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ब्रेकिंग ब्लंडर : सच कहता है ये विज्ञापन

राजेश विक्रांत

सच में जमाना बदल गया है। पूरी तरह से बदल गया है। झूठ पैâलाने के लिए प्रसिद्ध विज्ञापन अब सच भी कहने लगे हैं और सच भी वे डंके की चोट पर कहते हैं। खुलेआम कहते हैं। देश का एक राष्ट्रीय दैनिक अखबार है, जिसकी टैगलाइन है बदलते जमाने का अखबार। उसने विज्ञापन छापने की दुनिया में क्रांति कर दी है। अखबार के पहले पन्ने पर एक विज्ञापन पिछले दिनों छपा। सच का प्रतीक विज्ञापन। इसमें लिखा था कि ‘बैल कोल्हू को मिला जनादेश।’ इस विज्ञापन के बाद जनादेश देने वाली जनता भी सवाल करने लगी कि जिसे ‘जनादेश’ मिला वह ‘कोल्हू का बैल‘ आखिरकार कौन है? उस कोल्हू का मालिक कौन है? उस बैल का मालिक कौन है? लेकिन ये पब्लिक है, ये जनता है वो सब जानती है। वो अच्छी तरह से जानती है कि कोल्हू का बैल है कौन?
आज के जमाने में विज्ञापन बाजार की दुनिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। एक आंकड़े के अनुसार, एक व्यक्ति रोजाना औसत २८० से ३१० विज्ञापन देखता है। विज्ञापन लोगों को सूचना, उत्पादों आदि के बारे में जागरूक करने का एक शानदार तरीका है इसलिए ज्यादातर विज्ञापन असत्य की राह पर चलते हैं। उनका मूलमंत्र है- सच को दबाया जाए, झूठ को पैâलाया जाए। हकीकत में अस्पताल में मरीज बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं न मिल पाने के कारण दम तोड़ता है, लेकिन विज्ञापनों में अत्याधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का डंका पीटा जाता है। बेरोजगारी प्रबल है, लेकिन विज्ञापनों में रोजगार मेले की सफलता बयान की जाती है। हम सभी ऐसे विज्ञापन भी देखते हैं जहां विज्ञापनदाता उपभोक्ता को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि एक उत्पाद आपके जीवन को पांच गुना बेहतर बना देगा और जब तक वे उत्पाद नहीं खरीद लेते तब तक उनका जीवन सुखमय नहीं होगा। ये तो वही बात हुई कि फुटपाथों पर रह रही जनता के सामने सरकारी आवास योजना की कामयाबी के कसीदे पढ़े जाएं। भुखमरी के आंकड़ों को १०० फीसदी फलों का जूस, बासमती चावल तथा हेल्थ ड्रिंक के विज्ञापनों से भुलाया जाए।
विज्ञापन आपकी खुशी का वादा करते हैं, बशर्ते कि आप बदले में पैसा खर्च करें, लेकिन हमें फोकट में ही एक विज्ञापन ने ये बता दिया है कि कोल्हू का कौन है? जिसे मतदान का रक्षा कवच हासिल है, जो बेहिसाब समस्याओं के बावजूद मौन की मच्छरदानी ताने हुए है और कुर्सी लोभी प्राणी के रूप में सारी दुनिया में नामचीन है।
जैसे ज्यादा विज्ञापनों के परिणाम से इंसान गैर जरूरी चीजों की खरीदारी कर लेता है, ठीक उसी तरह से हम मतदाताओं की जिम्मेदारी है कि जागरूक रहें अन्यथा कोई कोल्हू का जनादेश प्राप्त कर लेगा।

(लेखक तीन दशक से पत्रिकारिता में सक्रिय हैं और ११ पुस्तकों का लेखन-संपादन कर चुके वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं।)

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