ख्वाहिशें

भूलाने की बेइंतहा कोशिशें हुई हैं।
खिलाफ मेरे कई साजिशें हुई हैं ।।
बहुत रोया जब याद में दिल उनकी ।
मुझको सताने मुसलसल बारिशें हुई हैं ।।
मेरा इश्क आजमाने की खातिर ।
अब चांद लाने की ख्वाहिशें हुई हैं ।।
यूं तो रोशन है हुस्न के रंगों से दुनिया ।
हमसफर उन्हें बनाने की फरमाइशें हुई हैं ।।
डॉ. वासिफ़ काज़ी , इंदौर

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