सामना संवाददाता / पटना
पांच दिनों तक दिल्ली में करीब-करीब हाउस अरेस्ट रहने के बाद पटना पहुंचे बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार को पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों के गुस्से का शिकार होना पड़ा है। उनसे सवाल हो रहे हैं कि आप दिल्ली किंग मेकर बनने गए थे या जोकर! मोदी की चरण वंदना करने के बाद भी आपको एक भी ढंग का मंत्रालय नहीं मिला, न ही आपको स्पीकर पद देने का आश्वासन ही दिया गया है, तब आप दिल्ली से क्या हासिल करके आए हैं? कार्यकर्ताओं के इस जवाब पर नीतिश खेमें की ओर से ‘वेट एंड वॉच’ की सलाह के अलावा कोई समाधानकारक जवाब नहीं आ रहा है।
इस समय पटना में मुख्यमंत्री नीतिश कुमार को लेकर काफी रोष है। खासकर जनता दल युनाइटेड के उन कार्यकर्ताओं को, जिन्हें लग रहा था कि इस बार नीतिश बाबू किंग मेकर की भूमिका निभाएंगे और बिहार के लिए एक भारी-भरकम पैकेज लेकर लौटेंगे। परंतु हुआ इससे एकदम विपरीत केंद्र सरकार को १२ सांसदों का बल देनेवाली जेडीयू को बदले में मिला है एक मात्र कैबिनेट मंत्री, वो भी पंचायत राज, मत्स्य, पशुपालन व डेयरी का। उनसे बेहतर कैबिनेट मंत्रालय तो बिहार की एकमात्र सांसदवाली हम पार्टी के जीतनराम मांझी को मिला है। वहीं पांच सांसदों वाले चिराग पासवान को फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज जैसा महत्वपूर्ण कैबिनेट मंत्रालय दिया गया है। जबकि १२ सांसद देनेवाले नीतिश बाबू को एक हल्का सा कैबिनेट और एक राज्य मंत्री पद थमा दिया गया है। तकरीबन यही हाल तेलुगू देशम पार्टी का भी किया गया है। उन्हें भी १६ सांसदों के समर्थन के एवज में सिविल एवीएशन जैसा निष्प्रभावी कैबिनेट मंत्रालय व एक राज्यमंत्री का झुनझुना थमा दिया गया है। इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में सांसदों की संख्या के लिहाज से चंदे की राशि का अनुपात गिनानेवाले सत्ताधारी एनडीए की सरकार में सांसदों की संख्या के आधार पर घटक दलों को मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व देने की बात भूल गए हैं। इस आधार पर यही प्रतिनिधित्व दिया जाता तो चंद्राबूब नायडू को २ से ३ कैबिनेट और उतने ही राज्य मत्री पद मिलने चाहिए थे, जबकि नीतिश बाबू को कुल मिलाकर ४ से ५ कैबिनेट व राज्यमंत्री पद मिलने आवश्यक थे। ऐसा हुआ नहीं और जो मंत्रालय मिले भी तो प्रभावहीन, जिससे जदयू कार्यकर्ताओं का विरोध नीतिश बाबू को झेलना पड़ रहा है।
नायडू नड़ गए!
खबर यह है कि मंत्रिमंडल में विभाग बंटवारे के बाद से तेलुगू देशम पार्टी के अध्यक्ष चंद्राबाबू नायडू खासे नाराज हैं और वे केंद्र से नड़ गए हैं। नाराज नायडू को मनाने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं और डैमेज कंट्रोल को लेकर नीति बनाई जा रही है। सूत्रों का तो दावा है कि शायद चंद्राबाबू नायडू को स्पीकर पद दे दिया जाए या फिर आंध्र प्रदेश में उनकी करीबी रिश्तेदार डी पुरंदेश्वरी को लोकसभा अध्यक्ष बनाकर मामले को संभाल लिया जाए। हालांकि, वो आंध्र प्रदेश भाजपा की अध्यक्ष हैं तो चंद्राबाबू ने अभी तक इस पर हामी नहीं भरी है। सूत्रों का दावा है कि एनडीए सरकार में वैसे भी नीतिश कुमार से ज्यादा तवज्जो नायडू को दी जा रही है। ऐसे में बहुत संभव है कि नीतिश कुमार का स्पीकर वाला सपना टूट जाए और नायडू को मनाने के लिए उनकी रिश्तेदार वाला पांसा चल दिया जाए।