मुख्यपृष्ठस्तंभराज की बात : बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना

राज की बात : बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना

राजेश विक्रांत
मुंबई

किसी और की शादी हो गई, हनीमून भी हो गया पर हमारा अब्दुल्ला काफी खुश है। उसकी खुशी दीवानगी की हद तक पहुंच गई है। वह खुद अपनी पीठ थपथपा रहा है। अपने को शाबाशी दे रहा है। इस शादी समारोह के लिए मीडिया में बयान दे रहा है। उसके चंगू-मंगू प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अब्दुल्ला की उपलब्धियों का बखान कर रहे हैं। खुद अब्दुल्ला दिल खोलकर नाच रहा है। उसका उत्साह ऐसा है कि मानो उसी की शादी हो या फिर वही दूल्हे का बाप हो, लेकिन सच्चाई यह है कि वो कोई नहीं है। काफी दूर का रिश्तेदार कह सकते हैं अब्दुल्ला को, लेकिन ऐसा रिश्तेदार जिसे कोई बुलाता नहीं, बुलाना नहीं चाहता या जिसके आने से कोई फर्क नहीं पड़ता। फिर भी अब्दुल्ला के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे हैं। वो यही दिखा रहा है कि शादी में स्टार अट्रैक्शन वही था। सिर्फ वही। शादी की सभी रस्में उसी के इर्द-गिर्द हुई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जी-७ शिखर सम्मेलन में शामिल होने को हम एक मुहावरे-‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना’ से समझ सकते हैं। पिछले दिनों इटली के अपुलिया में जी-७ का शिखर सम्मेलन सम्पन्न हुआ। इसमें शिरकत कर मोदी वापस आ चुके हैं। कहते हैं कि उन्होंने सम्मेलन के दौरान प्रâांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के अलावा यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की से बातचीत की। जिससे सच में बात करना चाहिए, जिसे हड़काना चाहिए, उस कनाडा के प्रधानमंत्री से मोदी ने एक शब्द तक नहीं बोला। इसकी बजाय उन्होंने सम्मेलन में भाग लेते हुए तथाकथित रूप से कहा कि हिंदुस्थान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर राष्ट्रीय रणनीति तैयार करने वाले पहले कुछ देशों में से एक है।
मजे कि बात है कि ये मोदी द्वारा सारी बयानबाजी, ताम-झाम उसके लिए किया जाता है जिसका हिंदुस्थान सदस्य तक नहीं है। बता दें कि जी-७ दुनिया के प्रमुख औद्योगिक देशों यानी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं का एक समूह है। इसमें अमेरिका, ब्रिटेन, प्रâांस, कनाडा, जापान, इटली और जर्मनी का समावेश है। २५ मार्च १९७३ को जी-७ की शुरुआत हुई थी। शुरुआत में रूस भी इस संगठन का हिस्सा था, लेकिन बाद में कुछ मतभेदों के बाद रूस को इस समूह से निकाल दिया गया। रूस के साथ रहने पर इस समूह में ८ सदस्य देश थे और इसे जी-८ कहा जाता था। इस संगठन का लक्ष्य मानवाधिकारों की रक्षा करना, कानून बनाए रखना और लगातार विकास करना है।
हमारा सवाल यह है कि जब हिंदुस्थान जी-७ का सदस्य ही नहीं है तो अपने लाव-लश्कर के साथ मोदी इसमें क्यों गए? कहते हैं कि जी-७ में इटली ने हिंदुस्थान के अलावा ब्राजील, दक्षिण अप्रâीका, अल्जीरिया, अर्जेंटीना, मिस्र, केन्या, मॉरिटानिया, सऊदी अरब, ट्यूनीशिया और संयुक्त राष्ट्र को भी आमंत्रित किया था। यूरोपीय संघ जी-७ का सदस्य नहीं है, लेकिन वह वार्षिक शिखर सम्मेलन में भाग लेता है।
लेकिन सिर्फ भाग लेने के लिए इसके नाम पर करोड़ों रुपए क्यों फूंके गए? मोदी के साथ एक उच्चस्तरीय शिष्टमंडल भी था, जिनमें विदेश मंत्री एस जयशंकर, विदेश सचिव विनय क्वात्रा और एनएसए अजीत डोभाल भी शामिल थे।
शपथ ग्रहण के तुरंत बाद ही मोदी को विदेश जाने की क्या जरूरत थी? इसके बदले में हमें मिला क्या? कुछ सेल्फी। बड़ी-बड़ी बातें, कुछ अफवाह। और कुछ नहीं। मोदी ने जी-७ में कोई महत्वपूर्ण वक्तव्य भी नहीं दिया।
मोदी की कमजोरी देखिए कि वे न तो जी-७ में कोई तीर मार पाए, न ही कनाडा को कोई सबक सिखा पाए। जबकि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के सार्वजनिक वक्तव्य का सार समझें तो ये नजर आता है कि अगले शिखर सम्मेलन में मोदी नहीं बुलाए जाएंगे। इसके अलावा मोदी के इटली दौरे से पहले खालिस्तान समर्थकों ने वहां बनी महात्मा गांधी की प्रतिमा को क्षतिग्रस्त कर दिया और वहां हिंदुस्थान विरोधी नारे लिख दिए थे। मोदी इस मुद्दे से भी ढंग से निपट नहीं पाए।
कुल मिलाकर मोदी ने इटली दौरा ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’ स्टाइल में संपन्न किया। जी-७ की बात करें तो मोदी ने इस सम्मेलन में ५ वीं बार भाग लिया। ये ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’ शैली का एक रिकॉर्ड है। बिना निमंत्रण किसी के यहां जाने, अकारण किसी की बात में हस्तक्षेप करने या बलपूर्वक किसी काम में सम्मिलित होने वाले के लिए यही कहा जाता है। इसका मतलब होता है अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए जबरदस्ती गले पड़ना। मोदी और इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी की सेल्फी यही कहती है कि मोदी मानो मेलोनी के जबरदस्ती गले पड़ रहे थे। मोदी की लाव-लश्कर हालांकि इस जबरदस्ती गले पड़ना को ‘द्वि‍पक्षीय बातचीत’ कहते हैं।
(लेखक तीन दशक से पत्रिकारिता में सक्रिय हैं और ११ पुस्तकों का लेखन-संपादन कर चुके वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं।)

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