मनमोहन सिंह
अग्निपथ योजना हालिया चुनाव प्रचार के दौरान विपक्ष के लिए एक बड़ा मुद्दा बनाए जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष पर सेना को राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था। गौरतलब है कि अब एनडीए सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी ने योजना की समीक्षा की मांग की है।
हालिया रिपोर्ट्स की मानें तो सैन्य मामलों के विभाग डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स (डीएमए) ने अग्निपथ योजना के परिणामस्वरूप मैनपावर की कमी की जांच शुरू की है। डीएमए ने दो साल तक इंतजार क्यों किया, यह दिलचस्प है, क्योंकि यह दिन के उजाले की तरह स्पष्ट था कि अस्वीकार्य कमियां पैदा होंगी, क्योंकि सैन्य भर्ती के लिए कोटा रिटायरमेंट की दर की पृष्ठभूमि में बेहद अपर्याप्त था। खासकर, भर्ती में लगभग तीन साल, कोविड-१९ महामारी के दौरान सूखा रहा।
आश्चर्य तो तब होता है कि जून २०२२ में जब परिवर्तनकारी अग्निपथ योजना की घोषणा की गई तो सेना प्रमुखों ने यह किस तरह मान लिया होगा कि इस योजना से सेना में होने वाली मैनपावर की कमी पूरी हो जाएगी। रिपोर्ट तो यह भी कहती है कि इस योजना को लेकर सेवा में भी आम सहमति नहीं बन पाई थी। हाल ही तक गोरखाओं को छोड़कर, पैदल सेना रेजिमेंटों में मैनपावर की मामूली कमी थी, लेकिन एलओसी और एलएसी पर इकाइयों का प्रबंधन करना आसान नहीं था।
३८ गोरखा बटालियनों के लिए साठ प्रतिशत मैनपावर नेपाल डोमिसाइल गोरखाओं (एनडीजी) की है। नेपाल ने अग्निपथ को चुपचाप अस्वीकार कर दिया था, जिसे एकतरफा-बिना किसी परामर्श के लागू किया गया था। हालांकि भर्ती यूके, भारत और नेपाल के बीच १९४७ की त्रिपक्षीय संधि के अनुसार है। पिछले महीने विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस बाबत एक बेतुका बयान दिया था। उन्हें कौन समझाए कि एनडीजी का भारतीय सेना में शामिल होना सिर्फ भर्ती नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक जुड़ाव और नेपाल में एक भारतीय धरोहर है। चार वर्षों से भर्ती के अभाव में कई गोरखा बटालियनों में अधिकृत संख्या से लगभग १०० सैनिक कम हैं। इसके अलावा ४० प्रतिशत इंडियन डोमिसाइल गोरख(आईडीजी) कोटा को कम कर दिया गया है।
भले ही सरकार अग्निपथ के परिणामी युवा प्रोफाइल को पेश करने के लिए उत्सुक है, लेकिन असली मकसद आधुनिकीकरण के लिए धन जुटाने के लिए वेतन और पेंशन बिलों में कटौती करना है। २०२३-२४ में, रक्षा आधुनिकीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास से संबंधित पूंजी परिव्यय १.६३ लाख करोड़ रुपए था, जबकि पेंशन के लिए १.३८ लाख करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे।
महामारी के लगभग तीन वर्षों तक कोई भर्ती नहीं होने से अकेले सेना में १,८०,००० सैनिकों की कमी हो गई। इसके अलावा सालाना अग्निवीर भर्ती लगभग ४२,००० (२८,००० सेना, ८,००० नौसेना और ६,००० एयर फोर्स) एक अलग कहानी बयां करती है। सेना २८,००० कर्मियों में से २५ प्रतिशत रिटेंशन के साथ चार साल के लिए भर्ती कर रही है, जो कि ७,००० है, जबकि लगभग ७०,००० हर साल सेवानिवृत्त होंगे। शीर्ष पर इसमें से २०२३ सेना के परिवर्तन और सही आकार का वर्ष था। २०२३ में १,८०,००० की कमी और वार्षिक कमी के अलावा अतिरिक्त १,००,००० सैनिकों की छंटनी की जानी थी। पिछले साल अप्रैल तक, इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ द्वारा लड़ाकू इकाइयों में १० प्रतिशत कम चुनाव का आदेश देने के बाद, मैनपावर की कमी चिंताजनक स्तर तक बढ़ गई थी।
सेना के आंतरिक सर्कल में इस बात से शायद ही कोई न वाकिफ हो कि इस योजना ने सशस्त्र बलों की परिचालन क्षमताओं को गंभीर रूप से कमजोर कर दिया है इसीलिए डीएमए ने एक आंतरिक सर्वेक्षण शुरू किया है। गंभीर मसला यह है कि बावजूद इसके सार्वजनिक तौर पर इसे स्वीकार करने कोई तैयार नहीं। सरकार तो कतई नहीं!