खुशी अपने दिल में वो कब तक छुपाता?
धरती से मिलने जब भी वो आता
अंबर से पहले वो नीर बरसता
आवारा नहीं, वो ‘बादल’ कहलाता।
ग्रीष्म की तपिश शीत करने वो आता
प्यासों की प्यास हरने वो आता
स्वयं नहाये ना,नहलाने वो आता
पागल नहीं, वो बादल कहलाता।
पेड़ पौधों में जान फूंकने वो आता
बागों की रंगत लौटाने वो आता
स्याह काला आप, हरित क्रांति वो लाता
परोपकारी है वो जो बादल कहलाता।
परिदों को बारिश का मौसम सुहाता
पशु भी धारा में लोटपोट हो जाता
जल बिन जीवन अस्तित्व गंवाता
आभास विधाता का बादल करवाता।
प्रेयसी का सोया अहसास जगाता
फासले, ये दूरियां, करीब ले आता
उमड़-घुमड़ नभ पे नगाड़ा बजाता
देवी-देवों को संग अपने खूब नचाता।
बरखा को पृथ्वी की रानी बनाता
इक ऋतु उससे राज करवाता
बादल, वो बादल से बढ़कर है लोगों
सृष्टि का वो मेघराज कहलाता।
-त्रिलोचन सिंह अरोरा