जनता ने अपने मत के जरिए ‘दूध का दूध, पानी का पानी’ कर दिया है। पुनः गठबंधन सरकार का युग आ गया है। भाजपा भले ही सबसे बड़े दल के रूप में उभरी हो, लेकिन उसे भी बैशाखियों के सहारे ही चलना पड़ेगा। भाजपा का इतना निराशाजनक प्रदर्शन का कारण, सरकार में अहंकार का भाव था। किसी की मानते व सुनते नहीं थे। किसान आंदोलन इस बात का प्रमाण है। भ्रष्टाचार का आरोप लगाना, अपने पाले में आते ही पवित्र हों जाना, यह सब देखकर नागवार तों लगना स्वाभाविक है। जनता की आवाज विपक्ष को लगातार कमजोर करना भी तों लोकतंत्र के लिए कोई शुभ संकेत नहीं था। वास्तविक जमीन मुद्दे गरीबी, मंहगाई, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मसलों पर लगभग बोलना बंद कर दिया था। केवल 5 किलो अनाज का तोता रटंन संवाद बोला जाता था। क्या इतने अनाज में परिवार तो ठीक अकेले आदमी का पेट भरना मुश्किल है ।जनता ने यह भी देखा कि दूसरे दलों को तोड़कर पक्ष की आवाज को कमजोर कर रहे थे। साथ ही केंद्र के अधीन सीबीआई, इडी, आयकर विभाग का दुरुपयोग कर उनको डरा धमकाकर अपनी पार्टी में शामिल करने में कर रहे थे। कई ऐसे कारण भी हैं, जिनके कारण भी जनता नाराज थी। चाहे हाथरस की घटना हो या अजय मिश्र टेनी के बेटे द्वारा किसानों को कुचलने का मामला हो या पहलवान बेटियों के साथ जो हश्र हुआ जनता देख रही थी। किसान आंदोलन को जिस तरह से कुचलने का प्रयास किया वह भी एक नाराजगी का कारण था। अबकी बार 400 पार के नारे पर सवार होकर जो स्वप्न देखा था, उसका जनता ने मोहभंग कर दिया है। बार-बार मंदिर, पाकिस्तान। तीन तलाक की दुहाई कब तक वोट दिलाएंगी ? क्योंकि जनता को स्वयं के साथ अपने भावी नौनिहालों की भी चिंता है। इस बार इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बेसिर पैर की बातें करते रहे, उनके भाषणों में गंभीर मुद्दों का अभाव था । 2014 में बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार भाजपा सरकार के नारे पर सवार हो कर सत्ता की रास थामने वाले मोदी जी इस बार महंगाई का म भी नहीं बोल सके, फिर भी भाजपा को इतनी सीटें मिली हैं तों मोदी जी के कारण मिली है। अगर मोदी का चेहरा नहीं होता तो इतने नम्बर भी नहीं आते। मतदाता तों साफ कह रहे थे कि ना चाहते हुए भी हम मोदी के कारण इन उम्मीदवारों को वोट दे रहे हैं।
-हेमा हरि उपाध्याय ‘अक्षत’
उज्जैन