सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई मनपा के अस्पतालों में जीरो प्रिस्किप्शन पॉलिसी योजना शुरू करने की घोषणा घाती सरकार ने दिसंबर महीने में ही कर दी थी। योजना को लेकर तत्कालीन मनपा आयुक्त डॉ. इकबाल सिंह चहल ने भी बजट में बड़े-बड़े दावे किए थे। हालांकि, योजना की घोषणा किए छह महीने का वक्त गुजर चुका है, लेकिन अभी तक इसका क्रियान्वयन मनपा अस्पतालों में नहीं किया जा सका है। फिलहाल, एक बार फिर से स्वास्थ्य विभाग की तरफ से कहा गया है कि जैसे ही आदर्श आचार संहिता खत्म होगी, योजना को कई चरणों में चलाया जाएगा यानी अभी भी इसे पूरी क्षमता के साथ लागू नहीं किया जाएगा। दूसरी तरफ अस्पतालों में इलाज कराने पहुंच रहे लोगों ने सवाल उठाते हुए पूछा है कि क्या जीरो प्रिस्किप्शन पॉलिसी सफल हो पाएगी अथवा अन्य घोषणाओं की तरह यह भी हवा-हवाई ही साबित होगी।
उल्लेखनीय है कि जीरो प्रिस्किप्शन पॉलिसी योजना की घोषणा दिसंबर महीने में ही कर दी गई थी। इसके साथ ही मनपा बजट में इस योजना को भारी-भरकम यानी करीब १,४०० करोड़ रुपए का फंड भी मुहैया कराया गया। इसी बीच लोकसभा चुनाव को लेकर आचार संहिता लागू होने की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी। ऐसे में मनपा प्रशासन चाहता तो जनहित से जुड़ी इस योजना को शुरू करने के लिए युद्धस्तर पर काम कर सकता था, लेकिन मनपा की तरफ से कछुए की गति से इस पर काम किया गया। ऐसे में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई और योजना अधर में लटक गई। फिलहाल, इस समय विधान परिषद में स्नातक और शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के लिए आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है। ऐसे में फिर से योजना के क्रियान्वयन में व्यवधान पड़ने का अनुमान लगाया गया है।
बता दें कि मनपा अस्पतालों में प्रतिदिन लाखों मरीज इलाज के लिए आते हैं। फिलहाल, मौजूदा समय में मुख्य अस्पताल में दवाओं की खरीद पर करीब ६०० करोड़ रुपए खर्च होते हैं, लेकिन इस नई पॉलिसी पर भारी लागत आएगी। बताया गया है कि १,४०० करोड़ रुपए अतिरिक्त बढ़ जाएंगे।
मरीजों को बाहर से खरीदनी पड़ती हैं दवाएं
मनपा समेत पूरे राज्य में सरकारी अस्पतालों में कई दवाएं उपलब्ध नहीं होने के कारण मरीजों को उन्हें बाहर से खरीदना पड़ता है। कई बार देखा गया है कि मनपा के सेंट्रल खरीद केंद्र से समय पर दवाओं की खरीददारी नहीं होने के कारण कई दवाएं मनपा अस्पतालों में उपलब्ध नहीं हो पाती थीं।