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उड़न छू : अबकी बार लंगड़ी सरकार

अजय भट्टाचार्य

वाराणसी से कलकत्ता तक पानी वाले जहाज का संचालन शुरू हो गया है। अभी सिर्फ मालवाहक जहाज ही चल रहे हैं, लेकिन दो- एक साल में सार्वजनिक परिवहन भी शुरू हो जाएगा ।
बीते दिनों एक जहाज वाराणसी से बनारसी लंगड़े आमों की खेप लेकर कलकत्ता के लिए निकला। जहाज पर लगभग तीस हजार टन आम लदे हुए थे। आमतौर पर उस जहाज की वहन क्षमता पच्चीस हजार टन ही थी, लेकिन किसी गलती की वजह से ज्यादा माल लाद दिया गया, नतीजतन उथले पानी में जहाज फंसने के आसार थे। जहाज के संचालकों ने जब इस अतिरिक्त लदान की जांच की तो पता चला कि जहाज का तल निर्धारित न्यूनतम सात मीटर से अभी भी सुरक्षित लेवल पर ही है तो जहाज को रवाना कर दिया गया।
दिक्कत सिर्फ वाराणसी से पटना के बीच तक ही थी, क्योंकि इसी क्षेत्र में गंगा उथली है। पटना से आगे बढ़ते ही कूचविहार से लेकर हल्दिया तक नदी खूब चौड़ी और गहरी भी है। जहाज के चालक जहाज को सावधानीपूर्वक पटना तक ले जाने में कामयाब रहे। जब वो दरभंगा घाटी को पार कर रहे थे, तभी जहाज अचानक से खड़ा हो गया। क्रू मेंबर्स घबरा गए और उन्होंने पानी का स्तर नापा तो जहाज अभी भी नदी तल से बारह मीटर ऊपर था। वैâप्टन जहाज को बार-बार आगे बढ़ाने की कोशिश करता, लेकिन जहाज टस से मस नहीं हो रहा था। यह बहुत ही असाधारण स्थिति थी। अंतत: कप्तान ने गोताखोरों की मदद ली और उन्हें जहाज की तली में भेजा गया। गोताखोर जब नीचे गए तो उन्हें तली में यह पत्थर मिला। उन्होंने जहाज की तली का पूरा निरीक्षण-परीक्षण किया। उन्हें कोई समस्या नहीं दिखी तो वे लोग वापस जहाज पर आने लगे। इस बीच सिर्फ कौतूहल में उन लोगों ने इस पत्थर को साथ रख लिया।
एक बार जहाज को फिर से चलाने का प्रयास किया गया। आश्चर्यजनक रूप से वो भारी-भरकम जहाज चल पड़ा, तब इन लोगों को इस पत्थर का ध्यान आया कि हो न हो जहाज को रोकने में इस पत्थर का ही हाथ-पैर था। सब लोग उलट-पुलट कर पत्थर को देखने लगे। देखने में तो यह बिल्कुल सामान्य सा पत्थर था, लेकिन इस पर किसी अजीब भाषा में कुछ लिखा हुआ था। उन लोगों ने लाख कोशिशें कीं, लेकिन पत्थर पर लिखे शब्दों को जहाज पर लोग डिकोड नहीं कर पाए। थक-हारकर इन लोगों ने पत्थर को नदी में फेंक दिया, लेकिन यह क्या? पत्थर फेंकते ही जहाज फिर से रुक गया। मजबूरन दोबारा गोताखोर नदी में उतरे और इस पत्थर को वापस खोजकर डेक पर लाया गया। जहाज दोबारा चल पड़ा। अब सभी की दिलचस्पी इस पत्थर में हो चुकी थी। कलकत्ता पहुंचने पर पत्थर लेकर कप्तान सबसे पहले जहाज से उतरा और सीधे हावड़ा ब्रिज के नीचे बैठे औघड़ के पास पहुंच कर पत्थर पर लिखे वाक्य को जानना चाहा।
औघड़ ने बताया कि इस पर लिखा है कि `अबकी बार ४०० पार’। बाकी इस घटना का गंगा की सफाई और सफाई का ठेका अडानी को दिए जाने से कोई संबंध नहीं है। हां, ४०० पार की जगह लंगड़ी सरकार जरूर हो गया है। फलाना है तो मुमकिन है।

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