मुख्यपृष्ठस्तंभझांकी : नाराजगी बरकरार

झांकी : नाराजगी बरकरार

अजय भट्टाचार्य

हरियाणा में पिछले १० सालों से सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा और अब भाजपा सरकार के मुखिया नायब सिंह सैनी अल्पमत की सरकार चला रहे हैं, लेकिन संवैधानिक बाधाओं के चलते कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव नहीं ला पा रही है। ये तो आज की स्थिति है। १० साल सत्ता में रहने के बावजूद भाजपा जनता की नब्ज नहीं पकड़ पाई। राजनीति के जानकारों की मानें तो हरियाणा में इस बार कांटे की टक्कर है। सत्ता के खिलाफ राज्य में सत्ता विरोधी लहर है। लोकसभा चुनाव नतीजों का विश्लेषण करने पर एक बात तो साफ है कि पार्टी को मुख्यमंत्री बदलने का फायदा नहीं मिला। सैनी लोकसभा चुनाव में अपना गृह जिला अंबाला तक नहीं बचा पाए। फिलहाल, राज्य में मुफ्त योजनाएं परोसकर लोगों की नाराजगी दूर करने की कोशिश कर रही है। पिछले दो लोकसभा चुनावों में क्लीन स्वीप कर रही पार्टी इस बार ५ सीटों पर सिमट गई। इन सीटों पर जीत का अंतर भी कम हो गया, जबकि कांग्रेस की ५ सीटों पर जीत का अंतर बढ़ा है। विधानसभावार अगर नतीजे देखें तो कांग्रेस अभी बहुमत की स्थिति में है। अगर यही नतीजे विधानसभा चुनाव में भी रहते हैं तो ९० सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस को ४६ सीटें मिलती दिख रही हैं। प्रदेश के गांवों में किसान दिल्ली में चले किसान आंदोलन, एमएसपी गारंटी जैसे कानून नहीं बनने के कारण मोदी से नाराज हैं। कई जिलों में स्थिति ऐसी है कि भाजपा गांवों में नहीं घुस पा रही है। किसानों को लगता है कि अग्निवीर योजना के कारण हमारे बेटे सेना में भर्ती नहीं हो पाए। भावांतर जैसी सरकारी योजनाएं जमीन पर बेअसर हैं। इस समय तक जाटों की नाराजगी मोदी से नहीं, बल्कि खट्टर से भी है।

केंद्रीय मुख्यमंत्री
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब केंद्रीय कृषि मंत्री बन गए हैं। कृषि मंत्री की कमान संभालने के बाद वे परसों दिल्ली में इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट के राष्ट्रीय सेमिनार में शामिल हुए। उन्होंने सेमिनार में आए पूर्व छात्रों को संबोधित करते हुए कुछ ऐसा कह दिया कि पूरे सभागार में मौजूद सभी लोग ठहाके लगाकर हंसने लगे। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए शिवराज ने गलती से खुद को मुख्यमंत्री कहकर संबोधित कर दिया। बोले कि मैं लिस्ट बनवा रहा था कि किस-किस से मिलना है। मैं आप सभी से बात करना चाहता हूं, क्योंकि मुख्यमंत्री को हर एक विषय की जानकारी नहीं होती है। ये कहने के तुरंत बाद उन्हें अहसास हुआ कि उन्होंने खुद को मुख्यमंत्री कहा है। उन्होंने इस पर हसंते हुए कहा कि माफ कीजिएगा मुख्यमंत्री नहीं कृषि मंत्री २०-२१ साल से चार बार का सीएम रहा हूं तो कुछ दिन तो लगेंगे ही इसे भूलने में। उस वक्त भी मुझे गुमान नहीं था कि मुख्यमंत्री सब कुछ जानते हैं। वैसे मामाजी चाहें तो खुद को केंद्रीय मुख्यमंत्री भी कह सकते हैं।

हौसले बुलंद
बिहार की काराकाट लोकसभा सीट पर एनडीए की ओर से चुनाव लड़े आरएलएम के उपेंद्र कुशवाहा की नैया डूबने का मुख्य कारण भोजपुरी सिनेस्टार पवन सिंह की नई घोषणा ने एनडीए की पेशानी पर बल बढ़ा दिए हैं। लोकसभा चुनाव हारकर भी पवन सिंह के हौसले बुलंद हैं। निर्दलीय उम्मीदवार पवन सिंह २,७४,७२३ वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे। इस सीट पर इंडिया गठबंधन की तरफ से कम्युनिष्ट पार्टी (माले) के राजाराम सिंह ३,८०,५८१ वोट हासिल कर विजयी हुए थे। कुशवाहा को २,५८,८७६ वोट मिले। कहा जा रहा है कि अगर पवन सिंह निर्दलीय न लड़ते तो कुशवाहा की जीत तय थी। हालांकि भ्रम फैलाने के लिए एक अन्य राजाराम सिंह को भी बतौर निर्दलीय चुनाव में उतारा गया था, मगर वह सीपीएमएल उम्मीदवार को नुकसान नहीं पहुंचा सके। पवन ने हाल ही में कहा था कि चुनाव में हार गए तो क्या हुआ जल्द ही वो खुद की राजनीतिक पार्टी बनाएंगे और आने वाले विधानसभा चुनाव में बिहार की सभी सीटों पर जीत हासिल करेंगे। इसके बाद से कयास लगाए जा रहे हैं कि पवन की राजनीति में दिलचस्पी अभी खत्म नहीं हुई है। राजनीतिक विश्लेषक यह मान रहे हैं कि अगर पवन सिंह अपनी पार्टी बनाकर विधानसभा चुनाव में उतरे तो यह देखना दिलचस्प होगा कि उनकी पार्टी से कितने भाजपाई खड़े होंगे, जैसे पिछले चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी के बैनर तले उतरे थे। क्या अगले विधानसभा चुनाव में पवन सिंह चिराग पासवान की भूमिका में होंगे? मतलब यह कि पलटू चाचा को बोनसाई बनाने का काम बंद नहीं होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश के कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)

अन्य समाचार