मुख्यपृष्ठस्तंभअवधी व्यंग्य : कवि सम्मेलन

अवधी व्यंग्य : कवि सम्मेलन

एड. राजीव मिश्र
मुंबई

जब से जिला में अंतर्राष्ट्रीय घनघोर कवि-सम्मेलन की घोषणा भई है, तब से पूरे जिला के अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय, प्रादेशिक, जिला व तहसील स्तरीय अउर गांव लेबल के सब कबियन के ऊपर कबिता के नशा चढ़ि गवा है। जेहिके देखो सुबह से शाम तक कबिता में ही बात कइ रहा है। आज सुबह कबि सम्मेलन में जाये खातिर अंतर्राष्ट्रीय कबि बचऊ वाचाल कबिता गुनगुनात निकरे। रस्ता में उनकर भेंट कबि खरखर खामोश से होइ गई। खामोश के देखतै वाचाल बोलि परे-
वाचाल के सब जानत हैं, अब पेश का करी
कबियन के मंच पर भला, खामोश का करी
इतना सुनतय खामोश के तन-बदन में आग लागि गय तुरतय अपने कबिता के तरकस से एक तीर निकारि के चलाय दिहिन-
अबहीं तो खुब बोलि लो, रहिहौ पर बेकार
कबिता पर कबिता गिरी, अइसन होई वार
अब शहर छोड़ उहीं दूनौ कबियन के सम्मेलन चालू होइ गवा। गाँव के कुछ निठल्ले भी आई गए। वाह चच्चा… वाह दद्दा के आवाज गूँजय लाग। सुबह से शाम हुई गई पर मजाल का कोउ हार मानय। दूनउ कबि और चार निठल्लन के कबि सम्मेलन चलि रहा था तब तक केउ खामोश के घरवाली के बताइ दिहिस, दद्दा सुबहिये से चौपाल पे कबिता पाठ कइ रहें हैं। फिर का रहा, खामोश के घरवाली हाथ में कूचा लइके चौपाल पर पहुँची। ओहिके बाद का खामोश का वाचाल लेइ कूचा-कूचा धोइ के धइ दिहिन। शहर के कबि सम्मेलन तो छुटबय किहा अउर सार्वजनिक सम्मान गाँव के चौपाल पे हुइ गवा।

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