रोहित माहेश्वरी लखनऊ
१८वीं लोकसभा के चुनाव नतीजों पर देश ही नहीं, बल्कि दुनियाभर की निगाहें टिकी हुई थीं। सबको इस बात की उत्सुकता थी कि यूपी किसके पक्ष में अपना फैसला सुनाएगा। असल में संसद को सर्वाधिक ८० सांसद देने वाले यूपी के नतीजे ही देश की राजनीति की दशा और दिशा तय करते हैं। ऐसे में यूपी के नतीजे का सबको बेसब्री से इंतजार था। यूपी की जनता ने `इंडिया’ गठबंधन के पक्ष में अपना फैसला सुनाया। इसमें कोई दो राय नहीं है कि यूपी में `इंडिया’ गठबंधन के पक्ष में चली आंधी में एनडीए की सीटें घटकर आधी हो गई।
इस बार यूपी के दो लड़कों ने पीएम मोदी के विजय रथ पर ब्रेक लगा दिया। राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका दिया। उत्तर प्रदेश में एनडीए को तगड़ा झटका लगा है। यूपी की ८० लोकसभा सीटों में से बीजेपी और उसकी सहयोगियों को ३६ सीटें मिली हैं। वहीं `इंडिया’ गठबंधन को ४३ सीटें मिली हैं। एकमात्र सीट नगीना आजाद समाज पार्टी के चीफ चंद्रशेखर आजाद जीते हैं।
२०२४ के चुनाव में यूपी में इंडिया ब्लाक में सपा और कांग्रेस ने हाथ मिलाया था। सपा जहां पीडीए अर्थात पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक का फॉर्मूला लेकर मैदान में उतरी, वहीं कांग्रेस अपने परंपरागत वोटरों और जातीय समीकरणों के सहारे मैदान में थी। शुरुआती दौर में यह लग रहा था कि `इंडिया’ ब्लाक एनडीए के मुकाबले ज्यादा मजबूत साबित नहीं हो पाएगा। ये भी कहा जा रहा था कि पिछले चुनाव में विपक्ष को मिली १६ सीटें ही बच जाए तो गनीमत होगी, लेकिन जैसे ही चार जून की सुबह ईवीएम ने वोटों की गिनती शुरू की तो `इंडिया’ ब्लाक की झोली वोटों से लबालब भर गई।
लोकसभा चुनाव में अबकी बार ४०० पार का नारा देने वाली भाजपा की रणनीति यूपी के सियासी जमीन पर पेâल साबित हुई है। चुनाव जीतने के सारे जतन धरे रह गए। यूपी में ८० सीटें जीतने का दावा करने वाली भाजपा आधे से भी कम सीटों पर सिमट गई। चुनाव परिणाम ने जहां भाजपा कार्यकर्ताओं में अंदर ही अंदर उपजे असंतोष को उजागर किया है, वहीं संगठन की कमियों का भी पर्दाफाश हुआ है। इस बार न तो भाजपा संगठन की तैयारी कारगर रही और न ही मतदाताओं पर सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का ही असर हुआ।
इस चुनाव से यह भी साफ हो गया है कि कार्यकर्ताओं में छाई मायूसी व असंतोष के साथ ही चुनाव प्रबंधन की कमियों ने भाजपा के ८० सीटें जीतने के लक्ष्य में सबसे बड़ी बाधा पैदा की। माना जा रहा है कि यूपी में भाजपा की बिगड़ी चाल के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार पार्टी के ही बड़े नेताओं का अति आत्मविश्वास है। जिस तरह से स्थानीय और पार्टी के काडर कार्यकर्ताओं की अनदेखी करते हुए टिकट का बंटवारा किया गया, उससे भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ। नतीजा यह हुआ कि भाजपा ने जिन १७ सांसदों का टिकट काटकर उनके स्थान पर नए चेहरे उतारे थे, उनमें से पांच उम्मीदवार हार गए।
चुनाव परिणाम के मुताबिक, पार्टी के बड़े नेताओं के घरों में भी भाजपा पस्त हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जैसे बड़े नेताओं के जीत की मार्जिन में भी भारी कमी आई है। वहीं चुनाव लड़ने वाले सात केंद्रीय मंत्री और प्रदेश सरकार के चार में से दो मंत्री भी चुनाव हार गए। कई सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों को कड़ा संघर्ष का भी सामना करना पड़ा है। २०१४ और २०१९ में पार्टी ने ७१ और ६२ लोकसभा सीटें जीती थीं।
इस चुनाव में विपक्षी दलों ने `इंडिया’ गठबंधन बनाकर पीडीए का रोड मैप ड्राफ्ट किया। इस पीडीए की धार नरेंद्र मोदी के हिंदुत्व पर भारी पड़ गई। कहीं-कहीं यह पीडीए पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक था तो कहीं-कहीं अखिलेश यादव ने इसे पीड़ित, दलित और अगड़ा बता दिया। नतीजा जो-जो भी समुदाय उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के राज से दुखी थे, वे भी इस पीडीए की छतरी के तले आ गए। खासकर अवध और पूर्वांचल में पीडीए को इसी रूप में लिया गया। सपा और कांग्रेस दोनों दलों ने अपने प्रचार के दौरान बीजेपी के तीसरी बार सत्ता में आने पर संविधान बदलने का नारा दिया। यूपी के चुनाव नतीजे इस बात की गवाही देते हैं कि राहुल गांधी और अखिलेश यादव लोगों को अपनी बातें समझाने में सफल रहे। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस चुनाव में मिली जीत से `इंडिया’ ब्लाक की ताकत में तो वृद्धि हुई ही है, साथ ही आने वाले समय में विधानसभा चुनाव के लिए `इंडिया’ ब्लाक की उम्मीदें और बढ़ गई हैं।