मुख्यपृष्ठनए समाचारसामना विश्लेषण : बर्बादी तय है!

सामना विश्लेषण : बर्बादी तय है!

सामना संवाददाता / नई दिल्ली

आखिर नीतिश कुमार और चंद्राबाबू नायडू ने अपनी बर्बादी के समझौते पर दस्तखत कर ही दिए। केंद्र में एनडीए सरकार को समर्थन दे ही दिया। कल नई दिल्ली में एनडीए की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना नेता चुनकर इन दोनों नेताओं ने अपनी-अपनी पार्टियों के अंत की शुरुआत करवा ली है। एक लंबे अंतराल के बाद केंद्र में एनडीए की सरकार बनने का रास्ता साफ हो रहा है। इसी के साथ तय हो गई है जनता दल युनाइटेड और तेलुगू देशम पार्टी की ‘बर्बादी’।
२०१४ और २०१९ के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने दम पर बहुमत हासिल किया था। लिहाजा, एनडीए के अन्य घटक दल हाशिए पर थे। चारों ओर मोदी-मोदी का ‘शोर’ था। सारे पावर मोदी और शाह के हाथों में थे। इसका फायदा उठाकर नई भाजपा ने अपने घटक दलों का भरपूर दमन किया। उनके सांसद चुराए, विधायक लूटे और साम-दाम-दंड-भेद से मित्र पक्षों को पूरी तरह बर्बाद करने का काम किया। ऐसा इसलिए भी किया गया क्योंकि नई भाजपा हमेशा से यह मानती रही है कि देश में केवल एकाध राष्ट्रीय पार्टी ही होनी चाहिए, क्षेत्रीय पार्टियों का वजूद उसे मंजूर नहीं।

भद्रा में भदेस…

फिर भी यह शुभ योग है। पुनर्वसु नक्षत्र रात ८ बजे तक रहेगा। ८ जून को गंड योग बन रहा था, लिहाजा शपथ ग्रहण कार्यक्रम ९ जून को कर दिया गया, परंतु रूपेश पंचांग के अनुसार, ९ जून का दिन शपथ ग्रहण के लिए अशुभ है। इस दिन भद्रा है और मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार भद्रा काल शुभ कार्यों के लिए वर्जित है।
कलश विहीन मंदिर का उद्घाटन, हारी भाजपा
यहां यह ध्यान देनेवाली बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी तरह जिद और जल्दबाजी में अयोध्या में कलश विहीन राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा बिना मुहूर्त के की थी। नतीजा यह हुआ कि हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें भगवान राम के कोप का भाजक बनना पड़ा। अयोध्या में करारी हार मिली और देश में वे बहुमत पाने से वंचित रह गए। मोदी अपेक्षा कर रहे थे कि राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का उन्हें लोकसभा चुनाव में काफी फायदा होगा, परंतु अशुभ योग में प्राण प्रतिष्ठा के चलते ही अयोध्या की जनता ने उन्हें व भाजपा को सिरे से नकार दिया। उसी अशुभ योग की शपथ ग्रहण में पुनरावृत्ति होने जा रही है।
अयोध्या में आधे-अधूरे राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कर भाजपा वापस सत्ता में आने के साथ ही इतना उत्साहित हो गई थी कि ४०० पार का नारा देने लगी थी, लेकिन देश की जनता ने भाजपा के मंसूबों पर पानी फेर दिया। अंत में यह कहा जा सकता है कि जिस तरह बिना मुहूर्त और आधे-अधूरे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बावजूद भाजपा को असफलता ही मिली उसी तरह शपथ ग्रहण भी बिना शुभ मुहूर्त में होने के कारण सरकार टिक नहीं पाएगी।

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