जीने की उड़ान

मन की डगर को तुम जांच लो
उसे डगमगाने से बचा लो
अगर फिसल गए दाग तुम्हारे सिर का ताज होगा
अगर संभल गए सबका साथ तुम्हारा हमराज होगा
सितारों को छूने की तम्मना तुम रखते हो
जमीं को छुआ है कभी
तकदीर की लकीरों पर सोचते रहते हो
मंजिल जब भी आती है तुम उसे टटोलते हो
खोने पाने की तुम्हे खबर नहीं
खाली बैठे रहते हो ख्यालों के घरौंदों में
मन की आड़ में छुपे बैठे हो कि मन नहीं करता
आलस्य को ले के बैठे हो कि तन नहीं उठता
अपने अरमानों के पन्नों को तुम बंद लिफाफे में रखते हो
अपनी मुठी खोलो अपना तीर कमान  छोड़ो
जीवन की फतेह तुम हासिल करना चाहते हो
तुम्हारे पास अपना जोश है समय का होश है
सारे बंधन तोड़ कर हौसलों को जोड़ कर
अपने पथ और पग से जीने की उड़ान भरो।

-अन्नपूर्णा कौल, नोएडा

अन्य समाचार