अजय भट्टाचार्य
प्राचीन और ऐतिहासिक वस्तुओं का संग्रह करने वाले गाजीपुर के दिलदारनगर के नसीम रजा ने ११८ वर्ष पूर्व के उर्दू मतदाता सूची का संग्रह कर एशिया बुक आफ रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया है। उन्होंने १९०४-१९०५, १९०६-१९०७ और १९१८-१९१९ ई. की उर्दू और १९४५ ई. की हिंदी-उर्दू की कुल ५ मतदाता सूचियों को संग्रहित किया है। उर्दू मतदाता सूची ब्रिटिश शासन काल के जमानिया क्षेत्र की है, जो वर्तमान में गाजीपुर की एक विधानसभा है। ब्रिटिशकालीन इस परगने में उस समय लोकल वॉर्ड मेंबर के लिए चुनाव होता था। इस चुनाव के लिए मतदाता सूची तैयार करने के लिए हर गांव से तीन चार मानिंद लोगों को चुनकर ५० लोगों की सूची तैयार की जाती थी। सूची में जमीनदारों, मुखिया और उन लोगों को रखा जाता था, जो सरकार को लगान और कर देते थे। वोट देने का अधिकार सिर्फ ऐसे लोगों को ही था। इन ५० लोगों में से ही योग्यता के अनुसार, ४ लोगों को उम्मीदवार बनाया जाता था। बाकी ४६ सदस्य इनमें से एक उम्मीदवार का चुनाव करते थे, जिनको लोकल वॉर्ड मेंबर कहा जाता था। लोकल वॉर्ड मेंबर अपने क्षेत्र की समस्याओं को जिला बोर्ड में रखते थे। ब्रिटिश काल में आज की जमानिया तहसील में कुल ५० मतदाता ही होते थे। आज की मतदाता सूची की उस समय से तुलना करें तो जमानिया तहसील मतदाताओं में ८,५०० गुना की वृद्धि हो चुकी है। २०२२ के विधानसभा चुनाव में जमानिया विधानसभा में कुल मतदाताओं की संख्या ४,२५,९७८ थी, जबकि १९०४-१९०५ और १९०६-१९०७ में कुल मतदाताओं की संख्या ५० थी और वो केवल पुरुष ही थे। अंग्रेजों ने १८५७ के बाद स्थानीय स्वशासन अधिनियम पारित किया था और १८८४ में ये पूरी तरह से लागू किया था। इसके बाद स्थानीय विकास के लिए स्थानीय कमेटी का चयन शुरू हुआ और कमेटी में करदाताओं को ही रखने का प्रावधान था। समय-समय पर इसमें संशोधन होते रहे और १९०९ में पहली बार इलेक्शन एक्ट पारित हुआ।
भूघोटालों का गढ़ गुजरात
ऐसा लगता है कि गुजरात भूमि घोटालों का गढ़ बन गया है। राजकोट, सूरत, मुलसाना… सूची लंबी है। अब एक और घोटाला जिसमें एक वरिष्ठ अधिकारी ने अमदाबाद जिले में एक बड़े भूखंड के एनए (गैर-कृषि प्रमाण पत्र) के लिए स्वीकृति दे दी, राजस्व कार्यालयों में चर्चा का विषय बन गया है। संबंधित अधिकारी ने मूल मालिक की सहमति के बिना स्वीकृति दे दी। यहां तक कि मामले में पावर ऑफ अटॉर्नी की भी जांच नहीं की गई। कहा जाता है कि अधिकारी ने अपने कनिष्ठ की रिपोर्ट के आधार पर स्वीकृति दी, जिसके बारे में ज्ञात है कि उसने पहले भी इसी तरह की चालें चली हैं, जिसके कारण उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई थी। हालांकि, इस बार वरिष्ठ अधिकारी ने कनिष्ठ को चेतावनी देकर छोड़ दिया। क्या ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वरिष्ठ अधिकारी खुद को बचाना चाहता था और खुद को उजागर नहीं करना चाहता था। राज्य सरकार कई भूमि घोटालों और अन्य राजस्व मुद्दों से जूझ रही है, ऐसे में अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व) मनोज दास ने पिछले सप्ताह एक बैठक में कलेक्टरों को आड़े हाथों लिया। सभी कलेक्टर वीडियो कॉन्प्रâेंस में शामिल हुए और उनके सवालों का जवाब देने में उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ी। ‘मुस्कुराते हुए आदमी’ के नाम से मशहूर दास का मूड खराब था और उन्होंने मुद्दों पर अपनी नाराजगी जाहिर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लोगों को राजस्व विभाग से जुड़ी कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और एक आम आदमी को छोटी-छोटी समस्याओं के लिए इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। दास शायद इसलिए नाराज थे, क्योंकि उन्होंने अपने कार्यभार संभालने के एक पखवाड़े के भीतर ही ८,००० से अधिक फाइलों का निपटारा कर दिया था। इसके बावजूद समस्याएं बनी हुई हैं और घोटाले सामने आते रहते हैं। उन्होंने कड़ी चेतावनी दी, ‘अपने काम में जुट जाओ या कार्रवाई का सामना करो।’
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)