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सरसंघचालक की फटकार!… लेकिन इससे कोई फायदा होगा?

सरसंघचालक मोहन भागवत ने भाजपा की क्लास तो ले ली, लेकिन क्या ऐसे क्लास लेने से भाजपा का मौजूदा चरित्र बदलने वाला है? जब तक भाजपा के सूत्र मोदी-शाह के हाथ में हैं, तब तक सरसंघ नेताओं की फटकार को चिकने घड़े पर पानी डालने के सिवा कुछ नहीं कहा जा सकता है। भागवत ने जनसेवक की भूमिका पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। जनसेवकों को अहंकार से दूर रहने की सलाह दी है। अब ये जनसेवक कौन है? जनसेवा के नाम पर अहंकार कौन पालता है? संघ भाजपा का मातृ संगठन है। भाजपा को वर्तमान स्थिति में लाने के लिए संघ के स्वयंसेवकों ने कड़ी मेहनत की। संघ वहां पहुंच गया है जहां भाजपा नहीं पहुंची। झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तर-पूर्व के सुदूर राज्य, इन सुदूर इलाकों में संघ के स्वयंसेवकों के अपार प्रयासों के कारण भाजपा ने जड़ें जमाईं और सफलता पाई। संघ ने अरुणाचल, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, असम जैसे राज्यों में काम किया। संघ झारखंड, छत्तीसगढ़ के जंगली इलाकों में है। मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भाजपा की शत-प्रतिशत सफलता संघ के निर्माण के कारण है, लेकिन पिछले दस वर्षों में मोदी-शाह ने संघ का इस्तेमाल केवल राजनीतिक लाभ के लिए किया। इस व्यापारिक जोड़ी ने दिखा दिया कि संघ का मतलब ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो’ है। भाजपा अध्यक्ष नड्डा ने कहा कि हमें संघ की जरूरत नहीं है। ये बयान देने की प्रेरणा उन्हें मोदी-शाह से मिली। अन्यथा डॉ. नड्‌डा में इस तरह का बयान देने की हिम्मत में नहीं है। पिछले दस वर्षों में भाजपा ने अपने चरित्र को दागदार किया है। द्रौपदी का चीरहरण कौरवों ने किया था, लेकिन भाजपा का चीरहरण गुजरात के दुर्योधन ने किया, किसी वक्त गुजरात के दुर्योधन भी संघ के विनम्र स्वयंसेवक थे। मोदी-शाह शासनकाल में संघ का पतन हुआ। संघ के कुछ प्रमुख लोगों को हर प्रकार से भ्रष्ट कर सिद्धांतों से भटका दिया गया। संघ के लोगों को पैसे के लेन-देन और ठेकेदारी में भी शामिल कर दिया। जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने खुलासा किया कि कैसे एक संघ नेता ३०० करोड़ रुपए के अनुबंध के लिए दबाव बना रहा था। इस बात का भी पता चला कि संघ नेता ने खुद गवर्नर मलिक को भारी रिश्वत देकर यह टेंडर हासिल करने की कोशिश की थी। यह संघ के व्यावसायीकरण करने और उसे अपने पैरों पर झुकाने की एक चाल थी और है। इसी पर सरसंघचालक ने खेद व्यक्त किया। २०२४ का चुनाव मोदी-शाह का अहंकार था। हम जीतेंगे। उन्हें अहंकार था कि उन्हें संघ नहीं चाहिए, उन्हें योगी नहीं चाहिए, उन्हें कोई नहीं चाहिए। वह अहंकार का बुलबुला फूट गया है। संघ नेतृत्व की भूमिका यह थी कि महाराष्ट्र में शिवसेना से संवाद और गठबंधन न टूटे। शिवसेना मूलत: हिंदुत्ववादी विचारों की पार्टी है और हिंदुत्व के मुद्दे पर भाजपा और शिवसेना एक साथ आए। संघ नेतृत्व की भूमिका थी कि यह गठबंधन न टूटे, लेकिन मोदी-शाह के अहंकार और व्यापारिक रवैए के कारण संघ की बात सुने बिना ही शिवसेना से गठबंधन तोड़ दिया गया। बाद में शिवसेना को तोड़ा और अजीत पवार से लेकर एकनाथ शिंदे आदि कई भ्रष्ट लोगों को भाजपा में शामिल कर संघ की नैतिक आधार को नष्ट कर दिया गया। संघ में भी मोदी-शाह ने चमचों की फौज तैयार कर दी थी, जिसकी वजह से इस मनमानी का किसी ने विरोध नहीं किया। मोदी जी हिंदुत्व के ब्रांड और शिल्पकार हैं, इस तरह का ढोल पीट कर उन्होंने संघ के हिंदुत्ववादी भूमिका को चुनौती दी। मोदी ने अनुच्छेद ३७० को हटाने का राजनीतिक पराक्रम किया, लेकिन कश्मीर में अशांति आज भी है और कश्मीरी पंडितों के हालात वैसे ही हैं। मोदी ने कश्मीरी पंडितों को लेकर अपना वादा पूरा नहीं किया। संघ को इस पर आक्षेप है। मणिपुर हिंसा के मामले में मोदी-शाह का कायराना रवैया संघ पचा नहीं पा रहा है। पहले संघ के कार्यकर्ता भाजपा की जीत के लिए कड़ी मेहनत करते थे। इस समय संघ कार्यकर्ता भाजपा के प्रचार से दूर रहे। मोदी और शाह ने उत्तर प्रदेश में योगी, राजस्थान में वसुंधरा राजे और मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को नजरअंदाज किया। महाराष्ट्र में नितिन गडकरी भी संघ को उतने ही प्यारे हैं। गडकरी को भी कैबिनेट से हटाने की योजना थी, लेकिन चूंकि भाजपा २४० पर अटक गई थी, इसलिए उन्हें गडकरी को कैबिनेट में लेना पड़ा। राजमाता विजयाराजे शिंदे की दानशीलता और परिश्रम से जनसंघ और भाजपा के बीज अंकुरित हुए। लेकिन उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाली वसुंधराराजे शिंदे को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया। एक समय संघ के सरसंघचालक और पदाधिकारी भाजपा शासित मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और केंद्रीय शासकों के कामकाज पर नजर रखते थे और भाजपा नेतृत्व संघ के इस पालकत्व को स्वीकार करता था। पिछले दस सालों में मोदी-शाह ने संघ की सोच, संघ संरक्षकता, नैतिकता की खुराक को झिड़क दिया है। वे अभिमान और अहंकार से ग्रसित हो गए। जब कोई जनसेवक अहंकार से ग्रस्त हो जाता है तो व जालिम जहर से भी खतरनाक होता है। मोदी खुद का उल्लेख प्रधानसेवक, चौकीदार आदि के तौर पर करते हैं। जो एक दिखावा निकला। उनका रवैया किसी अहंकारी बादशाह या शहंशाह जैसा था और उस अहंकार का आघात भाजपा के मातृ संगठन ‘संघ परिवार’ को पहुंचा। सरसंघचालक ने उसी अहंकार को फटकार लगाई, लेकिन क्या इससे कोई फायदा होगा?

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