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हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश के युवा कर रहे विदेश पलायन … अग्निवीर से दूरी ‘डंकी’ मारने की मजबूरी!

– मोदी सरकार ने तोड़ा युवकों का जुनून
– योजना के बाद एक झटके में टूट गया सपना
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
कुछ वर्ष पहले जिन्हें फौजियों का गांव कहा जाता रहा है। पिछले कई दशकों से यहां के लड़कों के लिए सेना एक जुनून, एक सपना, एक बड़ा करियर रहा है। इन गांवों से हजारों युवकों ने सेना में भर्ती होकर देश की सेवा की है। इन इलाकों की अर्थव्यवस्था और सामाजिक सरंचना को सेना के जीवन ने दिशा दी है, लेकिन ‘अग्निपथ योजना’ के बाद स्थिति एक झटके से बदल गई है। केंद्र की मोदी सरकार ने ‘अग्निपथ योजना’ लाकर न सिर्फ युवकों को बेरोजगार किया है, बल्कि उनके सपनों को भी बिखेर दिया है। यही नहीं मोदी सरकार की हठधर्मिता के कारण युवकों का सैनिक बनने का जुनून भी अब खत्म हो गया है और वे रोजगार की तलाश में ‘डंकी’ मारने को मजबूर हो गए हैं।
‘आजाद हिंद फौज’ के समय से सेना में जाते रहे यहां के युवा
हरियाणा से युवाओं का विदेशों में पलायन कोई नई बात नहीं है। मगर हरियाणा के जींद, हिसार और भिवानी जिले के कई गांवों के निवासियों को विदेश ने नहीं लुभाया। ‘आजाद हिंद फौज’ के समय से यहां के युवा सेना में जाते रहे हैं। बड़ौदा, भोंगरा, करसिंधु और बास जैसे गांवों के प्रवेश-द्वार शहीद सैनिकों के स्मारक दिखाई देते हैं, जो भीतर कदम रखने से पहले ही इलाके की कथा सुना देते हैं। दो साल पहले तक इन गांवों के लड़के दसवीं पास करने के बाद सेना जाना चाहते थे। मगर ‘अग्निपथ योजना’ आने के बाद यह रिवायत बदलने लगी है। इन गांवों के सरपंचों के अनुसार, बीते दो सालों में एक हजार से भी ज्यादा युवा विदेश चले गए हैं, जिनमें से अधिकांश सेना की तैयारी करते थे। इनके अलावा कई युवा पासपोर्ट बनवाकर वीजा का इंतजार कर रहे हैं या ‘डंकी’ रूट की तलाश में हैं, यानी देश की सीमाओं को अवैध तरीके से पार करना चाहते हैं। कई सालों से पंजाब और हरियाणा से लोग बड़ी संख्या में जंगल, पहाड़ और नदियों के रास्ते अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अवैध तरीके से पहुंचते रहे हैं।
जींद के बड़ौदा गांव की आबादी २० हजार से ऊपर है। ५० वर्षीय सरपंच रेशम सिंह बताते हैं कि ‘आजाद हिंद फौज’ से लेकर अभी तक इस गांव के लगभग एक हजार से भी ज्यादा निवासी सेना में रह चुके हैं। सेना के प्रति प्रेम के चलते अग्निवीर आने के बाद भी बच्चों ने पैरा-मिलिट्री या हरियाणा पुलिस का विकल्प नहीं चुना। बीते दो सालों में इस गांव से लगभग ५०० लड़के विदेश निकल चुके हैं। इनमें बड़ी संख्या सेना में भर्ती की तैयारी करने वाले युवाओं की थी।
रेशम सिंह के अनुसार, अधिक संख्या ‘डंकी’ रूट से जानेवालों की होती है। बेरोजगारी को इसका कारण बताते हुए वे कहते हैं कि ‘अगर नहीं जाएंगे तो यहीं भूखे मरेंगे’।
‘अग्निवीरों’ का नया निशान लोहा, लकड़ी और किराने की दुकान
चंबल के युवाओं का सेना से मोहभंग होने लगा है। मुरैना जिले की वैâलारस तहसील के निवासी मनु सिकरवार कहते हैं कि दो साल पहले तक २० वर्षीय मनु सेना में जाना चाहते थे और जी-जान से तैयारी में जुटे थे। ‘अग्निपथ योजना’ ने उनके सपनों का गला घोंट दिया। ‘अग्निपथ योजना’ के कारण सेना में जाने का सपना छोड़ना पड़ा, क्योंकि वहां कोई भविष्य नहीं है। ‘अग्निवीर योजना’ की तस्वीर का एक स्याह पक्ष पूर्व सरपंच हाजी मोहम्मद बताते हैं, ‘जो बच्चे सेना की तैयारी कर रहे थे, अब उन्होंने किराने, लोहे और काठ (फर्नीचर) की दुकानें खोल ली हैं।
आगरा में ‘अग्निवीर’ ने की खुदकुशी
आगरा एयरफोर्स स्टेशन में तैनात एक अग्निवीर ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। आरिसर टेक्नीकर्स एरिया (शाहगंज) में रात डेढ़ बजे ‘अग्निवीर’ जवान श्रीकांत कुमार चौधरी (२२) ने खुद को गोली मारकर खुदकुशी कर ली। श्रीकांत मूलत: बलिया के नारायणपुर गांव के निवासी थे। बताया जाता है कि डेढ़ साल पहले श्रीकांत ‘अग्निवीर योजना’ के तहत संतरी पद पर भर्ती हुए थे। श्रीकांत चौधरी के घरवालों ने मौत के सही कारणों की जानकारी लेने का प्रयास किया, लेकिन अधिकारियों ने बताने से परहेज कर दिया। एयरफोर्स के कारपोरल बी. सिंह ने केवल इतना कहा कि गोली लगने से मौत हुई है। कहा कि घटना की जांच के लिए बोर्ड ऑफ इंक्वायरी का गठन किया गया है। गौरतलब है कि वर्ष २०१९ में भी एयरफोर्स परिसर स्थित आवास में हिमांशु सिंह (३२) का शव फंदे पर लटका मिला था। वह स्क्वॉड्रन लीडर के पद पर कार्यरत थे। वह मूलत: मुरादाबाद के निवासी थे।

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