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सियासतनामा: ४ जून तक इंतजार

सैयद सलमान मुंबई

देशभर के पेड मीडिया में एग्जिट पोल की बहार है। लगभग सभी चैनल और सर्वे एनडीए की जीत का दावा कर रहे हैं। हालांकि, वे इंडिया गठबंधन को कमतर नहीं बताते। यह विरोधाभास नहीं तो और क्या है? यानी सेफ गेम खेलते हैं। चुनाव एग्जिट पोल मतदाताओं का मतदान केंद्रों से बाहर निकलने के तुरंत बाद लिया गया सर्वेक्षण होता है। अक्सर एग्जिट पोल उसके तरीकों और समय से प्रभावित होते हैं, जो मतदाताओं की राय को पूरी तरह से पकड़ नहीं पाते हैं। हाल के वर्षों में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां एग्जिट पोल गलत साबित हुए हैं। इस बार भी विपक्ष ऐसे सभी एग्जिट पोल को खारिज कर रहा है। विपक्ष मानता है कि जनता का एग्जिट पोल सच होगा, मोदी का सरकारी एग्जिट पोल झूठ है। मीडिया में बैठे पत्रकारों को भी एग्जिट पोल के नतीजों की सावधानीपूर्वक व्याख्या करनी चाहिए, क्योंकि एग्जिट पोल निश्चित परिणाम के बजाय मात्र अनुमान होते हैं। जनता को भी यही भूमिका अपनानी चाहिए। ऐसे में क्यों न ४ जून तक शांति से इंतजार किया जाए।

चमचई की पराकाष्ठा

चमचई की पराकाष्ठा देखनी हो तो रवि किशन उसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। १ मई को अंतिम चरण के मतदान के दिन प्रधानमंत्री मोदी के चुनाव क्षेत्र वाराणसी का तापमान ४५ डिग्री और रवि किशन के चुनाव क्षेत्र गोरखपुर का तापमान ४४ डिग्री के आस-पास था। जब लोग लू से परेशान थे, तब रवि किशन को ठंडी हवाओं का आभास हो रहा था। रवि किशन के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी कन्याकुमारी साधना पर बैठे और उन्होंने सूर्य देव को शांत कर दिया और ठंडी हवाएं बहने लगीं। उत्तर प्रदेश में शुक्रवार को ही १५ मतदान कर्मियों की भीषण गर्मी के कारण मौत होने की खबर आई थी। किसी को आस्था का इस तरह अपनी चापलूसी के लिए राजनीतिक घालमेल नहीं करना चाहिए। यहां साधना पर सवाल नहीं उठाया जा रहा है, लेकिन उसके तरीके पर तो लोग सवाल उठा ही रहे हैं। १० एंगल से लिए गए पीएम मोदी के वीडियो का खूब मजाक बनाया गया। उस पर भी भले हम कुछ नहीं कह रहे, लेकिन रवि किशन की यह चमचई भीषण गर्मी से मरने वालों के परिजनों के लिए जरूर एक मजाक है।

छल की राजनीति

भाजपा अपनी हार को बर्दाश्त करने के मूड में बिल्कुल नहीं, यह उसके हर छोटे-बड़े एक्शन से दिखाई देता है। छल-बल-भय के सहारे वह चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है। इसके लिए फेक खबरों का भी खूब सहारा लिया गया। बिहार की काराकाट लोकसभा सीट भी उसके लिए प्रतिष्ठा की सीट है, जहां से भोजपुरी सिनेमा के स्टार पवन सिंह निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। एक तो उन्होंने पश्चिम बंगाल में भाजपा का मिला हुआ टिकट लौटाया, उस पर निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर भाजपा के जले पर नमक छिड़क दिया। मतदान के अंतिम चरण वाले दिन सोशल मीडिया पर कथित तौर पर पवन सिंह द्वारा किए गए एक पोस्ट का स्क्रीनशॉट खूब वायरल हुआ, जिसमें उनकी तस्वीर लगी थी और साथ में लिखा था। उन्होंने नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए काराकाट सीट से एनडीए उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा को समर्थन देने का पैâसला किया है। जब तक वह सफाई देते, तब तक भाजपा अपना छल वाला खेल, खेल चुकी थी। पवन सिंह तिलमिलाने और सफाई देने में ही लगे रहे और चुनाव खत्म हो गया।

असल कमाई

पंडित जी का मिष्ठान भंडार है। उनकी चाय और समोसे के खूब चर्चे हैं। उनकी दुकान एक तरह से राजनीति का अड्डा है। भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के एक पदाधिकारी उनकी दुकान पर अक्सर आते रहते हैं। अंतिम चरण के मतदान के खत्म होते ही महाशय का आगमन हुआ। चाय, समोसा के साथ अपने मित्रों का वह ज्ञानवर्धन भी कर रहे थे कि वैâसे एनडीए कुनबा ३२५ सीटें जीत रहा है। पंडित जी से नहीं रहा गया। उन्होंने कटाक्ष किया, खान साहब ४०० की जगह ३२५ पर वैâसे आ गए? खान साहब सफाई देने लगे कि आ तो ४०० के पार ही रही है, लेकिन……. बात पूरी होने से पहले ही पंडित जी ने उनकी क्लास ले ली कि हिंदू-मुसलमान के स्तर पर गिर कर राजनीति करने वाले पीएम मोदी से उनका दिल भर गया है। उन्होंने सवाल दागा, खान साहब आप कब तक भाजपा की दरी उठाएंगे? कोई आत्मसम्मान है कि नहीं? खान साहब को जवाब ही नहीं सूझा और बिना पेमेंट किए रुखसत हो लिए। पंडित जी ने शायद एक ग्राहक खोया हो, लेकिन निष्पक्ष होकर जो सम्मान अर्जित किया वह उनकी असल कमाई है।

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