द्विजेंद्र तिवारी
मुंबई
किसी भी खेल में स्वर्ण पदक, रजत पदक और कांस्य पदक विजेताओं के मनोविज्ञान पर काफी शोध हुए हैं। यह पाया गया है कि रजत पदक विजेता दुखी महसूस करते हैं क्योंकि उन्होंने स्वर्ण पदक विजेता से हारकर पदक पाया है। यह ‘प्रतिकूल सोच’ प्रवृत्ति के कारण होता है, जब खिलाड़ी को पता होता है कि कम से कम रजत तो उसे मिलेगा ही, इसलिए खुद को स्वर्ण पदक का हकदार समझने लगता है। इसके विपरीत, कांस्य पदक विजेता अधिक संतुष्ट महसूस करता है, क्योंकि उसने किसी को हराकर वह पदक जीता हुआ होता है। मनोवैज्ञानिक विक्टोरिया मेडवेक, एस. एफ. मैडी और थॉमस गिलोविच द्वारा १९९५ में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि खुशी के पैमाने पर कांस्य पदक विजेता रजत पदक विजेताओं की तुलना में अधिक खुश दिखाई देते हैं। मेडवेक और अन्य लोगों ने तर्क दिया कि कांस्य पदक विजेता रजत पदक जीतने वालों की तुलना में अधिक खुश दिखते हैं क्योंकि रजत पदक विजेता खिलाड़ी स्वर्ण पदक की आस में खेलते हुए हार जाते हैं। इसके विपरीत, कांस्य पदक विजेता खिलाड़ी कांस्य के लिए ही खेल रहे होते हैं और कांस्य जीत जाते हैं। कोई पदक न जीत पाने और खाली हाथ रह जाने के डर को हराकर वे विजयी होते हैं। उनकी खुशी का यह सबसे बड़ा कारण होता है।
जून में घोषित लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मनोदशा कुछ इसी तरह के रजत पदक विजेता जैसी हो गई है। अपने दम पर पिछले दो चुनावों में हासिल पूर्ण बहुमत इस चुनाव में न मिलने से उनकी तुलना इसी तरह के रजत पदक विजेता से की जा रही है। इसके विपरीत ९९ सीटें पाकर कांस्य पदक जीतने वाली कांग्रेस खुशियां मना रही है। ‘हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं’, यह प्रसिद्ध संवाद कांग्रेस और पार्टी नेता राहुल गांधी पर सटीक बैठता है।
पिछले दिनों राहुल गांधी ने देश का ध्यान इसी मनोवैज्ञानिक दशा की ओर खींचा, जो काफी चौंकाने वाला है। उन्होंने कहा कि हाल ही में लोकसभा में मिली हार के बाद पीएम मोदी ‘मानसिक रूप से टूट गए हैं।’ राहुल गांधी ने कहा, ‘मोदी का सरकार चलाने का तरीका लोगों में डर पैदा करना है। लेकिन अब लोग उनसे नहीं डरते। इस चुनाव में विपक्ष ने ‘नरेंद्र मोदी की अवधारणा’ को ध्वस्त कर दिया है। अगर वाजपेयी जी या मनमोहन सिंह जी होते तो वे संभाल लेते क्योंकि उन नेताओं में विनम्रता, सम्मान और समझ थी। लेकिन नरेंद्र मोदी इन सबमें विश्वास नहीं करते। अब देश में कोई भी उनसे (पीएम मोदी से) नहीं डरता। पहले सीना ५६ इंच का था, लेकिन यह ३०-३२ हो गया है… उनके काम करने का तरीका लोगों को डराना था, अब वह डर खत्म हो गया है।’
राहुल गांधी ने मोदी जी की ऐसी मनोदशा की ओर इशारा किया है, जो भविष्य में स्वयं मोदी जी, भाजपा और देश के लिए संकट की स्थिति पैदा कर सकती है। अगर राहुल गांधी की बात पर गौर किया जाए तो मोदी जी इस समय गहन चिंता, संताप और दुख की स्थिति से गुजर रहे हो सकते हैं।
दस साल से अबाध शासन करने के बाद उनकी आदतें बदल गई हैं। इस चुनाव से पहले वे किसी भी चुनाव में हारे नहीं हैं। गुजरात में भी लगातार उन्होंने बहुमत प्राप्त किया और पूर्ण बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बने रहे। सत्ता के सर्वोच्च सिंहासन पर जब भी वे रहे, पूरे अधिकार के साथ उन्होंने सरकार चलाई। लेकिन जून की पराजय ने सब कुछ बदल दिया है। यह उनके जीवन का सबसे बड़ा झटका है। इस झटके से उबरने में उन्हें बहुत वक्त की जरूरत हो सकती है। इसी पर महशर बदायूनी कह गए हैं-
अब हवाएं ही करेंगी रौशनी का पैâसला
जिस दीये में जान होगी वो दीया रह जाएगा।
जीत हार के समीकरण में दिन रात उलझे रहने वाले भाजपा नेताओं और मोदी जी की इस राजनीति पर वफा नकवी ने लिखा है-
सब जीतने की जिद पे यहां हारने लगे
सदियों से कोई शख्स सिकंदर नहीं हुआ।
मोदी जी की हार के कई साइड इफेक्ट हो सकते हैं। पहला साइड इफेक्ट यह हो सकता है कि सरकार कोई भी ऊल-जलूल पैâसले लेने लगे। दूसरा साइड इफेक्ट यह हो सकता है कि सरकार कोई पैâसला ही नहीं ले और शासन प्रशासन ठप हो जाए। तीसरा साइड इफेक्ट यह हो सकता है कि सहयोगी दलों पर उनका कोई अंकुश ही नहीं रहे। सहयोगी दलों के मंत्री सरकार में मनमनर्जी चलाने लगें और मोदी जी आंखें मूंदे रहें। चौथा साइड इफेक्ट यह हो सकता है कि उनके ही दल के नेता उन्हें कमतर आंकने लगें। पिछले दिनों केंद्रीय कृषि मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पुत्र ने सार्वजनिक तौर पर जो भाषण दिया था, यह उसी का नतीजा है। चौहान के पुत्र कार्तिकेय ने मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के बुधनी विधानसभा क्षेत्र में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में अपने पिता की जीत को लेकर कहा कि शिवराज सिंह चौहान की प्रचंड जीत के बाद अब दिल्ली भी उनके सामने नतमस्तक है। ऐसे ही न जाने कितने साइड इफेक्ट हो सकते हैं। इनमें से कुछ साइड इफेक्ट का असर होने लगा होगा तो कुछ का असर धीरे-धीरे सामने नजर आने लगेगा।
ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब तक कुर्सी पर हैं, अपने पूरे संयम और मानसिक शांति को बनाए रखें। उनके अंदर प्रतिशोध व अवसाद की भावना तीव्र होने का खतरा है। इसका असर देश की जनता पर प्रत्यक्ष पड़ने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
ऐसी स्थिति में विपक्ष की भी जिम्मेदारी बढ़ गई है। उन्हें लगातार सरकार के कामकाज पर नजर रखनी होगी। राहुल गांधी ने कहा भी है कि विपक्ष मजबूत है और भाजपा सुप्रीमो यानी मोदी जी अब ‘संघर्ष’ करेंगे। कांग्रेस नेता की इस टिप्पणी से संभावना है कि मोदी जी की राह आगे कठिन होगी। ऐसे में मोदी जी अजीज नाजां की इस मशहूर कव्वाली को सुनें तो शायद राहत मिले-
चढ़ता सूरज धीरे-धीरे ढलता है ढल जाएगा
तू यहां मुसाफिर है ये सराये फानी है
चार रोज की मेहमां तेरी जिंदगानी है
याद रख सिकंदर के हौसले तो आली थे
जब गया था दुनिया से दोनों हाथ खाली थे
अब ना वो हलाकू है और ना उसके साथी हैं
जंगजू न पोरस है और न उसके हाथी हैं…
(लेखक कई पत्र पत्रिकाओं के संपादक रहे हैं और वर्तमान में राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हैं)