मुख्यपृष्ठविश्वअसांजे का १४ साल का वनवास, लोकतंत्र का स्याह चेहरा!

असांजे का १४ साल का वनवास, लोकतंत्र का स्याह चेहरा!

मनमोहन सिंह
आवाज बुलंद कर यह कहना ही चाहिए कि यूलियन असांजे ने वही किया, जो एक पत्रकार को `फ्री सोसाइटी’, जो अब एक दुर्लभ चीज बनने जा रही है, में करना चाहिए। उन्होंने अपने कर्तव्य धर्म का निर्वाहन किया। असांजे ने अफगानिस्तान और इराक में अमेरिका के युद्धों के संचालन और उसकी कूटनीति को उजागर करने वाले कई सीक्रेट डॉक्यूमेंट प्रकाशित किए और इसके लिए उन्हें १४ वर्षों से अधिक समय तक उनकी स्वतंत्रता से वंचित रखा गया। लोकतंत्र जो अब एक दिखावा मात्र बन कर रह गया है, तकरीबन सारे विश्व में वह भी बेपर्दा हो गया है इस मामले से।
असांजे को हर हालत में दबाव में रखने की कुटिल कोशिश अटलांटिक पार के पश्चिमी लोकतंत्र का वह स्याह चेहरा है, जो अपनी स्वतंत्रता पर गर्व करते हैं और साथ ही एक पत्रकार, प्रकाशक और व्हिसिल-ब्लोअर को दंडित करने के लिए एक हाथ मिलाए हुए हैं। विकिलीक्स के संस्थापक को पहली बार २०१० में स्वीडन में यौन अपराध के आरोपों पर यूरोपीय वारंट पर ब्रिटेन में गिरफ्तार किया गया था, वैसे बाद में उन आरोपों को हटा दिया गया था। जमानत पर रहते हुए उन्होंने लंदन में इक्वाडोर दूतावास में शरण ली, जहां वो २०१९ तक छिपे रहे। उन्हें दूतावास से बाहर निकाल दिया गया। ब्रिटेन ने उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया और उच्च सुरक्षा वाले बेलमार्श जेल में डाल दिया। जेल में पांच साल बिताने के बाद, जहां उन्हें काफी हद तक एकांत कोठरी में वैâद रखा गया था। अमेरिका ने असांजे के साथ एक समझौता किया, जिससे उन्हें रिहा कर दिया गया। ५२ वर्षीय इंसान पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी राष्ट्रमंडल क्षेत्र, उत्तरी मारियाना द्वीप समूह की राजधानी, साइपन में अमेरिकी फेडरल जज के समक्ष जासूसी मामले में अपनी गलती मानी। आखिरकार उन्हें आजादी मिल गई और अपने देश ऑस्ट्रेलिया पहुंच गए। हालांकि, अभी भी कुछ अमेरिकी प्रतिबंध कायम हैं, जबकि असांजे की रिहाई, जिसे उनकी वर्षों की कठिन परीक्षा का अंत माना जा सकता है, उन लोगों के लिए एक राहत है, जो उनके लिए लड़ रहे हैं। वैसे उनके लिए यह राह आसान नहीं थी। भले ही उन्हें रिहा किया जा रहा है, लेकिन जिस तरह से उन्हें रिहा किया जा रहा है वह निश्चय ही खुशी की बात नहीं है, बल्कि एक चिंता का मसला है।
विकिलीक्स को दस्तावेज वैâसे मिले? विकिलीक्स द्वारा प्रकाशित क्लासिफाइड डॉक्यूमेंट्स अमेरिकी मिलट्री एनालिस्ट चेल्सी मैनिंग द्वारा असांजे को सौंपे गए थे। मैनिंग को जासूसी अधिनियम का उल्लंघन करने का दोषी ठहराए जाने के बाद ३५ साल की जेल की सजा सुनाई गई थी। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उनकी सजा कम कर दी, जिससे उन्हें २०१७ में रिहा कर दिया गया, लेकिन असांजे को आजादी नहीं मिली। ट्रंप के न्याय विभाग ने उन्हें २०१९ में १८ मामलों में दोषी ठहराया और बाइडेन प्रशासन उनके प्रत्यर्पण पर जोर देता रहा, जिसका उन्होंने डटकर मुकाबला किया। पिछले साल ऑस्ट्रेलिया के लेबर प्राइम मिनिस्टर एंथनी अल्बानीज ने अमेरिका से मामले को समाप्त करने का आग्रह किया था, जबकि वहां के सांसदों ने इस साल एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें असांजे को घर लौटने की अनुमति देने की मांग की गई। हाल के वर्षों में यह मामला जो बाइडेन के डेमोक्रेटिक प्रशासन के लिए जनता के बीच परेशानी का सबब भी बन गया था। इसलिए जब असांजे अपना दोष स्वीकार करने के लिए सहमत हुए तो सभी पक्षों ने मामले को समाप्त करने के लिए एक समझौता किया। जिससे अमेरिका की दिली ख्वाहिश पूरी हो गई और असांजे को उनकी आजादी मिल गई। इसके बावजूद इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि असांजे को स्टेट सीक्रेट को सार्वजनिक करने के लिए दोषी ठहराया गया, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए एक बड़ा झटका है। एक व्हिसल ब्लोअर, एक पत्रकार जिसने समाज के हित में काम किया, अपना व्यावसायिक धर्म का पालन किया, उससे तकरीबन १४ वर्षों से भी अधिक समय तक तकलीफ देना, उसे झुकाने की कोशिश करना पश्चिमी लोकतंत्र के माथे पर एक धब्बे के तौर पर देखा जाता रहेगा। असांजे के मामले ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे लोकतंत्र का दम भरने वाले देश भी लोकतंत्र के सबसे अहम अधिकार `अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ को लेकर `स्वतंत्र’ मानसिकता नहीं रखते।

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