मुख्यपृष्ठनए समाचारशिक्षा और राजनीति में कब खत्म होगा जेंडर गैप?

शिक्षा और राजनीति में कब खत्म होगा जेंडर गैप?

मनमोहन सिंह

भले ही दुनियाभर में लैंगिक समानता बढ़ती जा रही है और वैश्विक तौर पर जेंडर गैप २०२४ में ६८.५ प्रतिशत पर थम गया है, लेकिन यह चिंताजनक है। इसके बदलाव की रफ्तार पर नजर डालें तो यह समझा जा सकता है कि यह उतनी नहीं है, जितनी जरूरत है। २०२३ में यह ६८.४ प्रतिशत थी।
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) द्वारा पिछले सप्ताह जारी ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में बताया गया है कि इस दर से पूर्ण समानता तक पहुंचने में १३४ साल लगेंगे! आइसलैंड ने अपना रैंक (९३.५ प्रतिशत) बरकरार रखा है और आइसलैंड की एकमात्र अर्थव्यवस्था भी है, जिसने अपने जेंडर गैप को ९० प्रतिशत से अधिक कम कर दिया है। १४६ देशों में से भारत दो स्थान फिसलकर १२९वें स्थान पर आ गया है। पिछले साल २०२२ में १३५ से आठ स्थानों की छलांग लगाने के बाद यह १२७वें स्थान पर था। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने २०२४ में अपने जेंडर गैप का ६४.१ प्रतिशत कम कर लिया है, जिससे नीति-निर्माताओं के पास बेहतर करने के लिए अवसर है। रिपोर्ट के अनुसार, `मामूली गिरावट’ मुख्य रूप से शिक्षा और राजनीतिक सशक्तिकरण के क्षेत्र में `छोटी गिरावट’ की वजह है। १४० करोड़ से अधिक की आबादी में दो कदम भी पीछे हटने का मतलब चौंका देने वाला आंकड़ा है। हालांकि, भारत ने पिछले कुछ वर्षों में आर्थिक भागीदारी और अवसर में थोड़ा सुधार दिखाया है, लेकिन २०१२ के ४६ प्रतिशत के स्कोर से मेल खाने के लिए इसे ६.२ फीसदी अंक अधिक की आवश्यकता होगी।
लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (४५.९ प्रतिशत) में जेंडर गैप को पाटने के जरिए के रूप में यह एक तरीका होगा। ऐसा करने के लिए यह सुनिश्चित करने से लेकर कि लड़कियां उच्च शिक्षा ग्रहण करें। इसके लिए उन्हें नौकरी कौशल प्रदान करना, कार्यस्थल पर सुरक्षा सुनिश्चित करना और शादी के बाद घर के कामों के लिए जिम्मेदारी साझा करके नौकरी बनाए रखने में मदद करना जैसे कई उपाय होने चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में पुरुषों और महिलाओं की साक्षरता दर के बीच का अंतर १७.२ प्रतिशत है, जिससे भारत इस सूचकांक में १२४वें स्थान पर है। भारत ने राजनीतिक सशक्तीकरण सूचकांक में बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अब भी कम है। पुष्टि के लिए फिलहाल नवनिर्वाचित लोकसभा के अलावा और कहीं न देखें। करीब ८०० महिला प्रतियोगी मैदान में थीं, लेकिन संसद में महिला सदस्यों की संख्या ५४३ सदस्यों में से ७८ (२०१९) से घटकर ७४ हो गई है, जो कुल का १३.६ प्रतिशत है। ये आंकड़े अभी लागू होने वाले महिला आरक्षण विधेयक, २०२३ की पृष्ठभूमि में अच्छे संकेत नहीं हैं, जिसका उद्देश्य महिलाओं के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें आरक्षित करना है।
भारत सहित सभी खराब प्रदर्शन करने वाले देशों को डब्ल्यूईएफ की प्रबंध निदेशक सादिया जहीदी के शब्दों पर ध्यान देना चाहिए। जहीदी ने कहा है कि सरकारों को आवश्यक ढांचागत स्थितियों को मजबूत करने की जरूरत है, ताकि व्यापार और नागरिक समाज मिलकर काम कर सकें और जिसकी वजह से लैंगिक समानता एक आर्थिक अनिवार्यता बन जाए।

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