अरुण कुमार गुप्ता
यह लोकसभा चुनाव कई प्रत्याशियों के प्रचार के अजब-गजब तरीकों के लिए भी याद किया जाएगा। पश्चिम से लेकर पूर्वांचल तक प्रत्याशियों ने वोटरों को लुभाने के लिए तमाम जतन किए, अब देखना यह है कि उनका यह तरीका चुनाव के नतीजों पर कितना असर दिखाता है। पश्चिमी यूपी से हुई शुरुआत के दौरान अलीगढ़ में निर्दलीय प्रत्याशी पंडित केशव देव गौतम का नाम सबकी जुबान पर चढ़ गया था। इसकी वजह थी, उनके द्वारा चप्पलों की माला पहनकर प्रचार करना। लखनऊ में मर्द पार्टी (मेरा अधिकार राष्ट्रीय दल) के प्रत्याशी के आकर्षक स्लोगन लोगों का ध्यान खींचने में कामयाब रहे। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं प्रत्याशी कपिल मोहन ने `बेटों के सम्मान में, उतरे हैं मैदान में’, ‘अगले जनम मोहे बेटा न कीजो’ जैसे स्लोगन के जरिए अपने प्रचार को रफ्तार दी। सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओपी राजभर ने घोसी से चुनाव लड़ रहे अपने बेटे अरविंद राजभर को जिताने के लिए हेमा मालिनी की तर्ज पर खेतों में जाकर गेहूं की फसल काटी। गोरखपुर से भाजपा प्रत्याशी रवि किशन कभी गाना गाकर तो कभी युवाओं से पंजा लड़ाकर प्रचार करते रहे। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की सभाओं में भदोही निवासी छोटे कद के कार्यकर्ता चांद मोहम्मद का डांस खासा लोकप्रिय हुआ। वहीं आजमगढ़ में भाजपा प्रत्याशी दिनेश यादव निरहुआ ने `अखिलेश हुए फरार, निरहुआ डटल बा’ गाने से सपा की घेराबंदी की। मतदाता भी लोकतंत्र के पर्व का रंग जमाने में पीछे नहीं रहे। अलीगढ़ में एक शादी मतदाता जागरूकता अभियान में तब्दील हो गई। गोरखपुर में प्रत्याशी राजन यादव उर्फ अर्थी बाबा ने श्मशान घाट में अपना चुनाव कार्यालय खोला तो रातों-रात सुर्खियों में आ गए। उन्होंने अर्थी पर लेटकर प्रचार भी किया। गाजीपुर में निर्दलीय प्रत्याशी सत्यदेव यादव अपना नामांकन दाखिल करने दौड़कर गए।
घोसी, गाजीपुर व बलिया में होगा खेला
लोकसभा चुनाव में अब अंतिम चरण की वोटिंग भी हो चुकी है। भाजपा के लिए दिक्कत गाजीपुर, घोसी और बलिया की सीट पर होने वाली है। इनमें गाजीपुर और घोसी की सीट पर भाजपा पहले चुनाव हार भी चुकी है। घोसी, बलिया और गाजीपुर की लोकसभा सीट भाजपा के लिए मुश्किल इसलिए भी मानी जा रही है, क्योंकि यूपी विधानसभा चुनाव २०२२ में इन इलाकों में आने वाली विधानसभा सीटों पर भाजपा की हालत काफी खस्ता रही थी। इन ३ लोकसभा इलाकों में १५ विधानसभा की सीटें हैं। इनमें से सिर्फ दो सीटें ही भाजपा जीत पाई थी। बाकी सभी सीटें विपक्षी दलों कांग्रेस, सपा और बसपा के पास गई थीं। घोसी की सीट पर भाजपा की सहयोगी पार्टी सुभासपा के अरविंद राजभर को टिकट मिला है। राजभर का इस सीट पर अच्छा खासा प्रभाव है। पिछली बार राजभर भाजपा के साथ भी नहीं थे। सपा और बसपा ने इस सीट पर साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और बसपा के अतुल राय यहां से सांसद बने थे। हालांकि, अतुल राय अपने पूरे कार्यकाल के दौरान जेल में ही रहे। इस बार वह चुनाव भी नहीं लड़ रहे हैं। सपा ने यहां राजीव राय को उतारा है, जो इलाके में प्रभावशाली भूमिहार वोटों को साधकर भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं। गाजीपुर की सीट पर अफजाल अंसारी का कब्जा है। वह इस बार सपा से उम्मीदवार हैं। मुख्तार अंसारी की मौत के बाद यह भी एक मुद्दा बनकर खड़ा हुआ। बलिया पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सीट है और भाजपा ने यहां से उनके बेटे नीरज शेखर को ही चुनाव मैदान में उतारा है। चंद्रशेखर यहां से ८ बार चुनाव जीते थे। ऐसे में उनके बेटे से भी भाजपा उम्मीद कर रही है कि यह सीट वह उसकी झोली में डाल देंगे। हालांकि, सपा ने यहां से सनातन पांडेय को उम्मीदवार बनाकर खेला कर दिया है। सपा के इस सीट पर ब्राह्मण-यादव समीकरण से भाजपा को अपनी इस जीती हुई सीट पर बड़ा झटका लग सकता है।
चुनावी मुकाबले में फंसा एनडीए
लोकसभा चुनाव २०२४ में ४०० पार का नारा देने वाली बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश बेहद महत्वपूर्ण राज्य है। एनडीए गठबंधन ८० सीटों वाले इस राज्य में २७ सीटों पर जोरदार चुनावी मुकाबले का सामना कर रहा है। इनमें से पश्चिम, मध्य और पूर्वांचल में ऐसी २० सीटें हैं। इसके पीछे वजह स्थानीय सांसदों के खिलाफ माहौल, जातीय समीकरण और इंडिया गठबंधन के द्वारा उम्मीदवारों का चयन है। इन सीटों के नाम- अयोध्या, चंदौली, बांसगांव, खीरी, प्रतापगढ़, वैâराना, अलीगढ़, फतेहपुर सीकरी, फिरोजाबाद, पीलीभीत, मोहनलालगंज, अमेठी, कन्नौज, कौशांबी, इलाहाबाद, बाराबंकी, बस्ती, संत कबीर नगर, आजमगढ़ और बदायूं हैं। बीजेपी के स्थानीय नेताओं के मुताबिक पार्टी के उम्मीदवारों को अयोध्या, अमेठी, खीरी, आजमगढ़, कौशांबी, फतेहपुर सीकरी और प्रतापगढ़ में भी अपने कार्यकर्ताओं से जूझना पड़ा है। राज्य में ११ सीटों पर बीजेपी नजदीकी मुकाबले में है। इनमें से अधिकतर सांसदों के खिलाफ एक आम शिकायत यह है कि वे अपने लोकसभा क्षेत्र में इतने सक्रिय नहीं रहते थे। पीलीभीत, इलाहाबाद, बाराबंकी और फिरोजाबाद में बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों को इस बार बदला है, जबकि सपा और कांग्रेस के गठबंधन ने स्थानीय जातीय समीकरणों के हिसाब से रणनीति बनाकर उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा। ऐसे में अब यही कहा जा सकता है कि एनडीए उम्मीदवारों की नैया मझधार में फंसी है।