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तड़का : `महाराज’ ही क्यों?

कविता श्रीवास्तव
ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आमिर खान के बेटे जुनैद खान की डेब्यू फिल्म `महाराज’ इन दिनों विवादों में है। हालांकि, गुजरात हाई कोर्ट की अनुमति के बाद फिल्म रिलीज हो गई है। लेकिन फिल्म के विषय और डॉयलाग पर देशभर में विरोध के स्वर उठ रहे हैं। यह फिल्म १८वीं सदी के धर्माचार्यों के खिलाफ एक तत्कालीन पत्रकार करसनदास मुलजी के उन आरोपों के आधार पर है, जो कथित पाखंड का भांडाफोड़ करते हैं। २१ सितंबर १८६१ को एक गुजराती अखबार `सत्यप्रकाश’ में ‘हिंदुओनो असल धर्मा हलना पाखंडी मातो’ नाम से एक लेख छपा। इस लेख में एक ऐसे शख्स का पर्दाफाश किया गया था, जिसकी लोग भगवान की तरह पूजा करते थे। इस लेख में लिखा गया था कि वो शख्स अपनी महिला भक्तों का चरणसेवा के नाम पर यौन शोषण करता था। उस दौर में अंग्रेजों का शासन था, लेकिन महाराज भी प्रभावी शख्सियत हुआ करते थे। लोग उनकी हवेली की चौखट पर सिर झुकाते थे। इस लेख को पढ़कर सब लोग हैरान रह गए। कुछ लोगों का उस पत्रकार के खिलाफ गुस्सा फूट पड़ा। उस पर मानहानि का मुकदमा चला, लेकिन अदालत ने मुकदमा करने वाले को ही दोषी माना और करसनदास के आरोपों को सही करार दिया। उसी आधार पर फिल्म बनी है। इस ताजा फिल्म पर आपत्ति के बाद कोर्ट ने फिल्म देखी और फिल्म को रिलीज करने की अनुमति दी। आदेश आने के बाद फिल्म को रिलीज कर दिया गया है। काशी के गुजराती समाज और महत्वपूर्ण पीठ गोपाल मंदिर के धर्माचार्यों ने इसे सनातन धर्म की गुरु-शिष्य परंपरा को कुठाराघात पहुंचाने का षड्यंत्र बताया है। धर्माचार्यों ने इस फिल्म के प्रसारण पर अविलंब रोक लगाने और धर्म पर विचार करने के लिए एक अलग से `धार्मिक सेंसर बोर्ड’ बनाए जाने की मांग की है। इन लोगों ने प्रधानमंत्री संसदीय कार्यालय में ज्ञापन दिया है। अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा ने भी फिल्म के प्रसारण पर रोक लगाने की मांग की है। तीर्थ पुरोहितों ने कहा कि फिल्म में हमारे ईष्ट भगवान, धर्म गुरुओं, हिंदू समाज और सनातन धर्म के विरोध में बनाई गई है। हिंदुओं की आस्था पर कुठाराघात किया जा रहा है। यह फिल्म एक साजिश के तहत बनाई जा रही है, जिस पर रोक लगाना जरूरी है। इन विरोधों से यह सवाल उठता है कि क्या वास्तव में यह एक सोचे समझे मकसद से ढूं़ढ़ा गया विषय तो नहीं है? क्योंकि सही में यह विषय एक बहुत बड़े धर्म की आस्था को विचलित करने जैसा है। हालांकि, यही दुराचार मुगल शासकों के दौर में भी होने की चर्चाएं हम सुनते आए हैं। उस वक्त के मुगल शासकों के अनेक अत्याचारों और दुराचारों का लंबा दौर रहा है। अंग्रेजों के दुराचार भी लोगों ने सहे हैं। लेकिन इस `फिल्म’ में धर्माचार्यों यानी `महाराज’ को केंद्र में रखा गया है, जिससे बहुत बड़ा वर्ग आहत हुआ है। उनकी संवेदनाओं को भी समझना होगा।

 

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