कैसे सूनी-सूनी हैं राहें मेरी
कैसे भीगी हैं निगाहें मेरी
कहीं दूर तक छाया है अंधेरा
खामोशियों ने भी डाला है डेरा
पल्क झपकते ही पानी गिरता है
फिर भी नहीं कोई सहारा मिलता है
यादें समेटे रखी हैं
हकीकत में कुछ मिलता नहीं
जज्बात मेरे उमड़तें हैं
कोई ख्वाब पूरा होता नहीं
जब से तूने मेरे से रिश्ता तोड़ दिया
तकदीर ने कितना मजबूर किया
हम दोनों को इक दूजे से दूर किया
न तूने खता की न मैंने जफा की
क्या करें किस्मत ही कुछ बेवफा थी
जहर भी खाया मौत न आई
कैसे कटेगी यह तन्हाई
जिधर भी देखो उधर रुस्वाई
कैसी मैंने किस्मत है पाई
जिंदगी मायूस खड़ी देखती है मुझे
जिंदगी आंसूं लिए बुलाती है मुझे
कबर में बैठी इंतजार कर रही है मेरा
फिर भी कहती है अभी वक्त नहीं आया है तेरा
कल तक जो जाने-पहचाने थे
आज मिले जैसे दो अनजाने थे
हम जिसे आस्मां पर देखना चाहते थे
वो तो धरती पर भी रहने के काबिल नहीं है
जीवन खुशियों का सागर भी है
जीवन गमों का गागर भी है।
-अन्नपूर्णा कौल, नोएडा