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न्यूरो के पीजी छात्रों का ज्ञान बढ़ा रहा समर स्कूल…अपने गुण सिखा रहे राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ…हिंदुस्थान में शामिल हुए २०० छात्र

सामना संवाददाता / मुंबई

हिंदुस्थान के तमाम मेडिकल कॉलेजों में पढ़नेवाले न्यूरो के पीजी छात्रों को भले ही शिक्षाएं दी जाती हैं, लेकिन इससे भी आगे जाकर न्यूरो में छात्रों के ज्ञान को और बढ़ाने के लिए बीते दस सालों से चल रहे इंडियन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी समर स्कूल चला रही है। इसके माध्यम से अब तक करीब दो हजार न्यूरो के छात्रों का समर स्कूल के माध्यम से ज्ञान बढ़ाया गया है। इसमें सबसे खास बात यह है कि सेमिनार में न्यूरो से जुड़ी बीमारियों के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पारंगत विशेषज्ञ अपने गुणों को इन छात्रों में पहुंचा रहे हैं। इस साल भी २०० छात्र समर स्कूल में शामिल हुए।
उल्लेखनीय है कि इंडियन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी में ४,५०० सदस्य है। इसके माध्यम से हर साल न्यूरोलॉजी के मेडिकल छात्रों के लिए विशेष समर स्कूल कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इस साल भी पूरे हिंदुस्थान के कॉलेजों के डीएम और निजी अस्पतालों में डीएनबी न्यूरोलॉजी के २०० मेडिकल पीजी छात्र शामिल हुए है। इस कार्यक्रम का आयोजन आईएएन के पूर्व अध्यक्ष व एपिलेप्सी फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. निर्मल सूर्या के नेतृत्व में किया गया। इस बीच आईएनए के मौजूदा अध्यक्ष डॉ. देवाशीष चौधरी ने कहा कि मेडिकल कॉलेजों में छात्रों को भले ही प्रोफेसरों द्वारा शिक्षित किया जाता है, लेकिन हमारा उद्देश्य खास किस्म के टीचिंग करिकुलम इंस्टॉल करने की कोशिश है। इसके तहत इंडियन अकेडमी में शामिल एपिलेप्सी, स्ट्रोक, डिमेंशिया, हेडेक समेत न्यूरो से संबंधित राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञ अपने-अपने विषयों को प्रस्तुत कर रहे हैं। इससे छात्रों में नए सिरे से जागरूकता पैदा होती है। डॉ. देवाशीष ने कहा कि पीजी के छात्र मरीज का इलाज करते हुए उन्हें ठीक करते हैं, लेकिन उनका डेफिनेटिव गोल्ड डायरेक्ट टीचिंग नहीं हो पाती है। इसे समझाने के लिए एक डायरेक्टिव लेक्चर होता है, जिसमें किसी एक विषय पर सरलता से समझाते हुए विशेषज्ञ लेक्चर देते हैं।

स्ट्रोक के बढ़े केसेस
सरकारी अस्पतालों में थ्रोबोलिसिस का इलाज अब गंभीरता से किया जा रहा है। स्ट्रोक के केसेस बढ़ने के मुख्य कारण इसे लेकर अवेयरनेस की काफी कमी है। साथ ही समय पर हाइपरटेंशन और डायबिटीज की जांच कर पता नहीं लगाया जाता है। देश में तीसरे या चौथे दशक में जीवन पहुंचने के बाद ही बड़ी संख्या में लोग हाइपर टेंशन और डायबिटीज के शिकार हो रहे हैं, लेकिन कोई भी व्यक्ति इस समय में दोनों की जांच नहीं करवाता है इसलिए स्ट्रोक के मामले बढ़े हैं। ऐसे में प्राइमरी लेवल पर इसका पता लगाना बहुत जरूरी है।
जीवनशैली भी बनी कारण
आज लोगों की आदतों में भारी बदलाव देखा जा रहा है। आज लोगों में स्मोकिंग और अल्होकल के मामले बढ़ गए हैं, जबकि एक्सरसाइज कम हो गए हैं। खेती और मजदूरी के काम भी कम हो गए हैं। लोग टीबी और मोबाइल फोन पर अधिक समय बिता रहे हैं। खान-पान में भी परिवर्तन आए हैं। इसीलिए आज हिंदुस्थान दुनिया में डायबिटीज का वैâपिटल बन गया है। इसे कम करने के लिए जागरूकता और प्राथमिक स्तर पर इन्हें पकड़ना बहुत जरूरी है। स्किमिंग और हैमरिंग नामक दो तरह के स्ट्रोक होते हैं। पहले वाले में नस में खून की आपूर्ति बंद हो जाती है, जबकि दूसरे में नसें फट जाती हैं। स्किमिक स्ट्रोक के लिए कई दवाएं मौजूद हैं।

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