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रोखठोक : व्यापारियों का राज; महाराष्ट्र का शौर्य! … देश कहां जा रहा है?

संजय राऊत- कार्यकारी संपादक

ब्रिटिश शासन व्यापारियों का शासन था। वे चले गए। गुजरात के एक ‘बनिया’ ने उन्हें ‘चले जाओ’ का आदेश दिया। उसी गुजरात के व्यापारियों का राज फिर से देश में आ गया। ईडी और सीबीआई उनके तराजू और औजार हैं। जब व्यापारियों का शासन आता है तब शौर्य और स्वाभिमान का ह्रास होता है। महाराष्ट्र को अब अपना तेवर दिखाना होगा!

भारतीय जनता पार्टी के लोग व्यापारी हैं। व्यापारी बहादुर नहीं होता। प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार कहा था, ‘गुजरात के व्यापारी हमारे सैनिकों से अधिक बहादुर हैं। वे अधिक जोखिम लेते हैं।’ मोदी जिस राज्य से आते हैं, वहां के कितने प्रतिशत लोग भारतीय सेना में हैं? शेयर बाजार, जमीन-जायदाद, व्यापार में जोखिम उठाना और वास्तविक युद्ध के मैदान में देश के लिए जोखिम उठाना अलग है। महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में आत्म-बलिदान करने वाले लोग पैदा हुए, जो कहते थे, ‘जब तक हाथ में तलवार और शरीर में जान है, तब तक झांसी मेरी है।’ भारतीय जनता पार्टी का वर्तमान चेहरा गुजराती स्वरूप है। यानी व्यापारी है। व्यापारी कभी भी देश के लिए बलिदान नहीं करता। वह पैसे का ‘रिस्क’ लेता है, मतलब जुए की तरह व्यवहार करता है। मोदी-शाह विशुद्ध रूप से व्यापारी हैं और उन्होंने अपने चारों ओर एक व्यापारी मंडल बना रखा है। महात्मा गांधी बनिया थे, लेकिन वे स्वतंत्रता आंदोलन में खिंचे चले गए। उनका जन्म गुजरात में हुआ, लेकिन जैसे-जैसे उन्हें समझ में आने लगा, वे सतर्क हो गए। उन्होंने गुजरात छोड़ने का पैâसला किया। ‘मैं गुजरात के व्यापारी मंडल में रहते हुए आजादी के बारे में सोच और लड़ नहीं सकता,’ ऐसी उन्होंने घोषणा की और हमेशा के लिए गुजरात छोड़ दिया।
व्यापारियों का राज!
देश में फिलहाल पैसे और केंद्रीय जांच एजेंसियों के दम पर गुजरातियों यानी व्यापारियों का राज है, लेकिन सोमवार को जब विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने जोरदार भाषण दिया और गुजराती व्यापार मंडल की पोल खोली तो मोदी-शाह भीतर से सहम गए हैं, ये साफ नजर आया। इन लोगों में युद्ध का सामना करने का साहस नहीं है। मोदी मणिपुर नहीं गए। मोदी कश्मीर जाने से बचते हैं। चीन ने लद्दाख की जमीन पर कब्जा कर लिया। मोदी चीन को आंख में आंख डालकर हड़का नहीं सकते। अब मोदी इसके बाद राहुल गांधी के सामने भी टिक नहीं पाएंगे। मराठों की वीरता सौ नंबरी है। राणोजी शिंदे के ज्येष्ठ पुत्र जयप्पा शिंदे की हत्या विजे सिंह ने हत्यारे के हाथों करवाई। यह एक विश्वासघात था। जैसे ही दत्ताजी शिंदे को बड़े भाई के हृदयविदारक अंत का पता चला, वे दौड़कर आए और विलाप करने लगे। सेना में हड़कंप मच गया। जयप्पा बहुत साहसी थे। वह जख्मी अवस्था में पड़े थे। आंखें खोलकर उन्होंने देखा कि छोटा भाई दत्ताजी विलाप कर रहा है, तब इस वीर नायक ने उसे आश्वस्त किया – ‘शत्रु युद्ध करने आया है और तुम विधवा की तरह रो रहे हो? यह क्षत्रिय धर्म को शोभा नहीं देता। मेरी चिंता मत करो। तुम्हें युद्ध के मैदान में जाना चाहिए और शत्रु को परास्त करना चाहिए।’ इस भाषण से दत्ताजी को क्रोध चढ़ा और उन्होंने शत्रु से युद्ध करके विजे सिंह को हरा दिया। जीत हासिल कर दत्ताजी अपने भाई जयप्पा के पास आए, लेकिन उनका निधन हो चुका था। ऐसे दत्ताजी और जयप्पा मराठों के इतिहास में हर पन्ने पर मिल जाएंगे। वीर सावरकर को दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। सावरकर ने विचलित हुए बिना ब्रिटिश न्यायाधीश को संबोधित किया और कहा, ‘आपने जो दीर्घकालीन कारावास की सजा दी है, मैं उसे नम्रतापूर्वक भुगतने के लिए तैयार हूं। यह मेरा विश्वास है कि हमारी प्यारी मातृभूमि केवल कठिनाई और आत्म-बलिदान के माध्यम से ही शाश्वत विजय प्राप्त करेगी।’ वीर सावरकर जैसे योद्धा न तो व्यापारी थे और न ही कायर।
पानीपत पर…
पानीपत की लड़ाई में मराठों की एक पूरी पीढ़ी कट गई। अब्दाली को मराठा छावनी से चांदी, सोना, हीरे, माणिक, पांच सौ हाथी, पचास हजार घोड़े, एक हजार ऊंट जैसी बहुत सारी संपत्ति मिली, लेकिन उस पानीपत से भी मराठों ने खुद को उबारा और आगे चलकर उन्होंने अटक के पार झंडे फहराए। देश के लिए मरना और लड़ना ही मराठी लोगों का उद्योग है, जो आज भी जारी है। मोदी और शाह इन राजनीतिक सौदागरों ने उद्धव ठाकरे और शरद पवार की पार्टी और चुनाव चिह्न को विश्वासघात करके छीन लिया। उन्हें लगा कि दोनों नेता हताश हो जाएंगे और आत्मसमर्पण कर देंगे। मोदी-शाह के इस मंसूबे पर ठाकरे-पवार ने पानी फेर दिया। ‘पुरानी चीजें छोड़कर आगे ब़ढ़ें,’ इस कहावत के अनुसार नया चिह्न और पार्टी लेकर इन दोनों नेताओं ने सचमुच युद्ध किया और महाराष्ट्र में मोदी-शाह को हरा दिया। १९७५ में इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया, जिस पर मोदी-शाह आज भी अपना राग अलापते हैं। छाती पीटते हैं। परंतु खुले तौर पर आपातकाल लगाने का साहस इंदिरा गांधी ने तब दिखाया, लेकिन वर्तमान की भाजपा पचास साल पहले का रोना नहीं भूल रही, ये उनके मन की कमजोरी है। २५ जून को दिल्ली के रामलीला मैदान से भारतीय सेना को विद्रोह करने का आह्वान किया गया। यह भारत में अराजकता की शुरुआत थी। विपक्षी नेता सार्वजनिक रूप से कहने लगे कि पुलिस को सरकार के आदेशों का पालन नहीं करना चाहिए। यह देश के विरुद्ध खुले विद्रोह की चेतावनी थी। इसका लाभ देश के विदेशी शत्रुओं द्वारा उठाने का भय था। इसलिए इंदिरा गांधी ने आपातकाल घोषित करने का साहस दिखाया। तब शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने उस आपातकाल का खुलकर समर्थन करने का साहस दिखाया। मोदी और शिंदे आज वोट मांगने के लिए बालासाहेब ठाकरे की तस्वीर का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन जिस आपातकाल के नाम पर मोदी-शाह आज छाती पीट रहे हैं, उस आपातकाल के समर्थक बालासाहेब ठाकरे थे।
मोदी क्यों डरे हुए हैं?
इस बार संसद के दोनों सदन एक हो गए हैं। मोदी और शाह के सामने ज्यादातर सांसदों ने अपने भाषण में बेधड़क कहा, ‘ईडी और सीबीआई ही आपके हथियार हैं, उनके बिना आप में कोई दम नहीं है। तुम कायर शिरोमणि हो।’ ये सच ही है। लोकसभा में जब बंगाल की महुआ मोइत्रा बोलने के लिए उठीं तो प्रधानमंत्री मोदी सभागृह से भाग निकले। मोदी को संबोधित करते हुए महुआ ने कहा, ‘मि. मोदी, रुकिए। मेरा भाषण सुनकर जाएं। आप मेरे कृष्णनगर निर्वाचन क्षेत्र में दो बार आए, लेकिन मैं जीत गई। हम कृष्णनगर में मिल नहीं पाए। आप मेरा भाषण सुनकर जाएं।’ लेकिन पीएम मोदी श्रीमती मोइत्रा का भाषण सुनने की हिम्मत नहीं जुटा पाए, क्योंकि उनकी सरकार बैसाखियों के सहारे है। इसी तरह उनकी बहादुरी भी ईडी और सीबीआई की बदौलत है। अगर ईडी, सीबीआई मोदी-शाह के हाथ में नहीं होगी तो वे कुछ भी नहीं कर पाएंगे। शौर्य वगैरह तो दूर की बात है। भारतीय टीम ने वर्ल्डकप जीता। टीम को दिल्ली में मोदी के आवास पर आमंत्रित किया गया था। तभी पीछे की कतार में अमित शाह के बेटे जय शाह दिखे। भारतीय क्रिकेट की कमान फिलहाल अमित शाह के बेटे के पास है और इसी काल में क्रिकेट का सर्वाधिक व्यापार और जुआ बना। क्रिकेट टीम को सम्मानित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी का जोश ऐसा था, जैसे जीत का गुरुमंत्र उन्हीं ने दिया हो। वहां लद्दाख की जमीन पर चीन ने कब्जा कर लिया है। ऐसे में जीत के नगाड़े वहां बजाकर चीनियों को भगा देना चाहिए, लेकिन लद्दाख और चीन के मामले में ठनठन गोपाल जैसी स्थिति है। महाराष्ट्र ने इस बार शौर्य दिखाया और मोदी के बहुमत को रोक दिया। महाराष्ट्र वीरों का प्रदेश है। गुजरात के व्यापारी शासकों ने यहां भी दलाली और कायरता के बीज बोये। फिर भी महाराष्ट्र मजबूती से खड़ा है। विद्रोह का आह्वान करनेवाला महाराष्ट्र है, ये दिल्ली को नहीं भूलना चाहिए। २२ अक्टूबर १८७९ को जब पुणे मजिस्ट्रेट की अदालत में वासुदेव बलवंत के मामले की सुनवाई हुई तो वासुदेव ने जो कहा वही मराठी लोगों का राष्ट्राभिमान और शौर्य है। वासुदेव कहते हैं, ‘जिस भूमि पर मेरा जन्म हुआ, ये सारे बच्चे उसी भूमि पर पैदा हुए। वे भूख से मरें और हम कुत्तों की तरह पेट भरते जाएं, ये मुझसे देखा नहीं गया और इसीलिए मैंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह किया,’ ऐसा उन्होंने निडर होकर अदालत से कहा और अपनी उज्ज्वल देशभक्ति का विश्वास दिलाया!
…तो मोदी-शाह और उनकी ईस्ट इंडिया कंपनी को ध्यान देना चाहिए कि, ‘यह वही महाराष्ट्र है!’

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