धीरेंद्र उपाध्याय
बेटियां पापा के दिल के बहुत करीब होती हैं इसीलिए ही वे पापा की परी कही जाती हैं। वे जरूरत पड़ने पर अपनी जिंदगी तक न्योछावर करने के लिए तत्पर दिखाई देती हैं। कुछ इसी तरह की घटना मुंबई में सामने आई है, जिसमें जानलेवा बीमारियों से जूझ रहे अपने पिता को लीवर का कुछ हिस्सा दान कर बेटी ने जान बचाई है।
नासिक के निवासी ४५ वर्षीय जितेंद्र परदेशी ने कहा कि वे पिछले तीन साल से क्रोनिक लीवर रोग, हेपेटिक एंसेपैâलोपैथी (यकृत से संबंधित मस्तिष्क की शिथिलता), जलोदर और गुर्दे की विफलता से पीड़ित थे। पिछले साल पीलिया होने से उनका स्वास्थ्य और भी खराब हो गया। उन्हें खून की उल्टियां होने लगीं और यहां तक कि खून पतला होने के कारण स्ट्रोक का भी सामना करना पड़ा। उनका परिवार विशेषकर उनकी बेटी उन्हें इस हालत में देख नहीं पा रही थी। इसके बाद बेटी श्रुति अपने पिता को मुलुंड के फोर्टिस अस्पताल ले आई। पिता की गंभीर स्थिति को समझने के बाद बेटी श्रुति ने स्वेच्छा से अपना लीवर दान करने का पैâसला किया। लेकिन सर्जरी से पहले जांच के दौरान देखा गया कि उसकी शारीरिक रचना अलग थी। आम तौर पर लीवर के दाएं और बाएं हिस्से में रक्त की आपूर्ति अलग-अलग होती है। लेकिन श्रुति के मामले में उसके लीवर के बाएं हिस्से को आंशिक रूप से दाहिनी ओर की रक्त वाहिकाओं द्वारा आपूर्ति हो रही थी। इसका मतलब यह था कि यदि प्रत्यारोपण के लिए उसके लीवर के दाहिने हिस्से का उपयोग किया जाता तो लीवर का बायां हिस्सा प्रभावित हो सकता था। इस वजह से फोर्टिस अस्पताल के डॉक्टरों ने प्रत्यारोपण के लिए उसके लीवर के केवल दाहिने आधे हिस्से का उपयोग करने का निर्णय लिया।
लीवर ट्रांसप्लांट और एचपीबी सर्जरी विभाग के निदेशक डॉ. गौरव गुप्ता ने कहा कि इस मामले में हमें दो चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सबसे पहले लड़की की अनोखी शारीरिक रचना थी, जिसकी शायद ही कभी सर्जरी हो सकती थी। इस प्रकार की डोनर सर्जरी में हम लीवर का दाहिना भाग (लीवर का ६० से ६५ प्रतिशत हिस्सा) लेने के बजाय, लीवर का दाहिना आधा हिस्सा (लगभग ३० से ३५ प्रतिशत लीवर) लेते हैं। इससे डोनर सर्जरी चुनौतीपूर्ण हो जाती है। आम तौर पर एक प्राप्तकर्ता रोगी को जीवित रहने के लिए लगभग ५०० से ६०० ग्राम वजन वाले लीवर की आवश्यकता होती है। ऐसे में हम मरीज को सिर्फ ३७० ग्राम वजन का लीवर ही दे सके, जो वजन में बहुत कम था, लेकिन हमने चुनौतियों पर काबू पा लिया और सर्जरी सफल रही। सर्जरी के बाद मरीज और दाता नासिक लौट गए हैं। साथ ही दोनों की अच्छी रिकवरी हो रही है।
एक इंजीनियर और एक आईटी कंपनी की मालकिन श्रुति ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मेरे पिता को बार-बार बीमार पड़ते देख मैं बहुत दुखी हो रही थी। मुझे पता था कि उन्हें ठीक होने के लिए स्थायी उपचार की आवश्यकता है। इसके बाद जब हमें ट्रांसप्लांट के बारे में बताया गया तो मैंने तुरंत अपना लीवर दान करने का पैâसला किया, क्योंकि मैं अपने पिता को स्वस्थ देखना चाहती थी। सर्जरी के बाद से वह सक्रिय हैं और अच्छा जीवन जी रहे हैं। चिकित्सकों ने कहा कि एहतियातन तौर पर जितेंद्र को आवश्यक दवा लेने और स्वस्थ जीवन शैली का पालन करने की सलाह दी गई है।