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जिस पथ पे चला…

विमल मिश्र
मुंबई

कोलाबा, मरीन ड्रॉइव, हाजी अली, वर्ली, बांद्रा जैसी जगहों से गुजरते, चहलकदमी या ट्रैफिक सिग्नल पर इंतजार करते चौराहों पर ‘स्पिरिट ऑफ बॉम्बे’, ‘कोविड वॉरियर’, ‘कॉमन मैन’, ‘डिब्बावाला’, ‘डॉल्फिन’ जैसी आकृतियों पर आपकी नजर जरूर ठिठकी होगी। ऑपेरा हाउस की रेलिंग्ज, मझगांव और भिंडी बाजार के प्याऊ, भायखला चिड़ियाघर के लाइट स्टैंड और फोर्ट के वॉटर मीटर व बोलार्ड देखकर आपकी नजरों में प्रशंसा के भाव कौंधे होंगे। यह है पब्लिक आर्ट से आपका साबका। वास्तु की भाषा में स्ट्रीट फर्नीचर का हिस्सा, या ‘पथ-सज्जा’। दरअसल, रास्ते पर निकलने पर जितनी चीजों-रोड डिवाइडर, रेलिंग्स, बेस्ट के बस स्टैंड से लेकर बेंच, ट्रैफिक नियंत्रित करने के बोलार्ड, सिग्नेज, पोस्ट बॉक्स और टेलीफोन बूथ तक, फोन बॉक्स, स्ट्रीट लैंप, टैक्सी व बस स्टैंड से लेकर फाउंटेन, शौचालय-मूत्रालय और वेस्ट बास्केट व डस्टबिन, विज्ञापन, शॉप साइन, नियोन साइन, होर्डिंग तक-से आपका साबका पड़ेगा-सब कुछ पथ-सज्जा का ही हिस्सा है।
पथ बंधु…
लंदन के लाल टेलीफोन बूथ, पेरिस के स्ट्रीट लैंप और मेट्रो प्रवेश द्वार और अमेरिका के घरों के पोस्ट बॉक्स-आप देखकर ही जान जाते हैं कि आप किस देश में हैं।
महानगरों की पथ-सज्जा केवल अलंकरण या सजावट के लिए नहीं होती। इसका हेतु नागरिकों के लिए सुविधा की व्यवस्था भी होता है। मसलन, सड़कों के किनारे लगी बेंचें, जिन पर थक जाने पर बैठकर आप सुस्ता सकते हैं। शौचालय, मूत्रालय और कचरा पेटियां जरूरतों के साथ स्वास्थ्य व स्वच्छता के लिहाज से जरूरी हैं और नामपट, सूचनापट, सूचना बूथ और टेलिफोन बूथ बाशिंदों और पर्यटकों की मदद के लिहाज से। जब हमने मुंबई में पथ-सज्जा की पूछ-परख की तो निराशा ही हाथ लगी।
बस स्टॉप: बस का इंतजार करते समय बैठने या खड़े रहने की व्यवस्था के लिए बनाए जाने वाले स्टॉप, जिन्हें कुछ वर्ष पहले नई शैली मिली। रखरखाव ठीक न होने से इनमें से कई की हालत अच्छी नहीं है।
बेंच: मानक यह है कि बेंचों को पेड़ों की छाया में और पर्यावरण अनुकूल होने चाहिए। उन्हें मुख्य रास्तों पर नहीं, ऐसे स्थानों पर होना चाह‌िए जहां से राहगीर ज्यादा गुजरते हों। पर, मुंबई में कई जगहों से ये बेंचें सिरे से गायब हैं। बाकी कुछ जगहों पर आप इन्हें टूटी-फूटी हालत में देख सकते हैं। वर्ली वॉकवे पर लगी कई बेंचें कोस्टल रोड के निर्माण की भेंट चढ़ गई हैं।
टेलीफोन बूथ: मानक यह है कि हर २०० मीटर की दूरी पर एक टेलीफोन बूथ जरूर होना चाहिए। पर, मोबाइल के जमाने में अब इन्हें खोजना पड़ता है।
सार्वजनिक शौचालय और मूत्रालय: मुंबईकरों की सबसे बड़ी जरूरत और शायद सबसे अखरने वाली कमी भी, जबकि मानक यह है कि हर ६०० मीटर पर फुटपाथों पर कहीं एक शौचालय जरूर होना चाहिए।
प्याऊ: एक जमाने में मुंबई अपने खूबसूरत प्याऊ के लिए मशहूर था। पर, अब न तो प्याऊ बचे हैं, न वहां पानी का इंतजाम है।
सूचना फलक और संकेत चिह्न: ज्यादा यातायात वाले स्थानों, उद्यानों और सार्वजनिक स्थानों पर। उद्देश्य है टूरिस्ट नक्शों व परिवहन स्थानकों के साथ लोगों की पर्यटक व ऐतिहासिक स्थलों सहित इच्छित स्थान जाने में मदद करना। बांद्रा की टर्नर रोड के नामकरण संबंधी फलक कुछ समय पहले तक कचरे और मलबे से घिरा था, जबकि १९१३ में लगाया गया होने के कारण यह विरासत महत्व का है। पान की पीक के कारण इस पर लिखी इबारत पढ़ी जाने लायक नहीं थी। मुंबई के कई अन्य सूचना फलकों की हालत भी खराब है। मुंबई महानगरपालिका ने कुछ समय पहले ‘डी’ वॉर्ड से एक पायलेट प्रॉजेक्ट शुरू किया है, जिसके तहत मुंबई में प्रमुख स्थानों और बड़ी हस्तियों से संबद्ध स्थानों पर ‘लीगैसी प्लेक’ लगाई जानी है।
साइन बोर्ड: आप किसी खास इलाके के बारे में वहां कई इमारतों, दुकानों और अन्य प्रतिष्ठानों पर लगे साइन बोर्ड्स से काफी कुछ जान सकते हैं। कई बार तो उनकी लाइटिंग और सजावट आपके मार्गदर्शक का काम भी करती हैं।
कचरा पेटियां व निर्माल्य पेटियां: कचरे के निस्तार के लिए लगी पेटियां और उसे रिसाइकल करने के लिए डिब्बे। इसी तरह ़फूल-माला, जैसी पूजा सामग्री को संग्रह करने के लिए निर्माल्य पेटियां। नियम है कि कचरा पेटियां डिस्प्ले विंडो के ठीक सामने होनी चाहि‌ए और उन्हें इमारतों के प्रवेश और निकास द्वारों को अवरुद्ध नहीं करना चाहिए। साफ-सफाई के मामले में मुंबई की मौजूदा हालत उसकी शान के बिल्कुल अनुरूप नहीं है।
जंगले: पैदल चलने वालों के आवागमन पर अंकुश लगाने के साथ सुंदरता बढ़ाने के लिए पुलिस और अन्य एजेंसियों को सड़कबंदी और रेलिंग्ज की जरूरत होती है। व्यस्त रास्तों पर आप इनके दर्शन कर सकते हैं।
वृक्ष और फूल रक्षक: इसकी जरूरत हरियाली के साथ पौधों की रक्षा के लिए होती है।
बिक्री बूथ: जैसेमिल्क बूथ। हॉकरों के उत्पात से बचाने के लिए ये आवश्यक होते हैं।
रोशनी: रात्रि प्रकाश के लिए। सजावटी प्रकाश व्यवस्था सुंदरता बढ़ाने में भी सहायक। रात्रि में सीएसएमटी और बीएमसी जैसी जगहों की सज्जा में सहायक। भारी खर्च के कारण इनका उपयोग खास अवसरों तक ही सीमित होता है। (जारी)
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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