प्रमोद भार्गव
लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद मध्य प्रदेश में होने जा रहा अमरवाड़ा विधानसभा सीट पर चुनाव मुख्यमंत्री मोहन यादव के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। यहां के कांग्रेस विधायक कमलेश शाह लोकसभा चुनाव के ठीक पहले दलबदल करके भाजपा में शामिल हो गए थे। उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। परिणामस्वरूप अमरवाड़ा समेत विदिशा जिले की बुधनी सीट पर भी चुनाव होना है। यहां से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विधायक चुने गए थे। किंतु उन्होंने विदिशा लोकसभा सीट से संसद का चुनाव लड़ा और सवा ८ लाख वोट से चुनाव जीत भी गए। अब शिवराज केंद्र में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री हैं।
बुधनी सीट भाजपा के लिए चुनौती नहीं है, क्योंकि यहां शिवराज सिंह का प्रभाव है। नतीजतन, भाजपा की जीत तय है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि शिवराज के बड़े बेटे कार्तिकेय सिंह को यहां से टिकट दिया जा सकता है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का परिवारवाद के विरुद्ध जारी अभियान के चलते कार्तिकेय को टिकट मिलना मुश्किल है। विदिशा से सांसद रमाकांत भार्गव का टिकट काटकर शिवराज को दिया गया था। अतएव यहां से भार्गव को भी टिकट दिया जा सकता है। कार्तिकेय को टिकट मिलना इसलिए भी पक्का नहीं माना जा रहा है, क्योंकि यदि उन्हें टिकट दिया गया तो मध्य प्रदेश ही नहीं देश के अन्य भाजपा नेता भी अपने परिजनों के लिए टिकट लेने की कतार में लग जाएंगे। यहां विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर, पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव, नरोत्तम मिश्रा तथा नगरीय निकाय एवं सहकारिता मंत्री वैâलाश विजयवर्गीय के पुत्र टिकट की कतार में पहले से ही लगे हुए हैं। दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के पुत्र महाआर्यमन भी भविष्य में टिकट लेने की पृष्ठभूमि की तैयारी में लग गए हैं। गोया, कार्तिकेय को टिकट मिला तो भाजपा की परिवारवाद को नकारने की राजनीति ध्वस्त हो जाएगी। प्रदेश में उपचुनाव का मतदान १० जुलाई को होना है। मतों की गिनती १३ जुलाई को होगी।
गौरतलब है कि प्रदेश लोकसभा चुनाव के ठीक पहले कमलनाथ के गढ़ कहे जाने वाले छिंदवाड़ा जिले में भाजपा बड़ी सेंधमारी करने में सफल हो गई थी। कमलनाथ के अत्यंत करीब माने जाने वाले विधायक कमलेश प्रताप शाह ने एकाएक पार्टी से त्यागपत्र दिया और पत्नी व बेटी समेत भाजपा की सदस्यता ले ली थी। नतीजतन, यह सीट खाली हो गई। उनकी पत्नी माधवी शाह हर्रई नगरपालिका की पूर्व अध्यक्ष और बहन केसर नेताम जिला पंचायत की सदस्य रहते हुए मोहन यादव के निवास पर पहुंचकर भाजपा में शामिल हो गए थे। शाह के इस्तीफे के चलते कांग्रेस के पास अब विधानसभा में ६५ सीटें शेष रह गई हैं। शाह का इस्तीफा कमलनाथ के लिए बड़ा झटका था। क्योंकि शाह को राजनीति का पाठ और विधानसभा में जीत कमलनाथ के बूते ही मिलती रही है। लिहाजा, उन्हें भी अमरवाड़ा से कांग्रेस प्रत्याशी को जिताने में बडी कठिनाइयों का सामना करना होगा। कांग्रेस ने अभी तक यहां से प्रत्याशी के नाम की घोषणा तो नहीं की है, लेकिन कमलनाथ ने तीन नाम का पैनल बना दिया है। ये नाम हैं, एकलव्य अहाके, चंपालाल खुर्चे और विनय भारती। नाम तय करने की जवाबदेही प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व ने कमलनाथ पर ही डाली हुई है। जब टिकट उनकी पसंद के हिसाब से मिलेगा, तो जिताने की जवाबदारी भी उन्हीं पर थोप दी जाएगी।
कमलनाथ संभवत: अपनी लंबी राजनीति की सबसे कठिन अग्नि परीक्षा के दौर से गुजर रहे हैं। दरअसल, २०१८ के विधानसभा चुनाव में कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की जोड़ी ने शिवराज सिंह को सत्ता से बेदखल करने में कामयाबी हासिल कर ली थी। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया को किनारे करने की राजनीति कमलनाथ और दिग्विजय को महंगी साबित हुई। २०१९ में गुना से लोकसभा का चुनाव हारे सिंधिया को न तो राज्यसभा का टिकट दिया गया और न ही प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई। यह उपेक्षा सिंधिया को खल गई। लिहाजा, उन्होंने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से दल बदल की सांठ-गांठ कर कमलनाथ को पटखनी दे दी। २२ विधायकों के साथ सिंधिया ने भाजपा का दामन थाम लिया। इनके अलावा चार और विधायकों ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा की सदस्यता ले ली। नतीजतन, कमलनाथ चारोंखाने चित्त गिरे और मुंह की खाई शिवराज ने एक बार फिर मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता का सिंहासन संभाल लिया। बावजूद कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने रहे। विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद उन्हें अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा और जीतू पटवारी कांग्रेस अध्यक्ष बना दिए गए। हालांकि, पटवारी स्वयं इंदौर जिले की राऊ विधानसभा सीट से चुनाव हार गए थे। इसके बाद कमलनाथ छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से अपने पुत्र नकुलनाथ को चुनाव नहीं जिता पाए। यह हार भी उनके लिए बड़ी पराजय साबित हुई है। इसके बावजूद कांग्रेस ने अमरवाड़ा सीट जिताने की जिम्मेदारी उन्हीं पर डाल दी है। हालांकि, अपनी साख बरकरार रखने के लिए कमलनाथ ऐड़ी-चोटी का जोर लगाएंगे। लेकिन मतदाता परिणाम क्या देता है, यह मतों की गिनती के बाद ही पता चलेगा?
अब मध्य प्रदेश के लोकप्रिय नेता रहे शिवराज केंद्रीय मंत्री है और वे एकाध मर्तबा ही आकर अमरवाड़ा एवं बुधनी में चुनाव-प्रचार के लिए जा पाएंगे। ऐसे में खासतौर से अमरवाड़ा सीट जिताने की जिम्मेदारी मोहन यादव के कंधों पर आन पड़ी है। प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा में २९ की २९ सीटें जीत लेने का श्रेय शिवराज को दिया जा रहा है। लिहाजा शिवराज के केंद्र में जाने के बाद यदि अमरवाड़ा सीट भाजपा जीत लेती है तो इसका श्रेय मोहन यादव के खाते में जाएगा। अपने छह माह के कार्यकाल में यादव के लिए यह पहली अग्निपरीक्षा होगी। यदि वे इस सीट को नहीं जिता पाते हैं तो उनके मुख्यमंत्री बने रहने पर भी सवाल खड़े किए जाने लगेंगे। देखें १३ जुलाई को मतदाता क्या परिणाम देता है?