जयपुर से मायानगरी मुंबई का अकेले सफर करनेवाली श्रेया जैन आज टीवी का लोकप्रिय नाम बनती जा रही हैं। कलर्स के शो ‘उड़ारियां’ में अपनी पहचान बनाने आ रहीं श्रेया भाग्यशाली हैं कि उनके माता-पिता ने उन्हें अभिनय में जाने की इजाजत दी। पेश है, श्रेया जैन से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
– शो ‘उड़ारियां’ करने की कोई खास वजह?
सच तो यह है कि लेखकों के बल पर एंटरटेनमेंट की दुनिया चलती है, फिर चाहे वो टीवी हो, ओटीटी हो या फिल्मों की दुनिया। जब मेहनत के साथ लेखक एक किरदार को गढ़ते हैं, तो उन किरदारों को निभाना किसी भी कलाकार के लिए प्रेरणादायी होता है। जब इस शो के ऑडिशन के लिए मुझे बुलाया गया तो कहानी और किरदार के बारे में पता चलते ही इसे निभाने की इच्छा मन में जाग उठी।
-क्या है आपका किरदार?
मेरे किरदार का नाम है मेहेर। मेहेर एक ऐसी युवती है, जो हर हाल में किसी पर भी निर्भर रहना नहीं चाहती। यह निर्भरता चाहे आर्थिक हो या मानसिक। मेहेर बहुत स्वतंत्र विचारों वाली है। मैं खुद भी काफी हद तक मेहेर जैसी हूं। मुझे किसी पर भी निर्भर रहना पसंद नहीं, मेरे शब्दकोष में निर्भरता शब्द है ही नहीं। सच कहूं तो दुनिया में कोई भी व्यक्ति किसी पर निर्भर न रहे, सिवाय बच्चों के जब तक वो कमाने नहीं लगते।
-शो ‘उड़ारियां’ की कहानी में १५ वर्षों की लीप के कारण आपको कितनी तैयारी करनी पड़ी?
कहानी में १५ वर्षों का लीप निर्माता सरगुन मेहता ने तय किया है। उन्होंने पूरा ब्रीफ कलाकारों को दिया था इसलिए कोई मुश्किल नहीं आई। वैसे कहानी में लीप आना अब कोई अचरज की बात नहीं रही। अब यह कॉमन हो चुका है। मेहेर के किरदार के लिए मुझे दो-चार रेफरेंसेस बताए गए, जिससे मुझे आसानी हुई।
-आप कहती हैं ‘लीप’ कॉमन होता जा रहा है, लेकिन क्या कभी मेकर्स ने सोचा कि इससे कलाकारों पर फर्क पड़ता है?
कलाकारों के लिए यह सबसे बड़ा चैलेंज है और आगे भी रहेगा। चैनल, प्रोडक्शन हाउस, प्रोड्यूसर्स इन सभी की आपसी राय से लीप का निर्णय लिया जाता है और सभी का निर्णय कलाकारों को मानना पड़ता है। कहानी में अगर लीप यानी कहानी का १०-१५ साल आगे बढ़ना कन्फर्म हो जाता है तो उस नए बदलाव के ढांचे में खुद को नए सिरे से ढालना अपने आप में चुनौती है। इसे पॉजिटिव नजरिए से देखने की जरूरत है।
– एक शो के खत्म होने के बाद अगर दूसरा शो न मिले तो कलाकारों को होनेवाली परेशानी के बारे में आपका क्या कहना है?
इस गंभीर मुद्दे पर मैंने अभी सोचा नहीं है। इस वक्त जो मोमेंट्स हैं, उन्हें मैं एन्जॉय कर रही हूं। सिर्फ टीवी ही नहीं, बल्कि अभिनय-मॉडलिंग जैसे क्षेत्रों में असुरक्षा की भावना कई सीनियर कलाकारों में पनपती होगी। हो सकता है पिछली पीढ़ी के कई वरिष्ठ कलाकार काम करना चाहते होंगे, लेकिन उन्हें मौका न मिला हो। मैं बस इतना ही कहूंगी कि हम सब वक्त और किस्मत के हाथों की कठपुतलियां हैं, इन पर हमारा कोई बस नहीं चलता।
-क्या कोई शो आप ओटीटी के लिए करना चाहेंगी?
मनोरंजन का सबसे आसान विकल्प ओटीटी बन चुका है। आप लोकल ट्रेन या टैक्सी में बैठे हैं और आपको टाइम पास करना है तो आपके पास ओटीटी शो का विकल्प है। इस दुकान में कॉमेडी-ट्रैजिडी, थ्रिलर-रोमांटिक, पारिवारिक सब कुछ है। अभी तक मुझे ओटीटी के लिए कोई खास ऑफर नहीं आई है, मेरा सारा ध्यान ‘उड़ारियां’ पर टिका हुआ है।
-अपने बारे में कुछ बताएंगी?
मैं जयपुर, राजस्थान की रहनेवाली हूं। मैं शुरू से ही एक्ट्रेस बनना चाहती थी। जब मैंने घर पर अभिनय में जाने के बारे में अपना निर्णय सुनाया तो उन्हें ताज्जुब नहीं हुआ, वो सभी जानते थे कि मुझे एक्टर ही बनना है। मैंने बारहवीं के बाद लगातार ऑडिशन देना शुरू किया और मैं जानती थी कि अभिनय में जाना है तो बिना ऑडिशन यहां दाल नहीं गलनेवाली इसलिए लगातार ऑडिशन दे रही थी। मैं यह जानती थी कि आज नहीं तो कल मुझे मौका जरूर मिलेगा और हुआ भी वही। जब मुझे टीवी शो, एड फिल्म्स में पैसे मिलने लगे तो मैंने अपनी सारी कमाई घर के सदस्यों को दी क्योंकि इस पर उनका हक था।