रोहित माहेश्वरी
लखनऊ
लोकसभा चुनाव में बीएसपी के खराब प्रदर्शन के बाद मायावती ने अपने पिछले पैâसले को पलटते हुए अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी और पार्टी का राष्ट्रीय समन्वयक नियुक्त किया है। संसदीय चुनाव के नतीजे के कुछ सप्ताह बाद लिया गया यह पैâसला, जिसमें दलित-केंद्रित पार्टी बीएसपी को केवल ९.३९ फीसदी वोट मिले, जो तीन दशकों में उसका सबसे कम वोट था और वह एक भी सीट जीतने में विफल रही। चुनाव से पहले मायावती ने आकाश को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के खिलाफ उनके तेवर को देखते हुए मायावती ने उनको हटा दिया। इसका फायदा आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर आजाद को मिला। वे मायावती के गढ़ नगीना सीट पर लड़े और चुनाव जीत गए। उन्होंने भाजपा, सपा और बसपा तीनों को हराया। इसके बाद ही मायावती ने मजबूरी में फिर से आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी बनाया। लोकसभा चुनाव के समय आकाश आनंद लोगों का मन भांप चुके थे और सोच समझ कर बड़ी ही संजीदगी से अपने राजनीतिक विरोधियों पर बोल रहे थे, लेकिन ये बात मायावती को बहुत देर से समझ में आई है। तभी तो फटाफट भूल सुधार भी कर लिया है। मायावती को हारे हुए बीएसपी उम्मीदवारों से बातचीत में ऐसी फीडबैक भी मिली है कि आकाश आनंद को हटाया नहीं गया होता तो पार्टी को हुआ नुकसान कम होता। २८ वर्षीय आनंद को भावी बीएसपी चेहरे के रूप में पेश करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, जबकि नगीना के सांसद चंद्रशेखर आजाद एक नए प्रतिद्वंद्वी के रूप में युवा पीढ़ी के दलित मतदाताओं के बीच गहरी पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं और नगीना में संसदीय चुनाव परिणाम से स्पष्ट सफलता हासिल करने में सक्षम हैं।
हाल के चुनाव में, आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के अध्यक्ष चंद्रशेखर ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र नगीना से १,५०,००० से अधिक मतों से जीत हासिल की, जिसमें बड़ी संख्या में दलित मतदाता हैं, उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के ओम कुमार को बेहद रोमांचक चुनाव में हराया। नगीना संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आनेवाली सभी पांच विधानसभा सीटें बिजनौर जिले का हिस्सा हैं। उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रहीं मायावती ने १९८९ में बिजनौर लोकसभा सीट से जीत दर्ज की थी, जो उनका पहला संसदीय पदार्पण था।
मायावती के नेतृत्व वाली पार्टी, जो भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के चुनावी क्षितिज में एक प्रमुख राजनीतिक खिलाड़ी रही है, जिसने २००७ के विधानसभा चुनावों में ४०३ विधानसभा सीटों में से २०६ सीटें जीतकर अपने दम पर सरकार बनाई थी। पिछले एक दशक में इसमें भारी गिरावट देखी गई। २००९ के लोकसभा चुनावों में, बीएसपी ने २७.४२ फीसदी वोट हासिल किए और २० सीटें जीतीं, जबकि २०२४ में इसका वोट शेयर दो-तिहाई घटकर ९.३९ फीसदी रह गया, जिसमें इसके ८० में से ७० से अधिक उम्मीदवार जमानत बचाने में विफल रहे। मायावती हमेशा ही अपने वोटर को चंद्रशेखर जैसे लोगों से बच कर रहने के लिए आगाह करती रही हैं। जब-जब चंद्रशेखर ने आंदोलन किया, मायावती का बयान जरूर आ जाता रहा है और मायावती अपने मिशन में कामयाब भी रही हैं, लेकिन अब चंद्रशेखर की चुनावी जीत ने उनकी राजनीति पर मुहर लगा दी है।
२०१९ के चुनाव में भी बुआ-भतीजे की जोड़ी खास तौर पर चर्चा में रही, लेकिन चुनाव नतीजे आने के बाद ही मायावती ने अखिलेश यादव के साथ भी चंद्रशेखर वाले अंदाज में ही एक झटके में अपना रिश्ता साफ कर दिया। समय का चक्र देखिए कि पांच साल बाद वही चंद्रशेखर और वही अखिलेश यादव नए सिरे से मायावती की राजनीति को चैलेंज करने लगे हैं।
नगीना लोकसभा में जीत के बाद चंद्रशेखर १० विधानसभा सीटों पर उपचुनाव लड़ने और अपने संगठन को मजबूत करने की योजना बना रहे हैं, जिसका उद्देश्य बीएसपी के खिसकते चुनावी आधार और विशेष रूप से दलितों की युवा पीढ़ी को भुनाना है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, आकाश और चंद्रशेखर दोनों नेताओं की नजर दलित युवाओं पर होगी, जो विकल्प तलाश रहे थे। असल में उत्तर प्रदेश में दलित नेतृत्व को पुन: प्राप्त करने के लिए दो युवा दलित नेताओं के बीच लड़ाई के लिए मंच तैयार है। अब उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति में आकाश आनंद बनाम चंद्रशेखर का मुकाबला होगा।