बहुमत खो चुकी भाजपा ने ‘एनडीए’ का दामन थामकर सरकार बना ली है। रविवार शाम नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। मोदी अपने भाषण में बार-बार कह रहे हैं कि यह सरकार मोदी की नहीं बल्कि अब ‘रालोआ’ यानी एनडीए की है। पिछले सात दिनों में मोदी ने नीतिश कुमार और चंद्राबाबू को खुश करने और गले लगाने का एक भी मौका नहीं छोड़ा। मोदी पुन: प्रधानमंत्री बने और उनके साथ भाजपा एवं घटक दलों के कुछ सदस्यों ने मंत्री पद की शपथ ली। इनमें अमित शाह, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, शिवराज सिंह चौहान, मनोहरलाल खट्टर, पीयूष गोयल, ज्योतिरादित्य शिंदे जैसे हर बार के नाम हैं। शिंदे गुट के प्रताप जाधव के घोड़ों ने गंगा स्नान किया। रामदास आठवले तो हैं ही। महाराष्ट्र से रक्षा खडसे, मुरलीधर मोहोल को मौका मिला है। केंद्रीय मंत्रिमंडल में खडसे का प्रवेश होना ये महाराष्ट्र में फडणवीस और गिरीश महाजन की कपटी राजनीति पर दिल्ली द्वारा लगाया गया करारा तमाचा है और ऐसा लगता है कि विनोद तावड़े ने इसके लिए विशेष प्रयास किए हैं। महाराष्ट्र में हम चाहेंगे वे ही मंत्री बनेंगे, ऐसा फडणवीस आदि लोगों को लगता था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। नारायण राणे, भागवत कर्हाड को मंत्रिमंडल में से नारियल दिया है। तेलुगु देशम और जनता दल यूनाइटेड के मंत्रियों को शामिल किया गया है, लेकिन तेलुगु देशम की दो मुख्य मांगें हैं। इसमें एक अहम मांग यह है कि अमित शाह के पास गृह विभाग नहीं होना चाहिए और लोकसभा के ‘स्पीकर’ का पद तेलुगु देशम के पास रहे। ये दोनों मांगें मोदी के नाक-कान काटने जैसी ही हैं। तेलुगु देशम को यह डर स्वाभाविक है कि सरकार स्थापित होते ही अमित शाह अपना पुराना खेल शुरू कर देंगे और संसद में तेलुगु देशम पार्टी को नष्ट कर देंगे। यही डर नीतिश कुमार को भी है इसलिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का नेता ही लोकसभा का ‘स्पीकर’ हो, ऐसी मांग जोरों में है। इसका मतलब यह है कि नई सरकार अविश्वास के आधार पर बन रही है। हालांकि, मोदी रालोआ के नेताओं को गले लगाने का नाटक कर रहे हैं, लेकिन इसके पीछे उनका स्वार्थ है। ये लोग भरोसा रखने लायक नहीं हैं, यही नीतिश और चंद्राबाबू को लगता है और यही सरकार की अस्थिरता पर मुहर है। बहुमत खो चुके मोदी ने शपथ समारोह का कार्यक्रम भव्यता से किया। उन्होंने राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में शपथ ली। मानो जैसे ‘चार सौ पार’ के नारे को चरितार्थ करके वे कसम खा रहे हों, ऐसा ही पूरा मामला था। असल में उन्होंने हारे हुए मन से शपथ ली, यही सच है। देशभर से भाजपा कार्यकर्ताओं को भीड़ जुटाने के लिए दिल्ली बुलाया गया और माहौल बनाने की कोशिश की गई। मोदी के सामने इस बार संसद में मजबूत विपक्ष है। मोदी के शपथ ग्रहण समारोह का ‘इंडिया’ गठबंधन ने बहिष्कार किया और इसे लेकर मोदी के चमचे विपक्ष को संसद और लोकतंत्र की परंपरा का ज्ञान दे रहे हैं। पहले बताएं कि मोदी ने इनमें से कौन सी परंपरा का पालन किया। जब मोदी प्रधानमंत्री थे, तब मोदी ने विपक्षी दलों के १५० सांसदों को निलंबित कर खाली बेंचों के सामने भाषण देने का पराक्रम किया था। मोदी या उनके लोगों ने संसदीय लोकतंत्र के किन संकेतों का पालन किया? जब मोदी को ‘रालोआ’ का नेता चुना गया तो पुरानी संसद के सेंट्रल हॉल में उनके भाषण से हर कोई निराश हो गया। अपने पहले ही भाषण में मोदी ने कांग्रेस और इंडिया गठबंधन पर निशाना साधा। इसकी जरूरत नहीं थी। वह आदमी खुद चुनाव हार चुका है। वाराणसी संसदीय क्षेत्र में किसी तरह जीत मिली। बहुमत गवां दिया फिर भी खुद का छिपाकर दूसरों का झुककर देखने की उनकी आदत गई नहीं। मोदी कुछ ऐसा कहेंगे जिससे देश को मार्गदर्शन मिलेगा यह उम्मीद गलत निकली। मोदी नकारात्मक विचारों के व्यक्तित्व हैं और दिन-रात उन्हीं नकारात्मक विचारों के जाल में उलझे रहते हैं। उनकी वाणी और विचारों में विष है और इस वजह से दस साल से देश में नकारात्मक ऊर्जा निर्माण हुई, इसे मानना ही होगा। मोदी और शाह को दूसरे का भला होता देखा नहीं देख जाता। ऐसे नकारात्मक विचार वाले लोग कभी भी देश और समाज का भला नहीं कर पाएंगे। देश पिछले दस वर्षों से इस नकारात्मक ऊर्जा का प्रकोप भुगत रहा है। नकारात्मक ऊर्जा देश में अशांति, भय, विवाद, झगड़े पैदा करती है। नकारात्मक ऊर्जा लोगों की सोचने-समझने की शक्ति को खत्म कर देती है। उन्हें बहरा और गूंगा बना देती है। लोगों को उदास, आलसी और कड़वा बनाती है। मोदी ने देश में नकारात्मक ऊर्जा निर्माण की, क्योंकि वे स्वयं उसी विचारधारा के हैं। मोदी-शाह ने देश में खुशहाली, उत्साह और विकास को खत्म करने के लिए सत्ता का इस्तेमाल किया। लोगों को मूर्ख, अंधभक्त बनाकर शासन करना और उसके लिए ताली-थाली बजाना ये नकारात्मकता का लक्षण है। कर भला तो हो भला, ये मोदी की वृत्ति नहीं है। इसीलिए नीतिश कुमार और चंद्राबाबू मोदी के साथ आ गए हों, तब भी उन्हें मोदी से भय लग रहा है। कामाख्या देवी को जैसे भैंसे की बलि चढ़ाई जाती है, वैसे ही क्या हमारी भी बलि दी जाएगी? इस डर से सभी सहमे हुए हैं। क्योंकि देश में नकारात्मक ऊर्जा का तीसरा पर्व शुरू हो गया है। ग्रहण लगने पर जो उदासीनता आती है, वैसा ही वातावरण है। थोड़ा इंतजार करना होगा।