रस्किन बाॅन्ड ने कहा है, ‘वह आदमी सबसे मजबूत है, जो अकेला खड़ा है !’ कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर यह सौ फीसदी खरी उतरती है। एक के बाद एक नामी-गिरामी, अनामी नेता कांग्रेस छोड़ते गए, शिखर पर काबिज भाजपा का दामन थामते गए। इसके बाद भी राहुल विचलित नहीं हुए। वे मजबूती से अपने मिशन में लगें रहे, चाहे परिणाम जो भी हो, उसकी परवाह नहीं की। सरकार ने चुनाव के पहले कांग्रेस को कमजोर करने के लिए खातों को फ्रीज कर दिया, नाना प्रकार से बाधाएं पैदा कीं, परिवारवादी के नाम पर प्रहार किए गए, अप्पू पप्पू की संज्ञा से मज़ाक उड़ानें में कोई कोर कसर नहीं रखी, मगर इन सबको किनारे रखते हुए अपनी संघर्ष यात्रा जारी रखी। वे कोई साथ न हो तो एकला चलो की धून पर आगे बढ़ते रहे। ऐसी विषम परिस्थितियों व पग पग पर विरोधी द्वारा बिछाए कांटों के बाद भी अपना हौसला नहीं खोया। वे साथी व कार्यकर्ता भी प्रशंसा के पात्र हैं, जिन्होंने हार में भी अपना पाला नहीं बदला। वे भी कंधे से कंधा मिलाकर कांग्रेस को मजबूत करने में लगे रहे। इतिहास उन्हें याद रखता है, जों हार हो या जीत, कांटे हो या फूल, परिस्थितियां अनुकूल हो या प्रतिकूल वह हिम्मत न हारे, अपनी विचारधारा पर डटा रहे। वही तों याद रखा जाता है ।
राहुल गांधी एक अकेले भाजपा एंड कंपनी के निशाने पर रहे, फिर भी वे भारी पड़े। इस चुनाव में जों भी कमजोर कड़ियां रहीं, उन्हें दुरुस्त कर और मजबूती से खड़ा होना होगा।
-हेमा हरि उपाध्याय ‘अक्षत’
उज्जैन