मुख्यपृष्ठस्तंभमैथिली व्यंग्य : रेल यात्रक अनुभव

मैथिली व्यंग्य : रेल यात्रक अनुभव

डॉ. ममता शशि झा
मुंबई

केथाहि बाली के बेटा रामचंद्र कहलकनि ‘माँ अहि बेर बड़े गर्मी छइ, अहाँ दुनु गोटे के टिकट टू टायर एसी कोच में क्या दइ छी, दुनु गोटे आराम स सुति क, बैसि क गाम पहुंच जाएब। रामचंद्र देखने छलखिन जे सुनकर माँ-बाबु जी कतेक कष्ट काटि क हुनका पढ़ेने छलखिन। आब ओ नीक पद पर कार्य करइ छला, नीक जांका माँ-बाबूजी के राख चाहइ छला। हुनकर माँ-बाबूजी भरि जिंदगी स्लीपर कोच में यात्रा केलखिन, जाहि में पैसेंजर सब ठूसल रहइ छलइ, सीट के की कहल जाय, सीट के बीच में ओछाओन क, क कहुना घर पहुंची, से लोक सब के सोच रहइ छलइ। रामचंद्र ओ दृश्य देखि क सोचइ छला जे अहि स बेसी रेल मिनिस्टर के असफलता के कोन उदाहरण भ सकइ छइ, जे शहर स गाम जाय के उचित व्यवस्था आजादी के येतेक साल बादो नही भ सकल!! संगहि-संग हर यात्रा में अपन राज्य के मुख्यमंत्री आ पदासिन मंत्री सब के प्रति खेद आ राज्य के जनता के प्रति दुख के भाव मोन में उपजइ छलनि जे अपन राज्य में येतेक सब किछु रहला के बादो रोजी-रोटी के लेल लोक सब के कियेक पलायन कर पड़इ छनि? जँ अपन राज्य के उद्योग-धंधा के पुनर्जीवित के देथिन त इ भीड़ आ अ व्यवस्था अपने आप खतम भ जइतइ, मुदा हेलीकॉप्टर से यात्रा कर बला के ट्रेन के असुविधा के एहसास कोना हेतनि!!
केथाहि बाली जाय लेल पूरा तैयार भेलि, चमचमाइत सारी, गला में माला आ पैर रंगी के। रस्ता लेल खूब पाथेय बना क जे खूब खायब आ सुतब। स्लीपर कोच में डरक लेल ने भरी छाक पानी पिबइ छलि ने ठीक स खाइ छलि, कियेक त टायलेट तक के रस्ता दुभर भ जाय छलनि, दु दिन के यात्रा बुझु जे तपस्या रहइ छलनि। साफ-सुथरा एसी कोच आ झक झकाइत चादर देखि क मोन प्रसन्न भ गेलनि। मुदा ट्रेन जहिना आगु बढ़ल, टी.सी. पाई ल क लोक सब के दू स्टेशन, चारी स्टेशन लेल बैसा ब लगला। केथाहि बाली जहीना पैर पसारी, चद्दरि तानि क सुत के कोशिश करथि, क्यो ने क्यो आबि के रिक्वेस्ट करनी बैस देब लेल।
ओ बुझी गेलि जे अहि बोगी में यात्रा कर बला के आर्थिक स्थिति में फर्क छइ, बोगी के स्तिथि येक्कही रंग छइ!!

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