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एनडीए के भीतर भितरघात!… सभी घटक दलों को भाजपा ने सताया

सामना संवाददाता / नई दिल्ली

२०१४ में जब केंद्र में एनडीए की सरकार बनी तो अकेले भाजपा को बहुमत मिल गया था। इसके बाद भाजपा अहंकार में डूब गई थी। यह अहंकार इतना बढ़ गया कि भाजपा अकेले ही सारे निर्णय लेने लगी और घटक दलों को दरकिनार कर उनके साथ भितरघात करना शुरू कर दिया। यही वजह रही कि एनडीए के सभी प्रमुख दल उससे एक-एक करके अलग होते गए। सबसे ताजा किस्सा तो लोजपा यानी रामविलास पासवान की पार्टी का हुआ। रामविलास की मौत के बाद भाजपा ने लोजपा में ही दो फाड़ करके चाचा-भतीजे को ही लड़वा दिया। पार्टी पर पारस का कब्जा हो गया और उन्हें कोटे से मंत्री भी बना दिया गया। मगर चुनाव के पहले जब इंटरनल सर्वे में पता चला कि जमीन पर तो भतीजे चिराग की पकड़ मजबूत है, तब भाजपा ने फिर यू टर्न लेकर चिराग को मनाया और एनडीए में शामिल कराया। इसी तरह पूर्व में चंद्राबाबू नायडू एनडीए के कनवेनर हुआ करते थे। मगर उन्हें भी हाशिए पर धकेल दिया गया था। परेशान होकर चंद्राबाबू ने एनडीए से किनारा कर लिया। अपनी धूर्तता का परिचय देते हुए भाजपा ने बारी-बारी से यही खेल सबके साथ खेला। नीतिश कुमार भी मोदी के घमंड का शिकार हुए। उन्हें भी दरकिनार कर दिया गया और बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का आश्वासन देने के बावजूद उन्हें टरकाते रहे। राज्य में भाजपा के मंत्रियों के तेवर इतने तल्ख हो गए कि वे सीएम को आदर देना तक भूल गए थे। इससे नीतिश काफी आहत हुए थे। नीतिश पलटने में माहिर हैं और चर्चा है कि उन्होंने कोई सौदेबाजी कर ली और फिर से भाजपा में चिपक गए। भाजपा को जमीन खिसकने का अंदाजा था ही, सो नीतिश एनडीए में आ गए। इसी तरह कर्नाटक में जेडीएस के साथ भी भाजपा ने अनैतिकता का परिचय दिया और दोनों के संबंध बनते-बिगड़ते रहे। असम में पूर्व में असम गण परिषद भी एनडीए का हिस्सा था। मगर उसके साथ भी भाजपा के रिश्ते खराब हुए थे।

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