अजय भट्टाचार्य
राष्ट्रपति भवन के भव्य खुले सभागार में मंत्री पद की शपथ लेने के ठीक एक दिन बाद खबर आई कि भाजपा के लिए केरल में कमल खिलाने वाले त्रिसूर सीट जीतकर लोकसभा पहुंचे अभिनेता सुरेश गोपी मंत्री पद छोड़ना चाहते हैं। क्योंकि उन्हें लगा कि जिस क्षेत्र में उन्होंने कदम रखा है वहां की तुलना में उनके मूल कारोबार अर्थात एक्टिंग की दुनिया में ज्यादा पैसा है, क्योंकि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व हम दो हमारे दो के लिए ही काम करता है। ऐसा अपन नहीं विपक्ष का कहना है। तो जैसे ही गोपी ने मंत्रीपद छोड़ने की इच्छा जताते हुए कहा कि वो एक्टिंग करना चाहते हैं, भाजपा नेतृत्व सक्रिय हुआ। उन्हें समझाने की कोशिश हुई, लेकिन नाम से सुरेश अर्थात सुरों के ईश मतलब देवताओं के राजा को कौन समझाए? तब किसी को ध्यान आया अपने सबसे बड़े नेता ही ने बताया था कि वे बायोलॉजिकल (जैविक) उत्पन्न नहीं हुए, बल्कि सीधे दिव्य विभूति के रूप में अवतरित हुए हैं। तुरंत अवतारीलाल से गुहार लगाई गई कि अब आप ही संभालो। तब उन्होंने (अवतारीलाल ने) गोपी से पूछा- क्यों छोड़ना चाहते हो मंत्री पद? ‘मुझे राजनीति से ज्यादा एक्टिंग में रुचि है, मैं वही करना चाहता हूं।’ गोपी ने जवाब दिया। ‘वह तो तुम अब भी यानी मंत्री पद पर बने रहते हुए भी कर सकते हो। मुझे ही देख लो पिछले १० साल से एक्टिंग ही तो कर रहा हूं।’ अवतार पुरुष ने समझाया। गोपी की शंका का समाधान हो चुका था। अभिनेता ने सोशल मीडिया पर अपडेट किया, ‘मैंने मंत्री पद छोड़ने की कोई इच्छा जाहिर नहीं की, यह विपक्ष की तरफ से पैâलाई गई अफवाह है।’
बुलबुला फूटा
भारतीय जनता पार्टी के पितृसंगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने मुखपत्र ऑर्गनाइजर के जरिए भाजपा की वर्तमान राजनीतिक हार का ठीकरा उसके बडबोले नेताओं के सिर पर फोड़ा है। संघ के आजीवन सदस्य रतन शारदा द्वारा लिखा गया लेख संगठन के प्रति भाजपा के रवैए को लेकर संघ परिवार के भीतर बेचैनी को व्यक्त करता है। शारदा ने लेख में कहा है, ‘यह मिथ्या अहंकार कि केवल भाजपा नेता ही ‘वास्तविक राजनीति’ समझते हैं और संघ के चचेरे भाई गांव के गंवार हैं, हास्यास्पद है।’ चुनाव नतीजों का ठीकरा भाजपा पर फोड़ते हुए लेख में कहा गया है, ‘२०२४ के आम चुनाव के नतीजे अति आत्मविश्वासी भाजपा कार्यकर्ताओं और कई नेताओं के लिए वास्तविकता की परीक्षा बनकर आए हैं। उन्हें यह एहसास नहीं हुआ कि प्रधानमंत्री का ४००+ का आह्वान भाजपा के लिए एक लक्ष्य और विपक्ष के लिए चुनौती था। लक्ष्य मैदान में कड़ी मेहनत से हासिल किए जाते हैं, सोशल मीडिया पर पोस्टर और सेल्फी शेयर करने से नहीं। चूंकि वे अपने बुलबुले में खुश थे मोदीजी के आभामंडल से झलकती चमक का आनंद ले रहे थे, इसलिए वे जमीन पर आवाज नहीं सुन रहे थे।’ शारदा ने सुझाव दिया है कि ‘नए जमाने के सोशल मीडिया-सहायता प्राप्त सेल्फी संचालित कार्यकर्ताओं’ द्वारा पुराने समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा ने भाजपा पर नकारात्मक प्रभाव डाला। भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने लोकसभा चुनावों में मदद के लिए संघ से संपर्क नहीं किया, जिसके कारण पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। ऑर्गनाइजर के नवीनतम संस्करण में प्रकाशित लेख में चुनाव परिणामों को ‘अति आत्मविश्वासी’ भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए वास्तविकता की परख बताते हुए सुझाव दिया है कि नेता सोशल मीडिया पर पोस्ट साझा करने में व्यस्त थे और जमीन पर नहीं उतरे। वे अपने बुलबुले में खुश थे और जमीन पर आवाज नहीं सुन रहे थे।
पुरंदेश्वरी अगली लोकसभाध्यक्ष!
केंद्रीय मंत्रिमंडल में विभागों के बंटवारे को लेकर अंतिम प्रक्रिया तय होने के साथ ही आंध्र प्रदेश भाजपा प्रमुख दग्गुनाती पुरंदेश्वरी का नाम १८वीं लोकसभा के अध्यक्ष पद के लिए चर्चा में है। पिछली दो लोकसभाओं में भाजपा को बहुमत मिला था और उस समय सुमित्रा महाजन और ओम बिरला अध्यक्ष थे। १८वीं लोकसभा के लिए जैसे-जैसे संख्या बल बढ़ता गया, भारतीय जनता पार्टी को समझ में आ गया कि सरकार बनाने के लिए उसे दो करीबी सहयोगियों- तेलुगू देसश पार्टी और जनता दल यूनाइटेड पर निर्भर रहना होगा। आंध्र प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और राजमुंदरी से सांसद दग्गुनाती पुरंदेश्वरी १८वीं लोकसभा के अध्यक्ष पद के लिए सबसे आगे चल रही हैं। सूत्रों के हवाले से विभिन्न खबरी गिरोह ने अनुमान लगाया है कि शपथ ग्रहण समारोह से उन्हें बाहर रखने का कारण संभवत: उन्हें लोकसभा अध्यक्ष नियुक्त किया जाना था।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)