अमिताभ श्रीवास्तव
बिना किसी रोमांच के एक तरफा मैच वाला पहला सेमीफाइनल जब खत्म हुआ तो निराशा अफगानिस्तानी खेमे में ही नहीं थी, बल्कि क्रिकेट प्रेमियों में भी थी कि उन्हें विश्वकप में अब तक का सबसे कम स्कोर वाला सेमीफाइनल देखने को मिला। यह निराशाजनक था। कोई भी अफगानी बल्लेबाज दस रन से ज्यादा न बना सका। यहां तक कि उनके बल्लेबाजों ने रन नहीं बनाए उससे ज्यादा तो दक्षिण अप्रâीकी गेंदबाजों ने अतिरिक्त रन देकर अफगानियों का स्कोर ५० से ऊपर पहुंचाया। एक हास्यास्पद, निराशाजनक सेमीफाइनल। जी हां, साउथ अप्रâीका के खिलाफ बुरी तरह से नाकाम अफगानिस्तान की बल्लेबाजी क्रम में किसी के नाम १० से ज्यादा रन नहीं आए। ११.५ ओवर में महज ५६ रन पर पूरी टीम सिमट गई। सबसे ज्यादा १० रन अजमातुल्लाह उमरजई ने बनाए। शर्म की बात यह रही कि अफगानिस्तान के बल्लेबाजों से ज्यादा १३ रन एक्स्ट्रा से आए। ६ रन बाई (जब गेंद न बल्ले पर लगे और न ही बल्लेबाज के शरीर पर) से, ६ रन वाइड से और १ रन लेगबाई (जब बॉल बल्लेबाज के शरीर के किसी अंग पर लगे और रन भागा जाए) से आया।
थाली में मिला लड्डू
यह तो सब जानते थे कि साउथ अफ्रीका की टीम इस बार विश्वकप इतिहास में पहली बार फाइनल में पहुंचेगी। मगर इस तरह पहुंचेगी कोई नहीं जानता था जहां थाली में लड्डू परोसा गया। यानी एक ऐसा मैच जिसे जीतने के लिए दक्षिण अफ्रीका को कोई ज्यादा एफर्ट नहीं लगाना पड़ा और अफगानियों ने खुद उनके मुंह में फाइनल का लड्डू रख दिया। इतना बुरा सेमीफाइनल अब तक नहीं हुआ था। अफगानिस्तान ने जिस तरह से सेमी में प्रवेश किया था, उससे लगता था कि वो अफ्रीकी टीम को टक्कर देगा। टॉस जीतकर कप्तान राशिद खान ने पहले बल्लेबाजी की और अपनी कप्तानी में पूरी टीम को ताश के पत्तों की तरह ढहते देखा। ५६ रन पर ऑलआउट हुई टीम से क्या उम्मीद रखी जा सकती थी जीत की? अफ्रीका ने ९वें ओवर में ही जीत दर्ज कर ली और एक उदासीन मैच खत्म हुआ। अफगानिस्तान भी नहीं जानता होगा कि अफ्रीकी गेंदबाज भूखे शेर की तरह उन्हें झटके में खा जाएंगे। थाली में मिला लड्डू अप्रâीका ने बड़े दंभ से खाकर साबित किया कि क्रिकेट में किस्मत नहीं प्रदर्शन जरूरी है।
बस करो सिद्धू!
विश्वकप में कमेंट्री कर रहे नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर सोशल मीडिया में एक ही आवाज गूंज रही है कि बस करो सिद्धू। दरअसल, सिद्धू की कमेंट्री अक्सर कहावतों और मुहावरों में लिपटी हुई होती है। क्रिकेट के संदर्भ में कम बल्कि वो लोकप्रचलित मुहावरों का सहारा ज्यादा लेते हैं। यहां तक तो ठीक है मगर हर बार एक जैसी कमेंट्री करना और बोलते ही रहना टीवी कमेंट्री के लुत्फ को कम कर रहा है। ऐसा सोशल मीडिया पर लोग बोलने लगे हैं। एक समय सिद्धू की कमेंट्री करने की स्टाइल को बहुत सराहा गया था मगर उसमें कोई नयापन नहीं रह गया है। हर बार सुननेवालों को वही सबकुछ सुनना पड़ता है, जो सिद्धू बोल चुके होते हैं। उनकी लगातार बोलने की आदत को भी लोग पसंद नहीं कर रहे हैं। उनके कमेंट भी अब ऊटपटांग होने लगे हैं। अब तो सिद्धू क्या बोलना चाहते हैं और क्यों बोल रहे हैं इसका ध्यान भी नहीं रखते और बातों को लपेटकर अपनी बात पूरी करने का प्रयास करते हैं, जब कहीं अटक जाते हैं तो वही पुराना उनका डायलॉग रिपीट करते रहते हैं, ठोको, खटैक आदि जैसे। उनकी कमेंट्री का ग्राफ नीचे गिरा है।