहां के समुद्र बीच पर बैठकर वह विटामिन डी की कमी को पूरा कर सकें। बहुत से देशों के लिए तो पानी से भरा समुद्री बीच और सूर्य से निकलती धूप ही उनकी बुनियादी संपत्ति है, जिसके बल पर वह पैसा कमा अपनी इकोनॉमी चला रहे हैं। इसी प्रकार प्राकृतिक मनोरम दृश्य और जंगली जानवर भी पैसा कमाने और इकोनॉमी के मुख्य आधार बन रहे हैं।

हमने हवा से ऊर्जा उत्पन्न करने की कला सीखी और विंड एनर्जी से धन कमाना सीखा। मोबाइल इंटरनेट और सैटेलाइट टीवी के तरंगों के विविधतापूर्ण बहुआयामी वाणिज्यिक इस्तेमाल को हम देख ही रहे हैं। ये तरंगें हजारों साल से हमारे पास थीं, लेकिन वैज्ञानिक प्रगति के माध्यम से यह वर्तमान में धन कमाने का सबसे बुनियादी स्रोत बनता जा रहा है। पूरा इंटरनेट आधारित या सैटेलाइट आधारित व्यापार या बैंक का व्यापार सब कुछ अब इन्ही अंतरिक्ष की तरंगों पर निर्भर है। इंटरनेट ब्लैकआउट अब इकोनॉमी को भी ब्लैक आउट में डाल देता है।

उपरोक्त सारी चीजें बुनियादी वस्तुएं हैं और इसमें से किसी को मनुष्य ने नहीं बनाया। ये सब प्रकृति प्रदत्त हैं। इसे आप ईश्वर प्रदत्त भी बोल सकते हैं। बुनियादी ढांचा है, जिसे उसने बना कर दिया है, जिसे हम शनै: शनै: जान रहे हैं और उसे अपने और इकोनॉमी के इस्तेमाल में ला रहे हैं। मैंने जो सनातन अर्थशास्त्र लिखा है वह भी यही बात करता है, समस्त संसाधन, स्रोत या ऊर्जा स्वमेव विद्यमान है, हमारी जानकारी और आवश्यकता सीमित है। जैसे-जैसे हमारी जानकारी और आवश्यकता बढ़ रही है, वैसे-वैसे हम उसमें से वैल्यू खुरच-खुरच कर निकाल रहे हैं।

भारत आदिकाल से इन मूल्यों को पहचान रहा है और वायु, सूर्य, जल, नदी, तरंगों को संरक्षित व रेखांकित करता आ रहा है इसलिए वर्तमान में इसके इस्तेमाल में और इसके शोध में भारत की त्वरण गति ज्यादा है। हालांकि इसके उत्पादन में अग्रणी होने में काम करना है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने अक्षय ऊर्जा के मामले में इस मार्च २४ में रिकॉर्ड ७.१ गीगावाट की वृद्धि दर्ज की, जो मार्च २०२२ में स्थापित ३.५ गीगावाट के पिछले रिकॉर्ड से दोगुना से भी अधिक है। इस वृद्धि ने भारत को ३१ मार्च २०२४ को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष के लिए १८.५ गीगावाट की अपनी अब तक की सबसे अधिक वार्षिक स्थापित क्षमता तक पहुंचने वाला बनाया। यह वृद्धि २०२३ वित्तीय वर्ष के स्तर से २३ प्रतिशत अधिक है, जो भारत के अंतर-राज्यीय ट्रांसमिशन सिस्टम नेटवर्क और अल्ट्रा-मेगा सोलर पार्क योजनाओं के भीतर कई परियोजनाओं के चालू होने से प्रेरित है। इसमें विशेष योगदान मुख्य रूप से गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों का है।

अक्षय ऊर्जा की क्षमता में हाल ही में हुई वृद्धि काफी उत्साहजनक है, लेकिन २०३२ के घोषित लक्ष्य को पूरा करने के लिए और वृद्धि भी जरूरी है। वैसे भी कार्बन उत्सर्जन को कम करने के महत्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों के बावजूद इसे प्राप्त करना तभी संभव है, जब देश हाल के महीनों में इसको लेकर दिखी उत्सुकता चुनाव के बाद हर सरकारों में बनी रहे। इस लक्ष्य को पाने में हालांकि अभी भी महत्वपूर्ण चुनौतियां बनी हुई हैं, जैसे  ग्रिड स्थिरता सुनिश्चित करना और अधिक नवीकरणीय क्षमता शुरू करने के साथ आने वाली उच्च एकीकरण लागत। एक रणनीतिक समाधान इस अक्षय ऊर्जा को लक्षित निर्यात के साथ संतुलित करने में निहित है, जो राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों से समझौता किए बिना, बिजली क्षेत्र के लिए भारत के विकास के दृष्टिकोण को सक्षम बनाता है।

भारत आज वर्तमान में बांग्लादेश, नेपाल और भूटान को कुछ बिजली निर्यात करता है, जबकि म्यांमार को भी कुछ मात्रा में बिजली मिलती है। अक्षय ऊर्जा के बाजार विश्लेषणों से पता चलता है कि भारत भविष्य में अक्षय ऊर्जा के व्यापक व्यापार पर विचार कर रहा है। इसमें कई इंटरकनेक्टर परियोजनाएं स्थापित करना शामिल है, जो मध्य पूर्व में यूएई और सऊदी अरब जैसे देशों, दक्षिण में श्रीलंका और पूर्व में म्यांमार-थाईलैंड कनेक्शन से जुड़ेंगी। सिंगापुर के साथ दक्षिण पूर्व एशिया में और विस्तार की भी संभावना है। भारत शुरू से सनातन अर्थशास्त्र पर विश्वास करते हुए अक्षय ऊर्जा का पूजक था और आज भी है इसलिए इसका सर्वोत्तम प्रसाद इसे मिले इस पर आश्चर्य भी नहीं करना चाहिए।

(लेखक अर्थशास्त्र के वरिष्ठ लेखक एवं आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक विषयों के विश्लेषक हैं।)

अन्य समाचार