5 जून को पर्यावरण दिवस है। प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी हम पर्यावरण दिवस मनाएंगे। पर्यावरण पर चिंतन-मनन होगा। फोटोग्राफी भी होगी। अखबारों, पत्र, पत्रिकाओं, न्यूज चैनलों पर फोटो छपेंगे। बड़े-बड़े तर्क दिए जाएंगे, लेकिन देखने में आता है कि हम जितनी चिंता जताते हैं, मगर उतनी जिम्मेदारी से पर्यावरण की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं, जो जज्बे के साथ करना चाहिए। आज भी हमारे देश में पर्यावरण के प्रति प्रेम रखने वाले वृक्ष प्रेमियों की कोई कमी नहीं है। वे पूर्ण निष्ठा, निष्काम व समर्पित भाव से पेड़-पौधे लगा रहे हैं, बल्कि बच्चों की तरह देखभाल भी कर रहे हैं। लेकिन दुख की बात है कि बाग को लगाने वाले कम, उजाड़ने वाले ज्यादा हैं। इस बार गर्मी ने हम सबको हलकान कर दिया व कर रही है। पेड़-पौधों की कमी को महसूस भी किया जा रहा है, मगर जैसे ही गर्मी कम हुई, हम सब भूल-भाल जाएंगे। प्रकृति के प्रति हमारी अब क्या जिम्मेदारी है! सेमिनार, गोष्ठियों, बैठकों, आयोजनों में बड़ी-बड़ी बातों की बजाय अगर हम सब अपनी जिम्मेदारी समझते हुए वृक्षों को ना कटने दें, नए-नए पेड़-पौधे रोपित कर उनको वृक्षों में तब्दील करने का समर्पित कार्य करें तो ही पर्यावरण दिवस की सार्थकता है, अन्यथा ना तो कोरी बातों से पेट भरता है, ना कोरी बातों से ही पर्यावरण की रक्षा होती है। चिंता तो हर कोई करता है, लेकिन उस चिंता को काम में तब्दील करने की जरूरत है ।
-हेमा हरि उपाध्याय ‘अक्षत’, खाचरोद, उज्जैन