तुम देखोगी जहां

तुम देखोगी जहां मैं हूं वहां
तुम देखो जानां, मैं सबमें अधिकांश हूं
मेरा रुख भी नया है मेरी सोच भी नई है
मेरी चाल भी नई है, मैं हर होठों के शिकने पर उतरता हूं
मैं बेजोड़ हूं अल्फाजों में ढलता हूं
आंसुओं की नदियों में, मेरा स्थान हैं
खुशबुओं के महक में, जहान है
दुःखों के झीलों में,मेरा आशियाना हैं
देखो मुझे, कविताओं की कश्ती ठेलते हुए
तुम वहां पाओगी मुझे…
मुझे हर किरदारों में पाओगी
हर क्षण ढलते हुए
मस्तानी है मेरी हर इक उमंगें
मैं रोता हूं, खुद में छुप के
दुनिया सोती है रातों में जब..
मुझे नींद नहीं आती है लेटे-लेटे
हर इक चुनिंदे शब्दों में उभरता हूं
देखोगी जहां, वहां हूं।
-मनोज कुमार

गोण्डा, उत्तर प्रदेश

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