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एक प्रदेश, एक यूनिफार्म योजना फेल… ४८ लाख विद्यार्थी नई यूनिफार्म से वंचित…पुरानी ड्रेस से चलाना होगा काम

सामना संवाददाता / मुंबई

प्रदेश में कल स्कूलों का पहला दिन था। सरकार द्वारा तय की गई नीति के अनुसार ‘एक राज्य एक समान’ की नीति है। नीति के अनुसार, प्रत्येक छात्र-छात्रा को राज्य सरकार द्वारा सिलवाई गई ड्रेस भेजने का भी आदेश जारी किया गया था, लेकिन सरकार का आदेश सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गया। वास्तव में स्कूलों में छात्र-छात्राओं तक सरकार की ड्रेस नहीं पहुंच पाई है। राज्य के लगभग ४८ लाख छात्र-छात्राएं पहले दिन अपनी नई यूनिफार्म से वंचित रह गए। प्रदेश के प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के करीब ४८ लाख विद्यार्थियों को यूनिफॉर्म दी जानी थी।
सरकारी निर्णय के मुताबिक, राज्य सरकार ड्रेस सिलवाकर भेजनेवाली थी, लेकिन यह संभव नहीं हो सका। बाद में सरकार ने स्थानीय स्तर पर पोशाक सिलवाने का निर्देश जारी किया, सरकार की ओर से आवश्यक कपड़ा भेजा जाएगा। इसके बाद फिर निर्णय में बदलाव करते हुए उन्हें स्वयं सहायता समूह के सहयोग से ड्रेस सिलवाने और छात्रों में वितरित किए जाने का निर्देश दिया गया, लेकिन वह कपड़ा भी अभी तक नहीं पहुंच सका और स्वयं सहायता समूह के लोग भी नियुक्त नहीं हो पाए। अंतत: हालत यह हुई कि स्कूल शुरू होने के पहले दिन प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के करीब ४८ लाख विद्यार्थियों को यूनिफॉर्म नहीं मिल पाई इसलिए इन छात्रों को पहले दिन ही पुरानी यूनिफॉर्म में ही आना पड़ा। ऐसे में जिन विद्यार्थियों के पास फटी हुई यूनिफॉर्म है, उन्हें अब नई यूनिफॉर्म के लिए इंतजार करना होगा।
‘एक प्रदेश एक गणवेश’ योजना के तहत यह आदेश प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों के लिए लागू कर दिया गया है। नि:शुल्क शिक्षा अधिनियम के अनुसार, १४ वर्ष तक के सभी बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा, नि:शुल्क किताबें, नि:शुल्क ड्रेस दी जानी है, लेकिन पहले ही दिन ये सब गड़बड़ होने की तस्वीर देखने को मिल रही है। जिला परिषद के सीईओ के अनुसार, अभी कपड़ा आने में ही एक महीने से अधिक समय लगेगा, ऐसे में कपड़ा सिलवाने और उसे छात्रों तक पहुंचाने में काफी वक्त लग सकता है।
अभिभावकों का विरोध
शासन की नीति के अनुसार, १,२०० स्वयं सहायता समूहों का चयन किया गया है, लेकिन जिला परिषद सीईओ का कहना है कि कपड़ा आने पर ही इन्हें सिलवाया जा सकेगा। अभिभावक एसोसिएशन का कहना है कि सरकार का यह पैâसला गलत है। पुराने तरीके से एक ड्रेस के चार सौ रुपए मिलते थे। विद्यालय समिति स्थानीय स्तर पर कपड़ा खरीदती थी। अभिभावक संगठनों का कहना है कि यूनिफॉर्म सिलकर छात्रों को देने का यह सही तरीका है। सरकार ने नियम तो बदल दिया, लेकिन उस पर अमल नहीं होने के कारण इन विद्यार्थियों का पहला दिन उसी पुरानी वर्दी में ही गुजरा है।

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