मुख्यपृष्ठसमाज-संस्कृतिपुस्तक समीक्षा : हिंदुस्थान का गौरव वंदन `माटी का अभिनंदन'

पुस्तक समीक्षा : हिंदुस्थान का गौरव वंदन `माटी का अभिनंदन’

राजेश विक्रांत

प्रदीप पांथ कवि हैं, शिक्षक हैं, कथाकार हैं और पत्रकार हैं। वे पिछले कुछ सालों से निरंतर साहित्य सृजन में सक्रिय हैं। मूलत: अमेठी जिले की मुसाफिर खाना तहसील के पूरे पंडित मोहन राम तिवारी गांव के निवासी प्रदीप की अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। उनकी एक उल्लेखनीय कृति है `माटी का अभिनंदन’।
यह काव्यसंग्रह उन वीर सपूतों को समर्पित है, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। जिन्होंने अपने बलिदान से ही देश की माटी में राष्ट्रभक्ति भाव का बीज बोया है। अपने शीषों का बलिदान करने के बावजूद भी जिनका नाम इतिहास के पन्नों में आज तक गुमनाम रहा है। शायद इसीलिए पुस्तक में एक ही शीर्षक की ५१ कविताएं हैं या यूं कहें एक लंबी कविता के ५१ खंड हैं।
इस पुस्तक का महत्व उस युवा पीढ़ी के लिए ज्यादा है जो अपने महान देश, अपने संस्कारों की महत्ता को भूलती जा रही है। क्योंकि `जान, मान, सम्मान, शान तू, हम सबका अभिमान है, मस्तक का शीतल चंदन तू, जीवन वृत्त विधान है। तू मेरा ईमान धर्म और तू ही दया निधान है, मातृभूमि की पावन माटी तुझको कोटि प्रणाम है।’ इसलिए यह कृति साहित्य की रचना मात्र न होकर हिंदुस्थान भूमि की गौरव गाथा है। इसके माध्यम से लोगों का ध्यान देश की गौरवशाली परंपरा, संस्कृति और इतिहास की ओर आकृष्ट किया गया है। इस काव्यांजलि में जंबूद्वीप के भरतखंड की उस रम्य धरा का वर्णन है, जिस पर ईश्वर ने मानव के कल्याणार्थ अधर्म का नाश कर धर्म की पुनर्स्थापना करने लिए बार-बार अवतार लिया है। एक उदाहरण देखिए- बौधायन का शुल्व शास्त्र ज्यामिति के सूत्र बताता है। पाइथागोरस और यूक्लिड को बाद में जाना जाता है। ऋषि कणाद में सबसे पहले परम अणु की बात कही। ऋषि भारद्वाज ने अपने ग्रंथ में वायुयान तकनीक लिखी।
भास्कराचार्य ने गुरुत्वशक्ति न्यूटन से पहले देख लिया। सिद्धांत शिरोमणि में जिसका सबसे पहले उल्लेख किया। ज्ञान हमारे ऋषियों मुनियों का सबसे सर्वोतम है। हे मातृभूमि, तेरी माटी का बार बार अभिनंदन है। कवि प्रदीप पांथ ने देश की सारी खूबियों को कलमबद्ध किया है। उनका बिंब विधान, अलंकार योजना व विशेषण प्रयोग उनके शब्द भंडार से मिलकर कई गुना बढ़ जाता है। उनके काव्य सामर्थ्य का एक और उदाहरण देखिए- माया नामक पुरी शिवालिक की गोदी में बसती है। कपिल मुनि की तपोभूमि में गंगा जहां विचरती है। सागर मंथन का अमृतघट विश्वकर्मा से छलका है। ब्रह्मकुंड के मज्जन से जहां पाप कर्म सब धुलता है। विदुर जहां मैत्रेय मुनि से तत्व जान को लेता है। बद्री और केदारनाथ का द्वार जहां पर खुलता है। हरि‌द्वार के नाम से उसका आज हो रहा गुंजन है। कुल मिलाकर प्रदीप पांथ ने हिंदुस्थान को माटी का अभिनंदन प्रदानकर गौरवान्वित किया है। पुस्तक में एक लेख व शब्दकोश भी है। ६० पृष्ठ की पुस्तक की कीमत १४९ रुपए है। इसे नोशन प्रेस ने प्रकाशित किया है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक मामलों के जानकार हैं।)

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