राजेश विक्रांत
सुप्रसिद्ध कवि बोधिसत्व के अनुसार, नए कवियों के बारे में सोचने पर जो पहले विचार हमारे दिमाग में कौंधते हैं वो ये कि ये पीढ़ी किसी भी तरह के पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं है, इनके लेखन में किसी तरह का सामाजिक, राजनैतिक और वैचारिक दबाव नहीं देखा जा सकता और इनका लेखन पूरी तरह से स्वतंत्र है। साझा संग्रह `उम्मीद का दिया’ के कवियों प्रदीप `पांथ’ एवं हरिशंकर `सरल’ के बारे में ये बात एकदम सही उतरती है। संग्रह में पांथ की ८ कविताएं-नीड, कर्मवीर, मित्र, उम्मीद का दिया, उड़ान, मां, नारी तथा मौन तोड़ो आज तो कुछ गुनगुनाओ एवं सरल की १२ कविताएं-नदिया पार तुम्हारा घर है, इससे अच्छा चुप हो जाएं, गीतकार तुम गाते क्या हो, मेरे हाथ नहीं कुछ आया, जानना यदि सत्य है तो, किस बात का डर है, जीवन एक छलावा प्यारे, तुम मुझे सन्देश देना, और बताओ कैसी हो तुम, जिंदगी की यात्रा का, हमने कितने आज गंवाए तथा उजले हमको नहीं लुभाते हैं।
मुसाफिरखाना के `पांथ’ की अनेक रचनाएं विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं तथा अनेक पुस्तकें भी आई हैं। वे अच्छे कथाकार भी हैं। उनकी शीर्षक कविता `उम्मीद का दिया’ की पंक्तियां देखें। `यकीन कर, तू ठोकरें खाकर भी कल संभल जाएगा।
उम्मीद का दिया बुझते चिरागों को रोशन कर जाएगा।’ एक और प्रेरक पंक्तियां इस प्रकार हैं, `जिसने जीवन नौका की, पतवार चलाना सीख लिया। बीच भंवर में फंसी नाव को, पार लगाना सीख लिया। नदियों के गहरे पानी का, थाह लगाना सीख लिया। तूफानों के आहट का, अंदाज लगाना सीख लिया। कर्मवीर वह हालातों के, आगे न झुक सकता है। आसमान में बनके दिनकर, एक दिन वही चमकता है।’
धनपतगंज सुलतानपुर के `सरल’ की एक कविता की सुंदर पंक्तियां देखिए- तुम परिवर्तक रहे युगों से, तुमसे ही उम्मीदें सारी। तुम पर ही उत्तम समाज की, ठहरी सारी जिम्मेदारी। लेकिन तुम तो शीश नवाकर, आए ऊंचे महलों में। राजतंत्र का गान सुना कर, आए ऊंचे महलों में। इतना झूठ सुनाने वाले, हमसे बोलो खाते क्या हो? गीतकार तुम गाते क्या हो?
`वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान। निकल कर आंखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान।’ पांथ और सरल का उम्मीद का दिया ऐसा ही है। ये उनके अंतर्मन से निकली ऊर्जा की रचनात्मक अभिव्यक्ति है।
पांथ व सरल दोनों कवि शिक्षक हैं इसलिए वे सच्चाई व नैतिकता के प्रबल पक्षधर हैं। दोनों की कविताओं में जीवन का सकारात्मक संगीत गूंजता है। हर एक कविता के बारे में टिप्पणी भी है। उम्मीद का दिया की पृष्ठ संख्या ५४ है। इसका मूल्य १४९ रुपए है। इसे नोशन प्रेस ने प्रकाशित किया है।