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आज चुनाव हुआ तो महाराष्ट्र में २०३ से २२० सीटें जीतेगी महाविकास आघाड़ी!

-सत्ता के खिलाफ राज्य की जनता में छाया है आक्रोश

विधानसभा में आघाड़ी का तीन-चौथाई बहुमत हो सकता है, जबकि भाजपा ३५ से ३७ सीटों के बीच सिमट सकती है।’

सामना संवाददाता / मुंबई

लोकसभा चुनावों के नतीजों ने स्पष्ट कर दिया है कि महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन की हालत बेहद पतली है। इस आधार पर लगाए गए अनुमान के अनुसार, यदि आज महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव होते हैं तो महाविकास आघाड़ी २०३ से २२० सीटें आसानी से जीत सकती है। विधानसभा में आघाड़ी का तीन-चौथाई बहुमत हो सकता है, जबकि भाजपा ३५ से ३७ सीटों के बीच सिमट सकती है।
बता दें कि जिस तरह से भाजपा के कुख्यात चाणक्य ने महाराष्ट्र की अस्मिता के साथ खिलवाड़ किया है, यहां की जमीन से जुड़ी पार्टियों को धूर्तता से तोड़ा है, केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किया है और महाराष्ट्र के उद्योगों को गुजरात स्थानांतरित किया है, उससे यहां की स्थानीय जनता में बड़ा रोष है। यही रोष हालिया लोकसभा चुनावों में नजर आया, जहां सत्ता दल ४८ में से बमुश्किल १७ सीटें जीत पाया। वह भी तब जब उसने कई छोटे-मोटे दलों और सुपारीबाज राजनीतिज्ञों को भरपूर पैसा मुहैया करवा कर आघाड़ी को बड़ा नुकसान पहुंचाया। ईडी, आईटी और सीबीआई के जरिए आघाड़ी समर्थकों की कमर तोड़ने की कोशिश की। अन्यथा बहुत संभव है कि महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन दहाई के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच पाता।
-काम न आई ईडी, चुनाव आयोग और सीबीआई

१४८ विधानसभाओं में रहा भाजपा गठबंधन पीछे!
हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन कई विधानसभा क्षेत्रों में पिछड़ गया। आंकड़े बताते हैं कि चुनाव आयोग और ईडी, सीबीआई के दुरुपयोग के बाद भी भाजपा गठबंधन लोकसभा चुनावों में १८४ विधानसभाओं में पिछड़ गया। राज्य की २८८ में से १८४ विधानसभाओं ने उनके उम्मीदवारों को नकार दिया। वह भी तब, जब ये मतदान केंद्र की सरकार के लिए हो रहे थे। यदि ये महाराष्ट्र विधानसभा के लिए हो रहे होते तो निश्चित ही वह २१० से २१५ विधानसभाओं में हार चुके होते। परंंतु अब जिस तरह से भक्तों का भ्रम टूटा है, उस आधार पर गद्दार गुट के कई नेता-विधायक घरवापसी के इंतजार में बैठे हैं। यदि पार्टी आलाकमान उनकी घरवापसी करा लेता है तो महाराष्ट्र में साफ तौर पर आघाड़ी को तीन- चौथाई से अधिक बहुमत मिल सकता है। वह एक ऐतिहासिक जीत दर्ज कर सकती है। राज्य की दो प्रमुख पार्टियों शिवसेना और राकांपा को तोड़कर उन्हें आपस में लड़वाने का भी भाजपा को कोई लाभ मिलता नजर नहीं आ रहा है। उलटे जिनको उन्होंने साथ लिया, उन्हें भी खत्म कर दिया है, उस पर खुद भी खत्म हो चुके हैं।
अजीत पवार न घर के, न घाट के
महाराष्ट्र की राजनीति में अजीत पवार का दौर अब खत्म हो चुका है। वे इस लोकसभा चुनाव में अपनी गृह सीट से भी अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को नहीं जिता पाए। यहां तक कि उनकी खुद की विधानसभा में भी वो पिछड़ गईं। इससे पहले २०१९ में भी वे अपने बेटे को नहीं जिता पाए थे। इस लोकसभा में बमुश्किल उनके हाथ एक सांसद लगा, पर फिर भी मंत्री पद से वे वंचित रह गए। वे ही क्या, ७ सांसद देनेवाले शिंदे गुट को भी मोदी सरकार में राज्य मंत्री का एक झुनझुना पकड़ा दिया गया। अर्थात दोनों के कुल ८ सांसदों के बीच एक राज्य मंत्री, जबकि बिहार की ‘हम’ पार्टी के इकलौते सांसद जीतनराम मांझी को कैबिनेट मंत्री पद।
महाराष्ट्र में मोदी मैजिक खत्म
लोकसभा चुनावों के दौरान पीएम मोदी ने सबसे ज्यादा लक्ष्य महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश पर केंद्रित किया था। २०१९ में उन्होंने महाराष्ट्र में जहां ९ सभाएं की थीं, वहीं इस बार १९ सभाएं की थीं, जिनमें से १६ में उनके उम्मीदवार हार गए। उनके ओछे, नफरतपूर्ण, ऊटपटांग बयानों को जनता ने नकार दिया। जिन तीन सीटों पर उनके उम्मीदवार जीते भी तो वहां के मतदाताओं की परिस्थिति, स्थानीय प्रभाव व केंद्रीय एजेंसियों की करामात की वजह से। इस आधार पर यह स्पष्ट है कि महाराष्ट्र में मोदी का मैजिक शत-प्रतिशत खत्म हो चुका है।

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