सामना संवाददाता / मुंबई
सफेद दाग को आज भी देश में कलंक माना जाता है। इस दाग के होते ही मरीजों से लोग दूरियां तक बना लेते हैं। इन भ्रांतियों को खत्म करने के इरादे से त्वचा रोग के डॉक्टर शिक्षण संस्थानों में सफेद दाग को लेकर पाठशाला आयोजित करते हुए बच्चों से लेकर युवाओं को इस बीमारी के प्रति जागरूकता पैदा करेंगे।
उल्लेखनीय है कि हर साल २५ जून को वर्ल्ड विटलिगो डे मनाया जाता है। इसी के तहत त्वचा रोग विशेषज्ञों की संस्था इंडियन एसोसिएशन ऑफ डर्मेटोलॉजिस्ट्स, वेनेरोलॉजिस्ट्स और लेप्रोलॉजिस्ट्स ने पूरे देश में इस बीमारी के प्रति बनी भ्रांतियों को दूर करने और रोगियों के समर्थन में जागरूकता अभियान चलाने की घोषणा मंगलवार को की है। इस कार्य में संस्था ग्लेनमार्क की मदद ले रही है। संस्था के अध्यक्ष डॉ. मंजुनाथ शेनॉय ने बताया कि दुनियाभर में सबसे अधिक विटिलिगो भारत के लोगों को होता है और रोगियों को अक्सर तिरस्कार तथा सामाजिक अलगाव का सामना करना पड़ता है। इसलिए इसे दूर करने के लिए डॉक्टर आगे आए हैं।
८० फीसदी मरीजों में दाग विटिलिगो के नहीं
डॉ. के.ई. मुकादम ने कहा कि सफेद दाग से डरने की बात नहीं है। इसका उपचार संभव है। इलाज के लिए आनेवाले १०० मरीजों में से सिर्फ एक से दो मरीजों में ही विटिलिगो पाया जाता है। उन्होंने बताया कि इलाज के लिए अक्सर मरीज देरी से पहुंचते हैं, जिसकी वजह से उनका उपचार ठीक से नहीं हो पाता है।
बीच में इलाज छोड़ देते हैं मरीज
डॉ. सुनील डोगरा ने कहा कि वर्तमान में विटिलिगो पीड़ित २५ से ३० फीसदी मरीज इलाज बीच में ही छोड़ देते हैं। उन्होंने बताया कि इलाज के लिए सप्ताह में २ से ३ बार मरीजों को डॉक्टरों के पास आना पड़ता है।
यह है बीमारी का कारण
डॉ. शीतल पुजारी ने बताया कि सफेद दाग किसी भी उम्र में हो सकता है। यह एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है, जिसके चलते शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता शरीर को ही नुकसान पहुंचाने लगती है। सफेद दाग के मामले में खराब इम्यूनिटी की वजह से शरीर में स्किन का रंग बनाने वाली कोशिकाएं मेलानोसाइट मरने लगती हैं।