मुख्यपृष्ठनए समाचारप्रासंगिक: इस पखवाड़े नई सरकार चुटकुले खत्म, अब सीढ़ियां शुरू होती हैं..!!

प्रासंगिक: इस पखवाड़े नई सरकार चुटकुले खत्म, अब सीढ़ियां शुरू होती हैं..!!

लोकमित्र गौतम

१८वीं लोकसभा के लिए चुनाव खत्म हो चुके हैं और असली रिजल्ट के पहले, नतीजों के अनुमान भी आ चुके हैं। ये अनुमान कितने सही, कितने गलत साबित होंगे, इसके लिए भी अब ज्यादा इंतजार नहीं सिर्फ दो दिन बचे हैं, दो दिन के बाद सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा। देश को एक नई सरकार मिलेगी, जो पिछले दो महीनों के असंख्य दावों, वायदों, अनुमानों और हकीकतों को अमलीजामा पहनाएगी इसलिए जैसे कि पोलिश भाषा की एक कहावत है-चुटकुले खत्म अब सीढियां शुरू होती हैं, हमें भी मान लेना चाहिए कि चुनाव जीतने के लिए दावे करना, बड़े-बड़े अनुमानों को सपनीली चाशनी में पेश करना अलग बात है और उसे हकीकत का जामा पहनाना बिल्कुल दूसरी बात है। सरकार कोई भी बनाए, लेकिन इस बार ५ जून २०२४ के बाद का भारत इसके पहले के भारत जैसा नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते चुनावों में बार बार भारत को विकसित देश बनाने का वायदा किया है, तो दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन के अघोषित मुखिया राहुल गांधी ने भी जो आर्थिक वायदे किए हैं, उनको लागू करना न केवल एक आर्थिक क्रांति होगी बल्कि ये लागू हुए तो भारत छलांग लगाकर विकसित भारत की सीमा में प्रवेश कर जाएगा।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि दुनिया में सबसे युवा देश भारत अपने असीमित श्रम संसाधनों और युवाओं की हाड़तोड़ मेहनत की बदौलत आगे बढ़ेगा ही। अगर अलग-अलग दौर की सरकारों की विकास दर को एक मिनट के लिए एक तरफ रख दें, तो भी आजादी के बाद से अब तक हिंदुस्थान ने लगातार अपनी श्रमसाध्य जिजीविषा की बदौलत आर्थिक राह पर आगे ही बढ़ा है, पीछे नहीं गया। यह अलग बात है कि हमारी बहुत ज्यादा जनसंख्या और लंबे समय तक विकास दर से कहीं ज्यादा रही प्रजनन की दर ने उस तरह से इस विकास का एहसास नहीं होने दिया, जिस तरह से प्रतिव्यक्ति आय के आईने में आज दुनिया की अमीरी- गरीबी जांची परखी जाती है, वरना अगर हम १९४७ से २०२४ के बीच भारत में पैदा हुई या विकसित की गई धन-संपदा को देखें तो हमने किसी भी देश के मुकाबले कम उन्नति नहीं की। चाहे फिर वो पश्चिम के विकसित देश हों या टेक्नोलॉजी के टाइकून।
इससे साफ पता चलता है कि भारत में विकास की दर सरकारों के साथ नत्थी जरूर होती है, लेकिन अपने यहां विकास सरकारों का मोहताज नहीं है। पिछली दो-तीन सदियों में हम हिंदुस्थानियों ने इतनी गरीबी देखी है कि सरकारें सहयोग करें, न करें, साथ दे, न दें, हम भारतीय येन-केन प्रकारेण अपनी आर्थिक उन्नति का प्रयास करेंगे ही। पिछले ३० सालों में अगर जीवन स्तर के आईने में देखा जाए तो भारत के गांवों का कायाकल्प हो गया है। हर साल भारत के शहरों से और विदेशों से १० लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा सालाना गांव पहुंचे हैं। हालांकि, फिर भी हमारे गांव यूरोप और अमेरिका के गांवों से नहीं बन सके, लेकिन यह भी तय है कि आज के भारत के गांव चाहे वह देश के किसी भी कोने में हों, ३० साल पहले के गांवों जैसे भी नहीं हैं। गांवों के इस कायाकल्प में नि:संदेह सरकारों का भी योगदान है, लेकिन ८० फीसदी से ज्यादा गांवों के इस कायाकल्प का दारोमदार उन युवाओं पर है, जिन्होंने बेहद गरीबी में आंखें खोली थीं और जवान होने के पहले ही जिम्मेदारियों के बोझ से लदकर शहर ठेल दिए गए। १९९० से २०२० तक भारत के गांवों से शहरों की तरफ लगातार पलायन बढ़ा है और इस पलायन में बहुत बड़ी हिस्सेदारी गांवों के युवाओं की ही रही हैं, जिन्होंने कुछ भी किया हो, पर पैसे बनाए हैं और धीमी रफ्तार से ही सही उनके पैसों से हुआ ग्रामीण भारत का कायाकल्प अब आकार लेने लगा है।
लेकिन इस पखवाड़े के बाद भारत के विकास का जो सफर शुरू होगा, वह अब तक के जैसा नहीं होगा। अगर केंद्र में इंडिया गठबंधन की सरकार बनती है, तो ३० लाख लोगों को सरकारी नौकरियां मिलेंगी और करीब १० करोड़ महिलाओं को हर साल एक लाख का भुगतान मिलेगा। यह सिर्फ चकाचौंध के अंदाज में देश की सूरत बदलने वाला या वेलफेयर स्टेट का एक नया अध्याय भर नहीं होगा, अपने आप में एक आर्थिक क्रांति होगी और यह तभी संभव है जब देश मौजूदा विकास दर से ४ से ५ फीसदी ज्यादा विकास करे इसलिए निश्चित रूप से यह इस पखवाड़े बनने वाली किसी भी सरकार के लिए एक नई बड़ी और अब तक न आजमाई गई एक महान चुनौती होगी। अगर प्रधानमंत्री मोदी अपने तीसरे टर्म को आगे बढ़ाते हैं, तो उन्हें इंडिया गठबंधन के दावों से भी कहीं बड़ा आर्थिक वितान खींचना होगा। भारत को प्रधानमंत्री मोदी के दावों के मुताबिक, साल २०२६ में जापान और २०२७ में जर्मनी को पीछे छोड़ना होगा। यह आसान नहीं होगा।
यह अलग बात है कि दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले भारत के उपभोक्ता बाजार में अगले एक दशक तक जबरदस्त मांग बरकरार रहेगी, जिससे अर्थव्यवस्था के आगे बढ़ने का जो बुनियादी प्रोत्साहन होना चाहिए, वह हमेशा मौजूद रहेगा। लेकिन अगर भारत में पिछले १० सालों में अमीरी और गरीबी रेखा के बीच बढ़ी दूरियों को देखें तो साफ पता चलता है कि पर्चेजिंग पावर (क्रयशक्ति) के नजरिये से भारत में समृद्ध तबका संख्या के लिहाज से सिकुड़ रहा है। भले उसकी क्रयशक्ति बहुत बढ़ रही हो। सीधे शब्दों में भारत के हर व्यक्ति की क्रयशक्ति नहीं बढ़ रही इसलिए उपभोक्ताओं की मौजूदगी का समीकरण भी जरूरी नतीजे देगा इस पर संदेह है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण रियल स्टेट के क्षेत्र का है। पांच साल पहले महानगरों में जबरदस्त फ्लैटों की मांग थी, क्योंकि कारपोरेट सेक्टर गुलजार था। प्रोफेशनलों को शुरुआती पैकेज ही ऐसे मिल रहे थे कि वे अपनी नौकरी के शुरुआत के छह महीनों में ही अपना फ्लैट बुक कराने की हैसियत में आ जा रहे थे, लेकिन नोटबंदी और फिर कोरोना के साथ ही जीएसटी ने हमारी अर्थव्यवस्था को अंदर से इस कदर झकझोरा है कि आंकड़ों में भले अभी भी हम दुनिया की ताकतवर और लगातार मजबूत हो रही अर्थव्यवस्था हों, लेकिन व्यावहारिक दुनिया में आज पांच साल पहले के मुकाबले मध्यवर्ग और खासकर २८ साल से कम के युवाओं में वह ठोस क्रयशक्ति नहीं बची, जो अपनी कार और फ्लैट की ईएमआई को आसानी से भर पाने का साहस जुटा सके। यही वजह है कि मुंबई जैसे महानगर में १० लाख के आस-पास बने फ्लैट पड़े हैं और वे डेवलपरों के तमाम आकर्षक प्रस्तावों के बावजूद नहीं बिक रहे।
लब्बोलुआब यह कि सरकार किसी की भी बने, उसे हर हाल में मिडिल क्लास की क्रयशक्ति को ठोस तरीके से बढ़ोतरी का प्रयास करना होगा। कोरोना के बाद भले अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर आ गई हो, लेकिन आज भी कोरोना के पहले की तुलना में १६ फीसदी महिलाएं बेरोजगार हैं और अगर पिछले एक दशक में महिलाओं के रोजगार की वृद्धि को देखें तो यह न सिर्फ स्थिर है बल्कि नकारात्मक हो चुकी है। भारत में वास्तविक अर्थों में ८० फीसदी महिलाओं की वर्कफोर्स व्यवस्थित रोजगार से वंचित है। बड़े पैमाने पर महिलाएं असुरक्षित और अनियमित रोजगार में हैं। नई सरकार को इस हकीकत से भी आंखें मिलानी होंगी। शेयर मार्वेâट भले रह रहकर बुलंदियां छू रहा हो, लेकिन यह भी सही है कि देश में सबसे आकर्षक दावा ८० करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देने का ही है। इससे साफ पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में अभी इतना कुछ काम करना बाकी है कि जो भी गठबंधन ४ जून के बाद सत्ता में आएगा, उसे लार्जर देन पॉसिविल कारनामा दिखाना करके होगा।
(लेखक विशिष्ट मीडिया एवं शोध संस्थान, इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर में वरिष्ठ संपादक हैं)

अन्य समाचार