सामना संवाददाता / नई दिल्ली
लोकसभा चुनाव में करीब आधी सीटों तक सिमटने वाली भाजपा की हार के भले ही कई कारण गिनाए जा रहे हों, पर संघ से दूरी भी एक बड़ी वजह है। संभवत: यह पहला चुनाव है, जिसमें भाजपा ने प्रत्याशियों के चयन से लेकर चुनावी रणनीति तैयार करने तक में भी संघ से परामर्श नहीं लिया। लिहाजा, संघ ने भी खुद को अपने वैचारिक कार्यक्रमों तक ही समेटे रखा।
इसका भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा। यह पहला चुनाव था, जिसमें चुनावी प्रबंधन में संघ परिवार और भाजपा में दूरी दिखी। भाजपा ने किसी भी पैâसले में उससे परामर्श करने तक की भी जरूरत नहीं समझी। ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मौन साध रखा था। आमतौर पर चुनाव में जमीनी प्रबंधन में सहयोग करने वाले संघ के स्वयंसेवक इस चुनाव में शायद ही कहीं दिखे हों। माना जाता है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के बयान ‘भाजपा अब पहले की तुलना में काफी मजबूत हो गई है इसलिए उसे अब संघ के समर्थन की जरूरत नहीं है’ ने भी स्वयंसेवकों उदासीन कर दिया। संघ के एक पूर्व वरिष्ठ पदाधिकारी बताते हैं कि संघ अचानक तटस्थ होकर नहीं बैठा था।
कई उम्मीदवारों से असहमत था संघ
बताया जाता है कि संघ ने कौशांबी, सीतापुर, रायबरेली, कानपुर, बस्ती, आंबेडकरनगर, जौनपुर, प्रतापगढ़ सहित प्रदेश की लगभग २५ सीटों के उम्मीदवारों पर असहमति जताई थी। साथ ही बड़े पैमाने पर दूसरे दलों के लोगों को भाजपा में शामिल करने पर भी नाराजगी व्यक्त की थी।