गजल 

मिल गया चैन दिल की सुनाए बगैर
भर गए जख्म मरहम लगाए बगैर

चांद उम्मीद का ढूंढने निकली जब
जल गए दीप मन के जलाए बगैर

खौफ था तेरे रूठ जाने का पर
बात फिर भी कही हिचकिचाए बगैर

आसुओं ने सुनाई जो मजबूरियां
हर पलक नम है आंसू बहाए बगैर

धूप सूरज से ये सोच कर मांग ली
बुझ न जाऊॅं कहीं जग-मगाए बगैर

पांव के वास्ते राह दुश्वार हो
पत्थरों पर चलो लड़खड़ाए बगैर

दिल मेरा बन गया आशियाना कनक
वो रहे जिसमें बरसों किराए बगैर

डॉ कनक लता तिवारी

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