मुख्यपृष्ठस्तंभराजस्थान का रण : सरकार पर फिर भड़का विपक्ष

राजस्थान का रण : सरकार पर फिर भड़का विपक्ष

गजेंद्र भंडारी

प्री-बजट को लेकर सीएम भजनलाल ने राजस्थान डॉक्टर्स एसोसिएशन के साथ मीटिंग रखी थी। सीएम ने प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर करने के लिए डॉक्टर्स से बातचीत की। इसी दौरान राजस्थान डॉक्टर्स एसोसिएशन ने `चिरंजीवी योजना’ को सदी की सबसे अव्यवहारिक, अलोकतांत्रिक और असफल योजना बता दिया। गहलोत सरकार में चिकित्सा मंत्री रहे परसादीलाल मीणा ने कहा कि भजनलाल जी को खुद पता नहीं कि चिरंजीवी योजना क्या है, राजस्थान का दुर्भाग्य है कि ऐसा अज्ञानी मुख्यमंत्री बना है। ये तो सीधा गांव से आ गए, इस बेचारे को क्या पता कि चिरंजीवी क्या है? राजस्थान डॉक्टर्स एसोसिएशन की ओर से गहलोत सरकार की चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना को असफल बताए जाने पर पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने इससे पहले कहा था कि यह दुर्भाग्य है। निजी अस्पतालों के कुछ डॉक्टरों को ऐसा असत्य बोलकर एक अच्छी योजना एवं मेडिकल जैसे पवित्र पेशे को बदनाम करने से बचना चाहिए। वर्तमान सरकार को डॉक्टर एसोसिएशन के साथियों को विश्वास में लेकर राइट टू हेल्थ के नियम जल्द से जल्द बनाकर लागू करने चाहिए, जिससे हर राजस्थानवासी को इलाज का अधिकार मिले। गहलोत के हर्निया के ऑपरेशन के बाद यह मामला गरमा गया और तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आने लगीं।
हर तरफ परिवर्तन की उम्मीद
पिछले ३० सालों से सक्रिय प्रमुख नेताओं के समर्थक अब निराश हैं, क्योंकि इन नेताओं का प्रभाव घट गया है। विधानसभा चुनाव २०२३ के बाद उनकी स्थिति में गिरावट आई है और लोकसभा चुनाव के नतीजों ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। राजस्थान के तीन प्रमुख नेता-अशोक गहलोत, वसुंधरा राजे और सचिन पायलट, जो प्रदेश अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनका प्रदेश में अच्छा प्रभाव माना जाता है पर अब वे भी अपनी नई भूमिकाओं का इंतजार कर रहे हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ये नेता राजस्थान के दिग्गज हैं और केंद्र में होनेवाले बदलावों का असर राज्य की राजनीति पर भी दिखाई देगा। इसके साथ ही बीजेपी की ओर से वसुंधरा राजे का नाम राजस्थान की राजनीति में प्रमुख रहा है। वह प्रदेश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष और दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। हालांकि, २०२३ के बाद से वे राजस्थान में किसी महत्वपूर्ण पद पर नहीं हैं और वर्तमान में बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। अब सवाल उठता है कि क्या उन्हें संगठन में मजबूती दी जाएगी या इसी तरह छोड़ दिया जाएगा। वसुंधरा राजे के समर्थक भी इस विषय में स्पष्टता का इंतजार कर रहे हैं। आनेवाले दिनों में यह तस्वीर स्पष्ट हो सकती है। इसके अलावा, राजस्थान की राजनीति में परिवर्तन का दौर चल रहा है और युवा नेताओं को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां मिलने की संभावनाएं बढ़ रही हैं।
अफसरों तक पहुंची हार की बात
इस चुनाव में राजस्थान में बीजेपी का मिशन-२५ फेल हो गया। वहीं कांग्रेस-गठबंधन ११ सीटें जीतने में कामयाब रहा। सीएम भजनलाल के गढ़ में बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया। भाजपा को ११ लोकसभा सीटों पर हुए नुकसान के बाद बताया जा रहा है कि इसका ठीकरा अब अधिकारियों पर फूटेगा, क्योंकि भाजपा विधायकों और कार्यकर्ताओं ने फीडबैक दिया कि ये अधिकारी कांग्रेस शासन के समय से ही जिलों में लगे हुए हैं और हमारी बात नहीं सुनते, जिसका नुकसान हुआ है। दूसरी तरफ, सीएम के गृह जिले भरतपुर में जिला प्रमुख का उपचुनाव होना था। मगर राज्य निर्वाचन आयोग ने इसे स्थगित कर दिया है। कांग्रेस सरकार के पूर्व वैâबिनेट मंत्री विश्वेंद्र सिंह ने लिखा है कि भाजपा को जिला प्रमुख उप-चुनाव में करारी हार का भय सता रहा है, इसलिए चुनाव पर रोक लगाई है, यह गलत है। अब प्रदेश में पांच विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं, जिसकी तैयारी पार्टियां कर रही हैं। भाजपा किसी भी कीमत पर इन सीटों को जीतना चाहती है। वहीं कांग्रेस अपने कब्जे में ही रखना चाहती है। शहर में अतिक्रमण हटाए जा रहे हैं, गरीब लोगों की अस्थाई दुकानों पर बुलडोजर चलाए जा रहे हैं, मगर अवैध निर्माण से बने मॉल पर बुलडोजर नहीं चल रहा है। इस बात को लेकर कांग्रेस सत्ता पक्ष पर निशाना साध रही है। वैसे, गरीबों की दुकानों पर बुलडोजर चलाना कहीं भाजपा को भारी न पड़ जाए और खुद भाजपा की ही दुकान न बंद हो जाए?

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